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बेरमो में प्रशासन चलाते हैं सफेदपोश लुटेरे

-हरिवंश- अंधेरी रात और लगातार बारिश के कारण बेरमो की उस बस्ती में घुसना लगभग नामुमकिन था. दुर्गंध, कीचड़ और घोर अंधेरा. लगता है औद्योगिकीकरण की अनिवार्य परिणति है, शहरों के बीच स्लम्स का कुकुरमुत्ते की तरह फैलाव. फिर भी स्लम शब्द अधूरा जान पड़ता है. ऐसी बस्ती की पीड़ा यह व्यक्त नहीं कर पाता. […]

-हरिवंश-

अंधेरी रात और लगातार बारिश के कारण बेरमो की उस बस्ती में घुसना लगभग नामुमकिन था. दुर्गंध, कीचड़ और घोर अंधेरा. लगता है औद्योगिकीकरण की अनिवार्य परिणति है, शहरों के बीच स्लम्स का कुकुरमुत्ते की तरह फैलाव. फिर भी स्लम शब्द अधूरा जान पड़ता है. ऐसी बस्ती की पीड़ा यह व्यक्त नहीं कर पाता. उस दमघोंटू और भयावह बस्ती में ही कन्हैया डोम की मां लवंगिया रहती है. बस्तीवाले कहते हैं. रात-बिरात कभी भी लवंगिया दहाड़ मारती है.

लवंगिया का एकमात्र लड़का कन्हैया नौकरी करता था. कोलयरी में वह स्वीपर था. लवंगिया कहती है उसका लड़का ‘परमामिंट’ (स्थायी) नौकरी करता था. खाने के लिए राशन जमुना सिंह की दुकान से आता था. कभी-कभार उधार भी चलता था. कुछ दिनों बाद अचानक एक दिन जमुना सिंह ने कन्हैया को तत्काल बकाया रकम चुकाने की खबर भेजी. कन्हैया के पास पैसे नहीं थे. वह जमुना सिंह से कतराता रहा. उसकी मां कहती है एक सुबह वह शौच के लिए घर से बाहर गया. रास्ते में ही जमुना सिंह ने उसे पकड़ लिया. दो दिन तक उसे अपने घर में बंद रखा. उसके साथ बदसलूकी की. कई कागजों पर दस्तखत करवाये. उनके घर से लौटने के बाद कन्हैया गुमशुम रहने लगा.

भुखमरी की स्थिति हो गयी. कन्हैया का रिश्तेदार बन कर जमुना सिंह ने उसकी जगह कोलयरी में नौकरी ले ली. उसकी मां बताती है कि घर में मारपीट कर कागज पर यमुना सिंह ने कन्हैया से लिखवा लिया कि वह उसके सगे हैं. इसके बाद कन्हैया की नौकरी छूट गयी. वह बेकार और बेरोजगार हो गया. अंतत: भुखमरी से ऊब कर अपने घर के सामने ही नीम के पेड़ पर उसने एक दिन फांसी लगा ली. कुछ दिनों बाद कन्हैया की पत्नी घर छोड़ गयी. उसका एकमात्र लड़का विजय भी उसके साथ चला गया. लवंगिया कहती है कि उसे अपने पोते की बहुत याद आती है. लेकिन वह परदेश में न जाने कहां है, ढूंढ़ना मुश्किल है.


इस बस्ती में लवंगिया अकेले नहीं है, जिसका सर्वस्व लूट गया हो. आधुनिक सभ्यता और औद्योगिकीकरण ने दिनदहाड़े ‘डकैती’ का जो अवसर दिया है, वह वर्ण व्यवस्था की कुरीतियों से कम भयावह नहीं. कोलयरी के नियमानुसार आदिवासी, पिछड़े और गरीब कर्मचारी एक निश्चित अवधि के बाद अपने नजदीकी रिश्तेदार को अपनी नौकरी दे कर सेवामुक्त हो सकते हैं. इस व्यवस्था का लाभ ऊंची जातियों के लोग कैसे उठा रहे हैं, यह गौरतलब है.

