-हरिवंश-
बिहार में धर्म भी फैशन हो गया है. सावन आया नहीं कि राज्य के कोने-कोने से लोग बैद्यनाथ धाम (देवघर) के लिए उमड़ पड़ेंगे. ये कांवरिये कहलाते हैं. इनकी वेशभूषा भी एक समान होती है. पूरे देश से यहां लोग आते हैं. शिव का यह मशहूर तीर्थस्थल है. इसके साथ अनेक दंतकथाएं व किंवदंतियां जुड़ी हैं. पिछले कुछ वर्षों से यहां आनेवालों में मनचले युवकों, भ्रष्ट लोगों की ही बहुतायत है. बिहार भ्रष्टाचार के लिए मशहूर है और भ्रष्टाचारी ‘बाबा’ (बैद्यनाथ धाम) के दर्शन के लिए अग्रणी रहते हैं. परंपरा यह है कि लोग सुल्तानगंज में गंगा नहाते हैं. जल लेते हैं और करीब 60-70 किलोमीटर पैदल कठिन पहाड़ी रास्ते तय कर देवघर पहुंचते हैं. वहां जल चढ़ाते हैं. बिहार में आज, जो बाबा को अपने सर्वाधिक नजदीक मानते हैं, वैसे एकाध भक्तों की बानगी देखिए.
पटना में एक बैंक में एक बहुत ही वरिष्ठ अधिकारी हैं. सही ढंग से अपना दस्तखत भी नहीं कर सकते. लेकिन करोड़ों के मालिक हैं. आयकरवालों ने छापा मारा, लेकिन इसके पूर्व ही उनकों सूचना मिल गयी थी. हर जगह उनकी पैठ है. प्रतिवर्ष सुल्तानगंज से देवघर की वे पैदल यात्रा करते हैं. उनका विश्वास है कि यह सब बाबा की कृपा है. उन्होंने ही मुझ जैसे बेपढ़ को इतना कुछ दिया है.
एक रिटायर्ड मुख्य अभियंता हैं. बेशुमार दौलत है. सब कुछ दो नंबर की कमाई. लेकिन बाबा के दर्शन के लिए पूरा परिवार सुल्तानगंज से देवघर पैदल जाता है. आगे-आगे जीप पर समान, पीछे-पीछे ये भक्तगण.रांची का एक कुख्यात अपराधी है. दुश्मनों के डर से प्रतिवर्ष बम-पिस्तौल व अपना गिरोह लेकर ‘बाबा’ का दर्शन करने जाता है. रास्ते में अपना धंधा भी करता है. अंत में भगवान शिव पर जल चढ़ाता है. उसका विश्वास है, पूरे वर्ष किये अपराधों से भगवान उसे ‘मुक्ति’ दिला देते हैं.
पटना के ही एक राजनेता हैं. केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं. काफी घोटाला करने के बाद अब कई तरह के व्यवसाय में लिप्त हैं. वे ‘बाबा’ के नियमित दर्शनार्थी हैं. वर्ष में चार बार उनकी देवघर यात्रा निश्चत है. उनका मानना है कि सब कुछ ‘बाबा’ का ही किया-कराया है. ‘बाबा’ ने ही दौलत दिया, मंत्री बनाया, प्रतिष्ठा दिलायी, आगे भी उन्हीं की सुध लेनी है.
ये बाबा के भक्तों के चंद नमूने हैं. पहले जो लोग इस कठिन यात्रा पर निकलते थे, उनका स्वागत होता था. रास्ते में पड़े गांवों के लोग अपने यहां ठहराते थे, पूरी देखभाल करते थे. कारण, ‘देवघर’ बिहार में श्रद्धा व भक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अब दर्शनार्थियों की हरकतों से हर जगह पुलिस की तैनाती होती है. पहले गलत धंधे-पेशे के लोग मंदिर के प्रांगण में घुसने से डरते थे. आजकल खासकर बिहार में जितने भी भ्रष्टाचार के आरोप में मुअत्तल अधिकारी हैं, अपराधी हैं, महत्वाकांक्षी राजनेता हैं, ये सभी बाबा के नियमित दर्शनार्थी हैं, व अपनी फरियाद लेकर वहां लगातार दौड़-धूप करते हैं.
