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आइएस की चुनौती

हाल की कई रिपोर्टों में यह बात कही जा चुकी है कि दुनिया में आतंक का पर्याय बन चुके इसलामिक स्टेट (आइएस) की गतिविधियां अब किसी एक देश या भूभाग तक सीमित नहीं है. इंटरनेट और सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में यह खूंखार आतंकी संगठन अपने खतरनाक विचारों का आक्रामक प्रचार कर कई मुल्कों […]

हाल की कई रिपोर्टों में यह बात कही जा चुकी है कि दुनिया में आतंक का पर्याय बन चुके इसलामिक स्टेट (आइएस) की गतिविधियां अब किसी एक देश या भूभाग तक सीमित नहीं है.
इंटरनेट और सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में यह खूंखार आतंकी संगठन अपने खतरनाक विचारों का आक्रामक प्रचार कर कई मुल्कों में राह भटके नौजवानों को आकर्षित कर अपने लड़ाकों की संख्या तेजी से बढ़ा रहा है. भारत में भी महाराष्ट्र, कश्मीर, आजमगढ़ (यूपी), बेंगलुरू आदि में इक्का-दुक्का युवकों के आइएस से प्रभावित होने की खबरें पहले आ चुकी हैं.
अब दक्षिणी राज्य केरल के कई युवकों के एक साथ आइएस में शामिल होने की खबरों के बीच, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने पुष्टि कर दी है कि राज्य के 21 लोग संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हैं. इनमें से ज्यादातर पढ़े-लिखे और कंप्यूटर के जानकार युवक हैं, जो बहाने बना कर विदेश गये, लेकिन वापस नहीं लौटे. दो युवकों ने अपने परिचित को वॉट्सएप्प संदेश भेज कर, कि हम मंजिल तक पहुंच चुके हैं और मुसलिमों पर जुल्म ढानेवाले अमेरिका को सबक सिखाएंगे, आइएस में शामिल होने के संकेत भी दे दिये हैं.
पड़ोसी मुल्क द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से दशकों से जूझ रहे भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि हमारे कुछेक युवा आइएस के कट्टरपंथी विचारों के प्रभाव में आ रहे हैं. यह चुनौती एक ओर जहां देश में सामाजिक तानेबाने, सहिष्णुता और भाईचारे के माहौल को और मजबूत कर युवाओं को भटकने से रोकने की जरूरत को रेखांकित करती है, वहीं सोशल मीडिया के जरिये फैलाये जा रहे अफवाहों से निपटने के लिए कुछ नये उपायों की भी मांग करती है.
आधुनिक संचार माध्यमों से जुड़े इस खतरे के प्रति हमें कश्मीर की मौजूदा अशांति ने भी आगाह किया है, जिसमें देश के खिलाफ जहर फैलानेवालों ने इसका इस्तेमाल किया है. लेकिन, ध्यान रखना होगा कि ऐसे किसी भी मौके पर सोशल मीडिया या इंटरनेट पर बैन लगाने का सरकार का आसान रास्ता अकसर आग में घी डालने का काम करता है. अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सामने मौजूद इस चुनौती के प्रति सचेत हैं.
दो दिन पहले ही केन्या में नैरोबी यूनिवर्सिटी के छात्रों से उन्होंने कहा कि आतंकवाद की कोई सीमा, कोई धर्म, कोई नस्ल और कोई मूल्य नहीं होता और इससे समाज की सुरक्षा तभी संभव है, जब लोगों को आर्थिक प्रगति के लाभ का अहसास हो. इससे पहले कि आतंक और कट्टरपंथ के आक्रामक कुप्रचार से कुछ और युवा प्रभावित हों, इसका माकूल जवाब देने के लिए समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों को भी अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी.

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