कन्हैया की तरह ही सरयू डोम, मुंद्रिका डोम और न जाने कितने लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. सरयू डोम तो बेरमो की सड़कों पर अर्द्ध विक्षिप्त बन कर भीख मांगता है. लेकिन उसके नजदीकी रिश्तेदार बने एक सवर्ण मौज से कोलयरी की उसकी नौकरी का लुफ्त उठा रहे हैं.

बेरमो की सड़क पर टहलते हुए आपको लोग दर्जनों ऐसे नाम बता देंगे, जिनकी जगह ‘स्वीपर’ बन कर सवर्ण जातियों के लोग कोलयरियों में घुसे. ऐसा नहीं है कि इस सार्वजनिक तथ्य से कोलयरियों के प्रबंधक-प्रशासन अनजान हों. दिखावे के लिए दर्जनों ऐसे लोगों के खिलाफ मुकदमे भी चल रहे हैं. जांच हो रही है, लेकिन ये लोग बरखास्त नहीं हुए है.

बरखास्तगी न होने की वजह?लोग कहते हैं, यहां सड़कों पर सार्वजिनक बहस न करें. बरसों से यहां लोग राजनीतिक दलों के बिल्ला लगाये गुंडों के आतंक में जी रहे हैं. इनकी समानांतर सरकार-व्यवस्था है, ये सभी कोलयरियों में नौकरी-ठेके के बहाने बाहर से यहां आये. मूल लोगों को उजाड़ा और खदेड़ा. खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद स्पष्ट हो गया कि कोयला आधुनिक हीरा है. सरकारीकरण से भ्रष्टाचार से एक काली दुनिया पनपी.

इस दुनिया में करोड़ों का हेरफेर मामूली बात है. अपराधी और अपढ़ राजनेता रातोंरात मालामाल हो गये, जिन्हें साइकिल नसीब नहीं थी, उन्हें कंटेसा और विदेशी कारों पर यात्रा करने में भी असुविधा होने लगी, जो खुले आसमान में तारे गिना करते थे, उनके महलों की चर्चा आसपास में होने लगी.


बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे का कार्यक्षेत्र बेरमो ही है. उनकी मरजी के बिना यहां पत्ता भी नहीं खड़कता. मुख्यमंत्री बनने के पहले से ही यहां उनकी तूती बोलती है. इधर के दबंग मजदूर नेताओं के वह सरगना हैं. कन्हैया डोम की नौकरी हड़पनेवाले यमुना सिंह समेत इस तरह के काम करनेवाले अनेक लोगों पर उनका वरदहस्त है. इस पूरे इलाके में कोयला खदानें फैली हुई हैं. इस तरह पूरे अंचल में इंटक का दबदबा है. दुबे जी इंटक के सर्वेसर्वा हैं. हर कोलयरी में इंटक के लोगों का आतंक है. इंटक सदस्यों पर कार्रवाई करने की हिम्मत कोलयरी प्रबंधन में नहीं है.

क्योंकि प्रबंधन और मजदूर नेता मिल कर कोयले के लूटखसोट में अपनी कला दिखा रहे हैं. बीसीसीएल और सीसीएल के मुख्यालयों में लोग मजदूर नेताओं से भय खाते हैं, तो भला खदान में उनके प्रतिनिधि भ्रष्टाचार रोकने की जुर्रत कैसे कर सकते हैं? अगर एकाध सिरिफरे अधिकारी मिल भी गये, तो रातोंरात उनका तबादला करा दिया जाता है, या मजदूर नेता अपनी इच्छानुसार उसे बेरोकटोक सजा दे कर ‘रास्ते’ पर ले आते हैं.


कल्याणी कोलयरी (न्यू सेलेक्टेड एरिया) में एक प्रोजेक्ट ऑफिसर पिछले 10 वर्षों से कार्यरत था. पिछले वर्ष अचानक सीसीएल प्रबंधन ने उनका स्थानांतरण कर दिया. वह सज्जन छुटटी पर चले गये. उनकी जगह एक नये प्रोजेक्ट अधिकारी एके सिन्हा आये. उन्होंने कमकाज आरंभ किया. कुछ ही महीनों बाद उनका पुन: स्थानांतरण हो गया. पुराने प्रोजेक्ट ऑफिसर का संबंध बेरमो के सबसे धनाढ्य ठेकेदार से है. वह ठेकेदार राज्य के मुख्य सूबेदार का सर्वेसर्वा है. उक्त अधिकारी के जाने से उस ठेकेदार महोदय को थोड़ी असुविधा हुई. उन्होंने तत्काल सत्ता गलियारे में अपनी फरियाद पहुंचायी. परिणाम, एक बदनाम प्रोजेक्ट ऑफिसर जो एक ही जगह 10 वर्षों से कार्यरत था. चंद महीनों में ही अपनी पुरानी जगह वापस लौट आया.

