कमाल है! : बायोनिक आंखें, कृत्रिम हृदय दर्दरहित इंसुलिन और भी बहुत कुछ
विज्ञान और तकनीक की दुनिया में हर रोज नये आविष्कार हो रहे हैं. इसी के साथ चिकित्सा विज्ञान भी नयी तकनीकों और पद्धतियों की बदौलत दिनों-दिन समृद्ध होता जा रहा है.
शोध और अनुसंधान की ही देन है कि आज इलाज के ऐसे-ऐसे विकल्प संभव हैं, जिसे एक दशक पहले तक महज कोरी कल्पना कहा जाता था़ कोशिकाओं से लेकर हड्डी, हाथ-पैर और यहां तक कि हृदय भी लैब में तैयार कर लिये गये हैं. इसके अलावा, दृष्टिहीनों के लिए बायोनिक आंखें, मधुमेह के रोगियों के लिए बिस्किट जैसे वेफर्स के रूप में इंसुलिन भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की ही देन है, जिनसे कई जिंदगियां आबाद होंगी.
खो पड़ी का क्षतिग्रस्त हिस्सा ठीक करना हो या कटे हाथ-पैर, नाक-कान शरीर में दोबारा उगाना हो, चिकित्सा विज्ञान ने इसे मुमकिन कर दिखाया है. इस तकनीक का नाम है थ्रीडी प्रिंटिंग. दुनियाभर में इस विषय पर तरह-तरह के शोध चल रहे हैं और वैज्ञानिक मरीजों के शरीर में उन अंगों को दोबारा उगा रहे हैं, जो कभी किसी दुर्घटना की वजह से उनसे अलग हो गये थे़ इसी क्रम में अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में ऐसे मटीरियल पर रिसर्च चल रहा है, जिसकी मदद से थ्रीडी प्रिंटिंग के जरिये नयी हड्डियां बनायी जा सकें.
इससे पहले थ्रीडी प्रिंटिंग के जरिये जो भी हड्डियां बनायी गयी हैं, वे पूरी तरह से कृत्रिम थीं. मगर अब जो हड्डियां तैयार की जा रही हैं, उनके मटीरियल में 30% तक मानव हड्डियां मिली हुई हैं.
इसमें बायोडीग्रेडेबल पॉलिएस्टर का इस्तेमाल हुआ है. इसकी खासियत यह है कि बोन पाउडर मिले होने की वजह से यह शरीर की कोशिकाओं को आकर्षित करता है और उसके आसपास प्राकृतिक कोशिकाएं बनने लग जाती हैं.
इस रिसर्च में चूहे की खोपड़ी में छोटा-सा छेद कर थ्रीडी प्रिंटेड मटीरियल से भर दिया गया. इसके साथ स्टेम सेल का भी प्रयोग किया गया. उसके ठीक होने की प्रक्रिया पर नजर रखी गयी. पता चला कि पूरी तरह से कृत्रिम चीजों से बनी हड्डियों की तुलना में इन नयी हड्डियों के आसपास नयी कोशिकाओं का विकास अधिक हुआ. थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक की एक और खासियत यह है कि इससे बने अंग बेहद सटीक होते हैं, अंतर मिलीमीटर का दसवां हिस्सा मात्र हो सकता है.
आपको यह जान कर हैरानी होगी कि वैज्ञानिक कोशिकाएं बनाने में भी जुट गये हैं. फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च 3डी प्रिंटिंग की मदद से कोशिकाएं बनाने की कोशिश कर रहा है. इसकी मदद से लोगों में प्रतिरोधी क्षमता की कमी जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा. यही नहीं, पहली बार थ्रीडी प्रिंटर से दिल और धमनियों के हू-ब-हू मॉडल को बनाने में सफलता पा ली गयी है. अमेरिका की सी मेलन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इसे इनसानी कोशिकाओं जैसे मुलायम और पतले मटीरियल से तैयार किया है. अब वैज्ञानिकों का लक्ष्य पांच साल में पुराने दिल की कोशिकाओं से नया दिल तैयार करना है़ इससे हृदय दान और प्रत्यारोपण के लिए इनसानों पर निर्भरता और खर्च घट जायेगा. नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में बायोनिक आंखें मील का पत्थर साबित हुईं हैं.
