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बीएचएमएस डिग्री की वैधता पर महाराष्ट्र सरकार लेगी फैसला

मुजफ्फरपुर: महाराष्ट्र में बीआरए बिहार विवि की बीएचएमएस की डिग्री को लेकर जारी विवाद अब वहां की सरकार तक पहुंच चुकी है. बॉम्बे हाइकोर्ट के निर्देश पर महाराष्ट्र होमियोपैथी कौंसिल (एमसीएच) ने अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी है. इस रिपोर्ट में क्या है, इस पर अधिकारी फिलहाल कुछ भी बोलने से इनकार कर […]

मुजफ्फरपुर: महाराष्ट्र में बीआरए बिहार विवि की बीएचएमएस की डिग्री को लेकर जारी विवाद अब वहां की सरकार तक पहुंच चुकी है. बॉम्बे हाइकोर्ट के निर्देश पर महाराष्ट्र होमियोपैथी कौंसिल (एमसीएच) ने अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी है. इस रिपोर्ट में क्या है, इस पर अधिकारी फिलहाल कुछ भी बोलने से इनकार कर रहे हैं. हालांकि उनका अब भी मानना है कि विवि से जारी डिग्री सीसीएच के मानकों पर नहीं ठहरती. आशंका जतायी जा रही है कि रिपोर्ट भी कुछ ऐसा ही हो सकता है. ऐसे में दर्जनों छात्रों के बीएचएमएस की डिग्री की मान्यता खतरे में पड़ जायेगी.
एमसीएच पहले ही बीआरए बिहार विवि से जारी बीएचएमएस की दर्जनों डिग्री को ‘बोगस’ व ‘फैब्रिकेटेड’ बता चुका है. इस आधार पर वह 20 होमियोपैथी डॉक्टरों का लाइसेंस रद्द कर चुकी है. वहीं नये लाइसेंस के लिए आये 40 से अधिक आवेदन अस्वीकार कर चुकी है. यही नहीं, मामले में मुंबई पुलिस में कई डॉक्टरों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज कराया गया था, जिसमें कुछ डॉक्टरों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है. एमसीएच के इस कार्रवाई के खिलाफ 20 डिग्रीधारकों ने बॉम्बे हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. विवि की ओर से उनकी डिग्री वैध होने का शपथ पत्र भी भेजा गया. हालांकि कोर्ट ने उसे मानने से इनकार कर दिया. गत तीन मार्च को बॉम्बे हाइकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, जिसमें एमसीएच को सर्टिफिकेट की वैधता की जांच चार माह में पूरी कर कानून व सीसीएच एक्ट के तहत फैसला लेने की छूट दी थी. यह मियाद तीन जुलाई को ही पूरी हो गयी.
तीन बार एक साल में हुईं दो परीक्षाएं
सेंट्रल कौंसिल ऑफ होमियोपैथी के 1983 अधिनियम के तहत बीएचएमएस कोर्स साढ़े पांच साल का होता है. इसमें से पहला पार्ट 18 माह का होना चाहिए. वहीं उसके बाद तीन अन्य पार्ट 12-12 माह का. इसी के आधार पर परीक्षा निर्धारित है. चारों पार्ट की पढ़ाई पूरी होने के बाद छात्र-छात्राओं को 12 माह का इंटर्नशीप करना अनिवार्य है. बीआरएबीयू में 1994 से ही बीएचएमएस कोर्स की परीक्षा तकरीबन हर सत्र में एक साल देरी से हो रही है. बीच-बीच में सत्र नियमित करने के लिए एक साल में दो-दो परीक्षाएं ली गयीं. ऐसा तीन बार हुआ है. वर्ष 2003 में अप्रैल व अक्तूबर, 2006 में फरवरी व नवंबर एवं 2009 में मई व दिसंबर में परीक्षा हुई थी. एमसीएच की आपत्ति है कि आखिर विवि ने बारह या अठारह माह की पढ़ाई छह या सात महीने में कैसे पूरी करा दी! विवि ने मामले में अपना पक्ष रखने के लिए एक वकील भी हायर किया था, लेकिन न्यायाधीश ने उन्हें पक्ष रखने का मौका नहीं दिया. उनका कहना था कि मामले में विवि कोई पक्ष है ही नहीं.
बॉम्बे हाइकोर्ट ने एमसीएच को सर्टिफिकेट की जांच के लिए चार माह का समय दिया था. जांच पूरी हो चुकी है. महाराष्ट्र सरकार को रिपोर्ट भी सौंप दी गयी है. अब वही इस पर फैसला लेगी. वैसे यदि सीसीएच एक्ट को मानक माना जाये, तो विवि से जारी सर्टिफिकेट इस पर खरा नहीं उतरता है.
दिलीप भुइअर, रजिस्ट्रार, एमसीएच

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