कहावत है कि खैर, खून, खांसी भला कैसे छिपाये जा सकते हैं? उक्त प्रोजेक्ट अधिकारी के भ्रष्टाचार के कारनामे दूर-दूर तक फैल गये थे. जून के अंतिम सप्ताह में सीबीआइ के अधिकारियों ने उक्त प्रोजेक्ट अधिकारी के यहां छापा मार कर अकूत धन बरामद किया. अवैध चीजें-कागजात मिले. फिर भी लोगों का खयाल है कि इस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी, क्योंकि राजसत्ता और धनसत्ता का उस पर वरदहस्त है.


खुलेआम काले धंधे में लगे लोगों की संख्या इस इलाके में अनगिनत है, जो इंटक का पदाधिकारी है, उसे पैसा लूटने का लाइसेंस मिल गया है. ऐसे लोग कोलयरी में काम करते हुए भी रोजाना उपस्थित नहीं होते. जहां काम करते हैं. वहां बेनामी ठेकेदारी भी करते-कराते हैं. ट्रांसपोर्ट का धंधा करते हैं. ऐसे अनेक मजदूर नेता हैं, जो कोलयरी में काम करते हैं, लेकिन धंधा करने के लिए बैंक से ऋण लिये हुए हैं. कानूनन एक नौकरी पेशा आदमी अपने नाम से व्यवसाय के लिए ऋण नहीं ले सकता. फुसरो और बेरमो में ऐसे मजदूर नेताओं का इतिहास कोई भी बता सकता है. कल तक जो लोग चूडि़यों की दुकान करते थे, छोटा धंधा कर पेट पालते थे, वे ही आज करोड़ों में खेलें, तो उन्हें भला कौन नहीं जानेगा.

बोकारो कोलयरी में परमेश्वर दुबे इंटक के सचिव हैं. बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री के बहनोई भी. उदय दुबे और देवता दुबे भी इनके सगे हैं. देवता दुबे सरकारी कार्यालय में काम करते हैं, साथ ही वह राज्य श्रमिक संघ (कांग्रेस) के सचिव भी हैं. इन लोगों के कारोबार के बारे में तरह-तरह की बातें सुनाई पड़ती हैं. इनकी हैसियत के बारे में लोग तरह-तरह की अटकलें लगाते हैं. उदय दुबे के बारे में अनुमान है कि उनके पास 30-40 लाख की संपत्ति है.

इसी तरह करगली कोलयरी में एसके तिवारी डंफर ऑपरेटर हैं. वह भी इंटक सचिव का पद पिछले 20 वर्षों से सुशोभित कर रहे हैं. तिवारी जी नौकरी करते हुए ट्रांसपोर्ट के धंधे में भी लग गये हैं. अपनी ट्रकें हैं. मजदूर संघ के नेता हैं. इस कारण ट्रांसपोर्ट का काम मिलने में कठिनाई नहीं होती.

करगली वाशरी में इंटक सचिव हैं, शंकर सिंह. करगली बाजार का अधिकांश हिस्सा श्री सिंह का ही है. आरोप है कि इन्होंने सीसीएल की जमीन अनधिकृत रूप से कब्जा कर रखा है. शंकर सिंह का भतीजा नरेंद्र सिंह उर्फ मुन्ना यहां का दबंग ठेकेदार है. लल्लन सिंह और बीके सिंह भी करगली में ही ठेकेदार हैं. इन लोगों पर आरोप है कि खास महल की कोलयरी से बिना पैसा दिये हुए इन लोगों ने 600 टन कोयला गायब कर दिया. ऐसा कोलयरी अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ. बहरहाल इन सफेदपोश लुटेरों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की अपेक्षा इस इलाके में कोई नहीं करता, क्योंकि ऊपर से नीचे तक इनका साम्राज्य फैला है. जिन दो लोगों पर 600 टन कोयले की चोरी का आरोप है, फिलहाल वे दोनों फर्जी नाम से फिर ठेकेदारी करने लगे हैं. कहते हैं, एक कांग्रेसी विधायक का इन पर वरदहस्त है. वह विधायक भी मुख्यमंत्री के प्रिय पात्र हैं.

