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आजाद ने बिहार के विपक्ष का इस्तेमाल किया

-हरिवंश- पिछले कुछ अरसे से राज्य कांग्रेस में चल रहे घमसान की खबरें अखबारों की सुर्खियों में छायी रहीं. पर बिहार की अपाहिज और सत्ता दल के सामने खुटने टेक चुके विपक्ष की हरकतें आम जनता की नजरों से ओझल रही हैं. बहरहाल, अब यह तथ्य ज्यादा पुष्ट हुआ है कि बिहार में विपक्ष का […]

-हरिवंश-

पिछले कुछ अरसे से राज्य कांग्रेस में चल रहे घमसान की खबरें अखबारों की सुर्खियों में छायी रहीं. पर बिहार की अपाहिज और सत्ता दल के सामने खुटने टेक चुके विपक्ष की हरकतें आम जनता की नजरों से ओझल रही हैं. बहरहाल, अब यह तथ्य ज्यादा पुष्ट हुआ है कि बिहार में विपक्ष का पर्याय एकमात्र कर्पूरी ठाकुर थे. कागज पर जनता दल का गठन तो हो गया है, पर इसमें शामिल घटक अपनी अलग-अलग दुकान चला रहे हैं. कर्पूरी जी का लोक दल तीन हिस्सों में विभाजित है. एक घटक जनता दल के साथ है, दूसरा दल देवीलाल के साथ, तो तीसरा बहुगुणा के साथ.

फरवरी के अंत में बिहार विधानसभा का हंगामेदार सत्र संपन्न हो गया. इस सत्र में कांग्रेस के बहुसंख्य विधायकों ने तीन दिनों तक विधानसभा का बहिष्कार किया. यह अभूतपूर्व स्थिति थी. भागवत झा आजाद की सरकार अल्पमत में रहते हुए भी विपक्ष के कथित नेताओं के सौजन्य से बरकरार रही. आजाद सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव न आये, इसके लिए बड़े स्तर पर हेराफेरी की गयी. इस उच्चस्तरीय षडयंत्र में बिहार के कथित दिग्गज विपक्षी नेताओं की भूमिका पर जनता और मीडिया की निगाह नहीं गयी. एक अविश्वास प्रस्ताव आया भी, तो उसे तकनीकी आधारों पर रद्द कर दिया गया.

इस सत्र के दौरान भागवत झा आजाद ने अपने दल के वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श नहीं किया और न उनसे मिल कर रणनीति बनायी, बल्कि विपक्ष के नेता उनके अंत:पुर में घुसे रहे. आजाद जी इस सत्र के दौरान भोजन पर आमंत्रित बिहार के इन विपक्षी नेताओं को पटाते रहे. उन्होंने विपक्ष के विधायकों से भी संपर्क कर अपनी सरकार बचाने का बार-बार अनुरोध किया.


जनता दल के पूर्व घटक जनता पार्टी के नेता रघुनाथ झा, पूर्व लोक दल के लल्लू प्रसाद यादव और संयोग से अध्यक्ष की कुरसी पर विराजमान शिवनंदन पासवान, भागवत झा आजाद के खैरखाह और परामर्शदाता बने रहे. बात-बात में विपक्षी नेता की कुरसी हथियाने के लिए लालायित लल्लू यादव पापड़ी राय बोस कांड जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहस के दौरान विधानसभा में मौजूद नहीं थे. राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति पर विपक्ष ने सरकार को नहीं लताड़ा. बिहार घोटालों और अराजकता का पर्याय बन गया है, पर आम आदमी के जीवन को तबाह करनेवाले तत्वों के संबंध में विपक्ष ने इस बार सवाल नहीं उठाये.

जनता दल के सुबोधकांत सहाय, मुंशीलाल राय और माकपा के अजीत सरकार को छोड़ कर शेष विपक्षी विधायक इस सत्र के दौरान खामोश ही रहे. चंद लोगों को छोड़ कर इन विपक्षी विधायकों ने अपने चरित्र और भूमिका से स्पष्ट कर दिया है कि वे सत्ता पक्ष के दलाल बनने के काबिल तो हैं, लेकिन जनता से जुड़ी समस्याओं पर सरकार हिलाने की कूबत उनमें नहीं है. इस आपाधापी में लोग यह महत्वपूर्ण सवाल नजरअंदाज कर गये हैं कि भागवत झा आजाद इस सत्र के दौरान अल्पमत के नेता सिद्ध हो चुके थे, फिर भी वह जिस नैतिकता के तहत कुरसी पर बने रहे, अगर विपक्ष की भूमिका निष्पक्ष रही होती, तो आज पूरे राज्य में इस सवाल पर आंदोलन चल रहा होता.

राज्यपाल के समक्ष प्रदर्शन कर एक बार भी विपक्ष ने अल्पमत में चल रही आजाद सरकार को बरखास्त करने की मांग नहीं की, यह प्रसंग महज आजाद से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि इसका महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि क्या इस संवैधानिक संकट पर विपक्ष खामोश रह कर संविधान की मूलभूत परंपरा-मंशा के साथ भविष्य में छेड़छाड़ के लिए सत्ताधारियों को नहीं न्योत रहा है?

इससे भी गंभीर पहलू यह है कि जनता दल में सर्वेसर्वा होने के लिए ऐसे हो लोग तिकड़म कर रहे हैं, जो सत्ता के हाथों बिके हुए हैं. बिहार आंदोलन से निकले और जमीन से जुड़े सुबोधकांत सहाय और नीतीश कुमार जैसे प्रखर विधायक चुप और ऐसे ही नेताओं का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं.

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