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करोड़ों के फ्लैट्स किसके?

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया कुछ साल पहले की बात है. मुंबई के बांद्रा इलाके में स्थित मेरे घर के बाहर से मेरी एक दिन पुरानी कार चोरी हो गयी थी. इस चोरी की एफआइआर दर्ज कराने के लिए मैं पुलिस स्टेशन गया. वहां मुझे एक सीनियर इंस्पेक्टर से मिलने के लिए कहा […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
कुछ साल पहले की बात है. मुंबई के बांद्रा इलाके में स्थित मेरे घर के बाहर से मेरी एक दिन पुरानी कार चोरी हो गयी थी. इस चोरी की एफआइआर दर्ज कराने के लिए मैं पुलिस स्टेशन गया.
वहां मुझे एक सीनियर इंस्पेक्टर से मिलने के लिए कहा गया. अपनी सीट पर बैठा तकरीबन 50 की उम्र का वह बेडोल शरीर वाला इंस्पेक्टर एक अखबार के वर्गीकृत विज्ञापनों पर गोले बना रहा था. मैंने अपनी कार चोरी होने की बात बतायी और उनसे पूछा कि वह क्या कर रहे थे. उन्होंने जवाब में कहा कि वे अब जल्दी ही रिटायर होनेवाले हैं, इसलिए उन्हें अपना सरकारी क्वॉर्टर छोड़ना होगा. उनकी बीवी उन पर एक नया घर खरीदने के लिए दबाव बना रही थी और इसीलिए वे विज्ञापनों में यह देखना चाह रहे थे कि कहां-कहां घर मौजूद हैं. मैंने उनसे पूछा, तो क्या कुछ मिला आपको, तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया ‘यहां ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे खरीदने की मुझमें हैसियत है.’
भारतीय शहरों के बारे में यह बहुत अजीब बात यह है कि वहां आजकल रियल एस्टेट सेक्टर, खासकर फ्लैट्स, बहुत महंगा हो गया है. मैं अक्सर साइकिल से अपने काम पर जाता रहा हूं और जब बारिश हो रही होती है, तब टैक्सी ले लेता हूं.
मेरे घर से काम की जगह के बीच की दूरी करीब छह किलोमीटर है और इस दूरी का टैक्सी का किराया 85 से 100 रुपये के बीच आता है, जो ट्रैफिक पर निर्भर करता है. मुझे लगता है कि दुनिया के किसी भी बड़े शहर में इस कीमत पर टैक्सी मिल पाना नामुमकिन सा है. इतनी ही दूरी के लिए लंदन में टैक्सी का किराया करीब 1,200 रुपये आता है. न्यूयार्क, टोक्यो, हेलसिंकी, पेरिस आदि शहरों की भी यही सच्चाई है. दुबई और शांघाई में किराया इससे कुछ सस्ता हो सकता है, लेकिन बेंगलुरु में नहीं, जहां मैं रहता हूं.
खाने-पीने की चीजों की कीमतों को लेकर भी कुछ ऐसी ही सच्चाई है. भारत के ज्यादातर हिस्से में तकरीबन 50 रुपये में आपको ठीक-ठाक खाना मिल सकता है, लेकिन न्यूयार्क, टोक्यो, हेलसिंकी, पैरिस आदि शहरों में यह कतई मुमकिन नहीं है. 50 रुपये यानी लंदन में सिर्फ आधा पाउंड या न्यूयार्क में सिर्फ 70 सेंट्स, यानी वहां के लिए यह सिर्फ फुटकर जैसा कुछ है.
लेकिन, रियल एस्टेट के मामले में स्थिति इसके उलट है. मेरे घर के बगल में खड़ी हुई एक नयी बिल्डिंग में दो फ्लैट्स बिकने के लिए तैयार हैं और उनकी कीमत सात करोड़ रुपये है. सौ गज की दूरी पर ही दो फ्लैट्स और तैयार हैं, जिनकी कीमत पांच करोड़ से ज्यादा है.
एयरपोर्ट जाने के रास्ते में प्रॉपर्टी से संबंधित विज्ञापनों के कम-से-कम दो दर्जन होर्डिंग्स लगे हैं. इन होर्डिंग्स पर फ्लैट्स की कीमतें भी दर्ज हैं और किसी पर भी चार करोड़ रुपये से कम कीमत नहीं दिखती है, जबकि वे सभी संपत्तियां मुख्य शहर से बाहर स्थित हैं. मैंने एक होर्डिंग देखता हूं, जो अपेक्षाकृत सस्ते और मध्य वर्ग के लिए है, लेकिन वे घर भी इतने सस्ते नहीं हैं.
