तीनों पर आरोप है कि विश्वविद्यालय के लिए 40 केवीए के पांच जेनरेटर खरीदे गये, जिनमें 22 लाख रुपये से अधिक की राशि का भुगतान किया गया. ये जेनरेटर कभी चलाये नहीं गये. साथ ही इनकी खरीद बिना किसी विभाग की अनुशंसा, बिना बजटीय प्रावधान के तथा बिना टेंडर कराये हुई. जेनरेटरों को स्थापित करने में खर्च की गयी राशि का ब्योरा भी नहीं दिया गया. इसके अलावा बिना बजटीय उपबंध के आठ फोटोकॉपी मशीन खरीदी गयी. इनमें 23 लाख 15 हजार 471 रुपये की राशि खर्च हुई. इसके अलावा 26 एयरकंडीशनर की खरीद में कमीशनखोरी का आरोप लगाया गया है. इन एयरकंडीशनरों की खरीददारी बिना टेंडर के सिंगल कोटेशन के आधार पर की गयी.
कुलपति डॉ अरविंद कुमार पर यह भी आरोप था कि अतिथिशाला को सुसज्जित करने के लिए उन्होंने 20 लाख रुपये खर्च किये. इसके लिए उन्होंने भारी कमीशन लिये. जब कुलाधिपति ने इस मामले की निगरानी जांच के आदेश दिये, तो सामानों को हटाने का प्रयास किया गया. एक अन्य आरोप में दो सेमिनार हॉल को सुसज्जित करने के लिए 42 लाख रुपये के भुगतान में घोटाला किया गया.
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के तृतीय अौर चतुर्थ वर्ग के कर्मचारी बहाली परीक्षा में पैनल तैयार करने के लिए बिना निविदा के 24 लाख रुपये खर्च किये गये. 50 से अधिक इंटरकॉम लगाये गये. यह काम पर भी बिना टेंडर के आठ लाख रुपये से अधिक खर्च किये गये. इसमें इंटरकॉम की खरीद बाजार दर से अधिक कीमत पर करने का भी आरोप है. साथ ही विवि की गाड़ी रहते हुए भी 11 लाख रुपये की गाड़ी खरीदने का आरोप शामिल है.