फुसरो बाजार में लल्लन सिंह और सुदर्शन तिवारी मिल कर ठेकेदारी का कामकाज करते हैं. सीसीएल से स्लरी धंधा, ट्रांसपोर्ट का धंधा और बहुतेरे ऐसे काम इनके पास हैं. मिट्टी काटनेवाली बेशकीमती पोकलैंड मशीन है. 20-25 ट्रकें हैं. सीसीएल से इन्हें जो ठेके मिलते हैं, उनके खिलाफ कोई टेंडर नहीं भर सकता. कारोबार में मदद करने के लिए इन ठेकेदारों के पास अस्त्र-शस्त्रधारी पहलवान रहते हैं. टेंडर को ले कर ही इस ग्रुप से पिछले दिनों अखलाक अहमद की झड़प हुई. अखलाक जेपी आंदोलन के रास्ते राजनीति में आये. जनता पार्टी शासन में वह बिहार में मंत्री भी रहे.

पिछले लोकसभा चुनावों में गिरिडीह से सांसद का चुनाव वह बहुत कम मतों से हारे. इस इलाके में श्री अहमद काफी लोकिप्रय भी हैं. इन ठेकेदारों का प्रतिद्वंद्वी बन कर वहां कोई उभर नहीं सकता, इस प्रवृत्ति के खिलाफ उन्होंने आवाज उठायी, तो उन्हें धमकी मिली है.


कटहरा अंचल के पिपराडीह कोलयरी में रामबदन त्रिपाठी पहले चपरासी थे. फिलहाल कटहरा अंचल में इंटक के आंचलिक सचिव हैं. बिंदेश्वरी दुबे के ममेरे भाई भी. दुबे जी के सौजन्य से ही काफी पहले इधर आये. दुबे जी के मुख्यमंत्री बनते ही इनका रोबदाब और बढ़ गया. बड़ा कारोबार भी है. उनके सहयोगी बताते हैं कि आज इनके पास गांव और यहां मिला कर 40-50 लाख की संपत्ति होगी. इसी तरह मुख्यमंत्री जी के एक समधी अरुण चौबे सीसीएल के कर्मचारी है. कटहरा कोलयरी में इंटक के प्रभारी मंत्री भी. उनकी संपत्ति भी ‘दिन दूनी रात चौगुनी’ गति से बढ़ी है. कटहरा अंचल के ही जरनडीह प्रोजेक्ट में जुगल सिंह टेलीवान थे. टेलीवान यानी कोयले से भरी गाड़ी में धक्का लगानेवाला व्यक्ति. फिलहाल जुगल सिंह जरनडीह इंटक के सचिव हैं और 15-20 लाख की संपत्ति के हकदार.

ऐसे लोगों की सूची लंबी है. सुरेश सिंह कल्याणी कोलयरी में सर्वेयर हैं, साथ ही इंटक सचिव. बजरंगी सिंह तारमी कोलयरी में क्लर्क हैं, साथ ही इंटक के सचिव. मकोली कोलयरी में श्याम बिहारी सिंह, मुंशी और इंटक सचिव हैं. ढोढ़ी कोलयरी में दीनानाथ पांडेय लोडिंग इंस्पेटर हैं, साथ ही इंटक सचिव. रमाशंकर सिंह खास ढोढ़ी कोलयरी में फीटर हैं, साथ ही इंटक के पदाधिकारी. इन सभी मजदूर नेताओं ने अपने-अपने सूबे बांट रखे हैं. और इन सबकी माली हालत मजदूर नेता बनते ही अविश्वसनीय ढंग से बदल गयी है. ऐसे सभी नेताओं के शक्ति स्रोत हैं, बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे.