जब मैं बांद्रा में रहता था, किराये के मकानों में रहा. आज उस जगह पर अपार्टमेंट का एक महीने का किराया डेढ़ लाख रुपये से शुरू होता है और संपत्तियाें की कीमत सात करोड़ रुपये से ज्यादा है. ये सामान्यत: दो कमरों के अपार्टमेंट हैं, बहुत आकर्षक भी नहीं हैं और उनमें कोई खासियत भी नहीं है. इतनी कीमत में न्यूयार्क और लंदन के बीचोबीच आप जगह ले सकते हैं. सात करोड़ रुपये यानी एक मिलियन डॉलर- इतने में तो आपको दुनिया के किसी भी शहर में एक अच्छी जगह मिल सकती है.
हकीकत यह है कि रुपये के वास्तविक मूल्य का रूपांतरण भारत के रियल स्टेट को और भी महंगा बना देता है. रुपये की क्रय शक्ति समता (परचेजिंग पावर पेरिटी) डॉलर के मुकाबले तीन गुनी है. इसका मतलब यह हुआ कि एक रुपये की कीमत में आप जो चीज अमेरिका में खरीद सकते हैं, उसी कीमत में भारत में आप उसका तीन गुना खरीद सकते हैं. यही कारण है कि टैक्सी का 100 रुपये किराया न्यूयार्क में 300 रुपये के बराबर है और तब इसीलिए यह बहुत महंगा लगता है. ठीक इसी तरह, 50 रुपये का खाना 150 रुपये का हो जाता है.
लेकिन, इसी तर्क के आधार पर रियल एस्टेट की कीमतों को देखें, तो सात करोड़ का फ्लैट तो 21 करोड़ का हुआ. भारत के उन्हीं शहरों में, जहां दुनिया के बाकी हिस्सों के मुकाबले यातायात और खाना बहुत सस्ते हैं, रियल एस्टेट आश्चर्यजनक रूप से बहुत महंगा है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्यों है?
इसका एक आसान सा जवाब है कि अंगरेज कुछ शहरों में बहुत ही खूबसूरत इलाके बना कर छोड़ गये हैं, जो सचमुच अद्वितीय हैं. इससे पता चलता है कि क्यों लुटियन दिल्ली या फिर दक्षिणी मुंबई बहुत ज्यादा महंगे हैं, दिल्ली-मुंबई के बाकी क्षेत्रों की तुलना में. लेकिन, यह आसान सा जवाब या तर्क भी यह नहीं बताता कि आखिर बेंगलुरु जैसे शहरों में फ्लैट्स इतने महंगे क्यों होने चाहिए?
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि आखिर वे कौन से लोग हैं, जो इन फ्लैट्स या जगहों को खरीदते हैं और इसके लिए वे कहां से तथा किस तरह से पैसे कमाते हैं? हकीकत यह है कि सिर्फ 5,430 भारतीय एक करोड़ रुपये से ज्यादा टैक्स चुकाते हैं. हालांकि मुझे पता है कि भारत में इनकम टैक्स की चोरी करनेवाले बहुत ही ज्यादा है, फिर भी यह सिद्ध नहीं होता कि वे कौन लोग हैं जो भारत के शहरों में करोड़ों रुपयों के फ्लैट्स या अन्य प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं?
कॉरपोरेट सेक्टर पर भी नजर डालें तो वहां भी महज कुछ सौ लोगों की ही सैलरी बहुत ज्यादा होती है, जो बड़ी-बड़ी कंपनियों में सीइओ या उच्च पदों पर काम कर रहे हैं. इस आधार पर भी मुझे यह समझ में नहीं आता कि ये करोड़ों रुपयेवाले हजारों फ्लैट्स और सैकड़ों बिल्डिंग क्यों हैं, जिन्हेें मैं अपने चारों ओर देख रहा हूं?
यह बहुत ही अजीब बात है कि भारत में रियल स्टेट की कीमतें इतनी ज्यादा हैं और मुझे उम्मीद है कि कोई जानकार मुझे यह बतायेगा कि कीमत के मामले में यही एक क्षेत्र इतना बेमेल क्यों बना हुआ है!

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