अभी तक किसी क्षतिग्रस्त आंख को बदलने के मामले में चिकित्सा विज्ञान की क्षमता बेहद सीमित थी. हम किसी क्षतिग्रस्त आंख के कुछ हिस्से को ही बदल सकते हैं और वह भी किसी शख्स की मृत्यु की स्थिति में उसकी दान की गयी आंख के उत्तकों की मदद से. आनेवाले दिनों में बायोनिक आंखों की मदद से हम भविष्य में ऐसे लोगों की आंखों की रोशनी लौटाने में भी सक्षम हो सकते हैं, जो पूरी तरह नेत्रहीन हो चुके हैं. दरअसल बायोनिक आंख एक ऐसा उपकरण होता है, जो कुछ हद तक स्वस्थ प्राकृतिक आंख या फिर बाहर से लगाये गये कैमरे के जरिये रोशनी को कैद करती है. इन तसवीरों को उपकरण में लगे माइक्रो प्रोसेसर के जरिये इलेक्ट्रिकल फ्रिक्वेंसी में बदला जाता है और फिर एक कंप्यूटर चिप के जरये उसे मस्तिष्क (विजुअल कॉरटेक्स) तक पहुंचाया जाता है.
बात करें आंखों की बड़ी बीमारी मोतियाबिंद के बारे में, तो इसके इलाज की दिशा में अमेरिका की कैलिफोर्निया-सैन डियागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बिना ऑपरेशन किये, सिर्फ दवा से मोतियाबिंद काे खत्म करने का तरीका ढूंढ़ा है. कुत्तों पर किये गये इसके प्रयोग के नतीजे उत्साहवर्धक रहे. आंखों में यह दवा डालने से आंखों का धुंधलापन कम हो गया और मोतियाबिंद साफ होने लगा. इस अध्ययन के अनुसार हमारी आंखों के लेंस का अधिकांश हिस्सा क्रिस्टेलिन प्रोटीन से बना होता है और इस प्रोटीन के दो मुख्य काम हैं.
पहला, आंखों के फोकस को बदलने रहने में मदद करना और दूसरा, लेंस को साफ रखना. किसी व्यक्ति को मोतियाबिंद तब होता है जब इस प्रोटीन की संरचना में बदलाव होता है और यह आंखों के लेंस को साफ करने की बजाय वहां जाले बनाना और उसे धुंधला करना शुरू कर देता है़ शोधकर्ताओं ने अपनी खोज में पाया कि आंखों में एक और मॉलीक्यूल लेनोस्टेरॉल पाया जाता है, जो शरीर में कई स्टेराॅयड के निर्माण के लिए जरूरी है. शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन बच्चों में जन्मजात मोतियाबिंद की समस्या होती है, उनमें आनुवांशिक रूप से इस मॉलीक्यूल से संबंधित एंजाइम लेनोस्टेरॉल सिंथेस नहीं बन रहा होता है.
इस खोज ने शोधकर्ताओं के सामने यह रहस्य खोला कि ये मॉलीक्यूल तथा संबंधित प्रोटीन आपस में संबंधित हैं. अगर यह अध्ययन इनसानों पर कारगर रहा तो भविष्य में मोतियाबिंद के लिए ऑपरेशन की जरूरत पूरी तरह खत्म हो सकती है.
डायबिटीज की बीमारी पर काबू पाने के लिए जरूरी इंसुलिन को शरीर में पहुंचाने के लिए दर्दभरे इंजेक्शन बीते जमाने की बात हो जायेंगे़ ब्रिटेन की एक फार्मा कंपनी ने एक ऐसा वेफर (बिस्किट) तैयार किया है, जो रोगी के शरीर में इंजेक्शन के मुकाबले दोगुनी तेजी से इंसुलिन पहुंचा कर काम करना शुरू कर देगा़ एमएसएल-001 नाम के इस वेफर का आकार एक डाक टिकट जितना बड़ा है और इसमें उतनी ही इंसुलिन की मात्रा भरी हुई है, जितनी इंजेक्शन से दी जाती है. इसे जीभ के नीचे या फिर गाल और दांतों के बीच में रखना होता है. यहां मौजूद महीन कैपिलरीज इसे तेजी से सोख कर शरीर में पहुंचा देती हैं.
टाइप-वन और टाइप-टू डायबिटीज के मरीजों पर इसके सफल ट्रायल भी हो चुके हैं. इसी क्रम में मेलबर्न के मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की टीम को पहली बार यह पता लगाने में कामयाब हुई है कि इंसुलिन मरीज के शरीर में रिसेप्टर से कैसे मिलता है. शक्तिशाली एक्सरे किरणों का इस्तेमाल कर 20 साल की कड़ी मेहनत के बाद हुई यह खोज डायबिटीज के नये और बेहतर इलाज का रास्ता साफ करेगी. इस खोज के आधार पर नये प्रकार के इंसुलिन बन सकते हैं, जो इंजेक्शन से अलग तरीके से भी दिये जा सकते हैं. इसके अलावा उनमें बेहतर गुण भी होंगे ताकि उन्हें जल्दी जल्दी न लेना पड़े.