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सेल्फाइटिस : मनोरोग या शौक, चिकित्सकों में मतभेद
2016 में जून तक देश में 23 लोगों की मौत सेल्फी लेने के चक्कर में हुई मनोज सिंह रांची : सेल्फाइटिस मनोरोग है या शौक, इसको लेकर मनोचिकित्सकों व मनोवैज्ञानिकों में मतभेद है. कुछ मनोचिकित्सक मानते हैं कि यह मनोरोग है, तो कुछ का कहना है कि यह एक शौक है. इसको मनोरोग बोलने से […]
2016 में जून तक देश में 23 लोगों की मौत सेल्फी लेने के चक्कर में हुई
मनोज सिंह
रांची : सेल्फाइटिस मनोरोग है या शौक, इसको लेकर मनोचिकित्सकों व मनोवैज्ञानिकों में मतभेद है. कुछ मनोचिकित्सक मानते हैं कि यह मनोरोग है, तो कुछ का कहना है कि यह एक शौक है. इसको मनोरोग बोलने से लोगों में गलत संदेश जायेगा. यह इंटरनेट एडिक्शन डिसआर्डर का एक हिस्सा हो सकता है.
अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन ने हाल ही में कहा है कि यह मनोरोग नहीं है़ हालांकि एसोसिएशन का मानना है कि इसका नकारात्मक असर समाज पर पड़ रहा है. 2014 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में इस शब्द को जोड़ा जा चुका है.2016 में जून तक भारत में करीब 23 लोगों की मौत सेल्फी के चक्कर में हो चुकी है. राज्य के दोनों मनोचिकित्सा संस्थानों में मोबाइल डिएडिक्शन के करीब एक दर्जन मरीज हर रोज आते हैं. इन मरीजों में खुद का दो-तीन फोटो लेने की लत रहती है. चिकित्सकों के एक समूह का मानना है कि यह ऑब्सिसिव कंप्लशन डिसआर्डर का एक हिस्सा है. यह बीमारी वैसे लोगों को होती है, जिसमें आत्मविश्वास की कमी होती है. उनका मानना होता है कि ऐसा करने से उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है.
शुरुआती अध्ययन में अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन ने इस बीमारी के कुछ लक्षण तय किये थे. इसमें बताया गया है कि इसके तीन लक्षण हैं. बाॅर्डर लाइन लक्षण में दिन में कम से कम तीन सेल्फी लेना तथा सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करना है. एक्यूट सेल्फाइटिस में कम से कम तीन बार सेल्फी लेना तथा सोशल मीडिया पर पोस्ट करना है. क्रोनिक स्थिति उसे कहते हैं जब दिन भर में छह बार सेल्फी लिया जाता है और हर बार सोशल मीडिया पर पोस्ट डाला जाता है. हालांकि एसोसिएशन बाद में इस जांच को और आगे बढ़ाने की बात कहता है.
आत्मविश्वास की कमी है बड़ा कारण
मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों के बड़े वर्ग का मानना है कि यह वैसे लोगों में होता है, जिनमें आत्मविश्वास या मनोबल की कमी होती है. ऐसे लोग शुरुआती डिप्रेशन के मरीज होते हैं. ऐसे लोगों को सोशल मीडिया में डाले गये पोस्ट को लाइक करने पर गर्व होता है. यह उनके अंदर के घबराहट को कम करता है. ऐसे लोग यह मानते लगते हैं कि सोशल मीडिया ही उनकी दुनिया है. कभी-कभी यह सहानुभूति का कारण भी होता है. ऐसे लोग एक मिनट भी इससे दूर नहीं रह सकते हैं. मोबाइल आज मनोरंजन का सस्ता साधन है. सस्ते में मोबाइल मिल जाता है. इस कारण वैसे लोगों में भी यह मानसिकता विकसित हो रही है, जो मानसिक रूप से पूरी तरह मजबूत नहीं होते हैं.
क्या कहते हैं चिकित्सक
सीआइपी के मनोचिकित्सक डॉ निशांत गोयल कहते हैं कि सेल्फाइटिस मनोरोग है या नहीं, इसकी कोई पुष्टि नहीं है. लोगों के बीच यह संदेश जाने से भ्रम की स्थिति बन सकती है. रिनपास के सीनियर रेजीडेंट डॉ सिद्धार्थ कहते हैं कि कई संस्थाओं ने इस पर काम किया है. भले ही इसे अभी मनोरोग की श्रेणी में नहीं रखा जाये, लेकिन आनेवाले समय में यह मनोरोग ही होगा. इसके कारण लोगों के व्यवहार में बदलाव होने लगा है. कई लोगों की मौत भी होने लगी है.
रिनपास के पूर्व निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह बताते हैं कि सामान्य से असामान्य व्यवहार मनोरोग है. अगर कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कोई काम करता है, तो वह मनोरोग का लक्षण है. एेसे लक्षण को सामाजिक तौर पर मान्यता नहीं होती है. इसमें सेल्फी भी शामिल है. जगह और स्थान का ख्याल नहीं हो, तो यह एक मनोरोग का लक्षण है. इससे डिसआर्डर की श्रेणी में रखा जा सकता है.
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