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FILM REVIEW: कॉमेडी के नाम पर फूहड़ता है ‘Great Grand Masti”

II उर्मिला कोरी II फिल्म: ग्रेट ग्रैंड मस्ती निर्माता: अशोक ठकेरिया, एकता और शोभा कपूर निर्देशक: इन्दर कुमार कलाकार: विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख, आफताब शिवदासानी, उर्वशी, रौतेला, पूजा बोस और अन्य रेटिंग: डेढ़ पिछले कुछ सालों से सेक्स कॉमेडी जॉनर को भुनाने की बॉलीवुड में होड़ मची है. हर साल चार से पांच फिल्में इस […]

II उर्मिला कोरी II

फिल्म: ग्रेट ग्रैंड मस्ती

निर्माता: अशोक ठकेरिया, एकता और शोभा कपूर

निर्देशक: इन्दर कुमार

कलाकार: विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख, आफताब शिवदासानी, उर्वशी, रौतेला, पूजा बोस और अन्य

रेटिंग: डेढ़

पिछले कुछ सालों से सेक्स कॉमेडी जॉनर को भुनाने की बॉलीवुड में होड़ मची है. हर साल चार से पांच फिल्में इस जॉनर को प्रस्तुत करती हैं. इसी की अगली कड़ी इन्दर कुमार की फिल्म ग्रेट ग्रैंड मस्ती बनी है. यह एक सीक्वल फिल्म है. मस्ती और ग्रैंड मस्ती की तरह इस फिल्म की कहानी भी तीन ऐसे दोस्तों की है, जो अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से खुश् नहीं है.

इस सीक्वल फिल्म में भी अमर सक्सेना (रितेश देशमुख), मीत मेहता (विवेक ओबेरॉय) और प्रेम चावला (आफताब शिवदासानी) के तौर पर ये किरदार सामने आते हैं. कहानी को कुछ इस कदर तोडा मोड़ा जाता है कि अमर, मीत और प्रेम को शहर से गांव जाना पड़ता है, जहां एक हवेली में उनकी मुलाकात रागिनी (उर्वशी) से होती है जो मर चुकी है लेकिन उसकी अतृप्त इच्छाओं के कारण उनकी आत्मा अब भी भटक रही है और फिर शुरू हो जाती है सेक्स कॉमेडी के नाम पर एक के बाद एक फूहड़ता को परोसती घटनाएं.

आखिरकार क्या होता है. इसको जानने के लिए फिल्म को झेलना मतलब देखना होगा. एडल्ट कॉमेडी के नाम पर एक बार फिर जमकर फूहड़ता ही परोसी गयी है. फिल्म के दृश्य ,संवाद और किरदारों के भाव भंगिमाएं सभी मनोरंजन करने में नाकामयाब है।फिल्म में इस बार सेक्स, कॉमेडी के साथ हॉरर को भी मिलाया गया है लेकिन नतीजा फिर भी ढाक के तीन पात वाला ही रहा.

फिल्म का फर्स्ट हाफ धीमा है तो सेकंड हाफ में यह टेलीविज़न धारावाहिक का नज़र आ रहा है. करवा चौथ और उसकी बाद बे सिर पैर की कहानी. कहानी के साथ साथ कॉमेडी भी स्तरहीन है. कॉमेडी के सवांद हो या सीन्स स्वाभाविक कम ज़बरदस्ती ढूंसे ज़्यादा लगते हैं. अभिनय की बात करें तो रितेश देखमुख को कॉमेडी फिल्मों में महारत हासिल है.

विवेक भी कॉमेडी दृश्यों में सहज नज़र आते हैं हाँ संजय मिश्रा फिल्म में बाज़ी मार ले जाते हैं. अंताक्षरी बाबा के किरदार में वह हँसाने में कामयाब दिखते हैं. आफताब शिवदासानी इस बार चूक गए हैं. उनकी चीख सुनकर चिढ़ होती है. उर्वशी रौतेला को अपने अभिनय में काम करने की ज़रूरत है बाकी तीन अभिनेत्रियां भी परदे पर फिल्म की कहानी और उसके प्रस्तुति की तरह ही निराश करते हैं.

फिल्म का संगीत फिल्म की गति को प्रभावित करता है. फिल्म के दूसरे पक्ष औसत हैं. कुलमिलाकर यह फिल्म मनोरंजन की कसौटी पर पूरी तरह से चूकती है.

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