बिंदेश्वरी दुबे के सबसे घनिष्ठ मित्र हैं करोड़पति ठेकेदार मुरारी पांडेय. अफवाह तो यह भी है कि दुबे जी का कारोबार श्री पांडेय ही संभालते हैं. मुख्यमंत्री निवास में कभी भी किसी भी वक्त श्री पांडेय बेधड़क जा सकते हैं. बेरमो कांग्रेस के वह पदाधिकारी भी हैं. बेरमो बाजार में ही राजमहलनुमा उनका निवास है. पहले श्री पांडेय सीसीएल में लोअर डिवीजन क्लर्क थे. पिता टेलीफोन ऑपरेटर. कुछ वर्षों पूर्व श्री पांडेय ने नौकरी छोड़ दी. फिलहाल उनके पास 30-40 के बीच ट्रक, डंफर आदि हैं. एक पेट्रोल पंप है. छोटानागपुर के विभिन्न हिस्सों में 4-5 सिनेमा हॉल है. होटल भी हैं. कुछ ही वर्षों में इनकी हैसियत करोड़ों की हो गयी है. स्थानीय अधिकारी इनके सामने हाथ जोड़ कर खड़े रहते हैं. बेरमो में खुलेआम श्री पांडेय के खिलाफ कोई नहीं बोल सकता.

बहुत पहले बेरमो के रास्ते में ही मुकुंदलाल चनचनी की हत्या हुई थी. चनचनी बहुत संपन्न मारवाड़ी थे. बाद में उनके परिवार के लोगों को अपना व्यवसाय बिहार से समेट कर रुखसत हो जाना पड़ा. उस हत्याकांड में चार लोग गिरफ्तार हुए थे. मुरारी पांडेय, शंकर सिंह, नथुनी सिंह और बच्चा सिंह. ये सभी लोग बाद में अदालत से बरी हो गये. शंकर सिंह आज भी इंटक के सक्रिय लोगों में से हैं. उनका भी बड़ा कारोबार है. मुख्यमंत्री के प्रिय भी हैं.

मानपुर गया के राजेंद्र सिंह फिलहाल बेरमो से विधायक हैं. मुख्यमंत्री के चहेते भी. पहले बेरमो में चूड़ी की दुकान करते थे. बाद ढोढ़ी कोलयरी में लोडिंग इंस्पेक्टर हो गये. फिर दुबे जी की कृपा से राजनीति में आ गये. उनके विरोधी आरोप लगाते हैं कि 15 वर्षों की अवधि में श्री सिंह ने काफी संपत्ति बना ली है.

श्री सिंह की देखरेख में ही बिंदेश्वरी दुबे आवासीय महाविद्यालय (पिपरी) बेरमो में बन रहा है. प्रधानमंत्री को स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने पत्र लिख कर बताया है कि इस विद्यालय के निर्माण में व्यापक हेराफेरी हुई है. 5 जून 1985 को इस विद्यालय का शिलान्यास हुआ. अभी भी यह अधूरा है. प्रधानमंत्री को भेजे गये पत्र में स्थानीय लोगों ने कहा है कि इस विद्यालय के निर्माण में आदिवासियों की जमीनें हड़प ली गयी हैं. उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया है. विधायक राजेंद्र सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र में पड़नेवाली कोलयरियों -ढोढ़ी, बोकारो-करगली एवं कठारा से सीमेंट, लोहे का छड़ एवं नकद पैसे कॉलेज को दिलवाया. फिर भी विद्यालय बिल्कुल अधूरा है. इस इलाके में पहले से ही ‘कृष्णबल्लभ सहाय कॉलेज’ खस्ता हालत में चल रहा है.

इस अंचल में करोड़ों का कारोबार करनेवालों में और कई प्रमुख लोग हैं, मसलन बिगन सिंह, कामेश्वर शर्मा, भरत सिंह, शंकर सिंह और दुर्गा कंस्ट्रक्शन कंपनी. इन लोगों ने जब कारोबार आरंभ किया, तो इनकी हैसियत मामूली थी. आज इस इलाके की अर्थनीति और राजनीति ये लोग ही चलाते हैं. यहां के मूल बाशिंदों की हालत बदतर है. वे या तो बेगार खटते हैं या भिक्षाटन के लिए विवश हैं. इनकी जमीन पर भी इन सफेदपोश नेताओं ने कब्जा जमा रखा है.

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