इस वर्ष श्रावण मास के आरंभ में ही जिलेबिया मोड़ (देवघर से करीब 50 किलोमीटर दूर) के समीप अपराधकर्मियों के सशस्त्र गिरोह ने कांवरियों को लूट लिया. महिला कांवरियों के साथ बलात्कार किया. तीन युवतियों का अपहरण किया. ये अपराधी कांवरियों की वेशभूषा में थे. ये भी बाबा के दर्शन के लिए जा रहे थे. मुंगेर जिले में भी कांवरियों के एक दल को दो साधु कांवरियों ने परेशान किया. आसपास के लोगों ने मिलकर उनकी पिटाई की, वे मर गये. साधु कांवरियों के पास अपह्रत बालिका भी बरामद हुई. ऐसे अनगिनत वारदात हैं, जो अब ‘बाबा’ के तथाकथित भक्त करते-कराते हैं. ये घटनाएं प्रतिवर्ष हो रही हैं. इस वर्ष भी हुई हैं. लेकिन इनकी सुधि किसी को नहीं. कभी-कभी रास्ते में ही निष्ठावान दर्शनार्थी नारा लगाते हैं. ’बाबा’ बैद्यनाथ इन गुंडों से कब मुक्ति मिलेगी.
ये अपराधी महज रास्ते तक ही सीमित नहीं हैं, मंदिर में भी ऐसे तत्व हैं. जुलाई माह में एक पंडा परिवार में एक वृद्ध, एक वृद्धा व एक बालिका की हत्या कर दी गयी. जानकारों का कहना है कि इन पंडों की करतूतों का खुलासा हो, तो लोग इन जगहों पर जाना छोड़ दें. देवघर स्टेशन पर आप उतरें, पंडे आपको अपनी गिरफ्त में ले लेंगे. हर पंडे की अपनी खोली है. उसी में आपको ठहरना होगा. अंधेरे व सीलन भरे कमरे में घुटने के बाद जब मंदिर जायेंगे, तो चप्पे-चप्पे पर दलाल मिलेंगे. ‘परसाद’ खरीदवाने से दर्शन कराने तक. पंडागीरी की आड़ में कई तरह के धंधे साथ चलाते हैं. मंदिर में जहां ‘शिव’ की मूर्ति है, वह जगह अति संकरा व अंधेरा है. एक साथ पांच लोगों से अधिक वहां घुसे, तो दम घुटने लगता है.
पर पंडे उसी में भीड़ कराते हैं. दर्शन के दौरान मनचाहा पैसा चढ़वाते हैं. मंदिर में महिलाओं के जेवर गायब होते हैं, पॉकेट काट लिये जाते हैं. दान-दक्षिणा में भी जोर-जबरदस्ती होती है. अगर आप किसी पंडा को कुछ पैसा दे दीजिए, तो आपको विशेष दर्शन करा दिया जायेगा. हजारों-हजार लोग कतारों में सुबह से बिना खाये खड़े रहेंगे, उन्हें दर्शन नहीं होगा, क्योंकि वे छोटे पंडों के मुलाजिम होते हैं. बड़े व असरदार पंडे ‘महत्वपूर्ण लोगों’ को विशष्टि दरवाजे से खास दर्शन भी कराते हैं. धर्म के प्रांगण में यह सब पैसे का कमाल है. मंदिर की संपत्ति- चढ़ावा को लेकर भी पंडों की आपसी लड़ाई अदालत तक पहुंचती है.
भगवान के ठेकेदार इन पंडों के आपस में कई मुकदमे हैं. प्राय: आपस में खूनी संघर्ष भी होता है. लड़ाई-झगड़ा व पुलिस के पास रपट तो आम बात है. इन झगड़ों के मूल में हैं, ‘यजमान’ यानी दर्शनार्थी, चढ़ावा, मंदिर की संपत्ति व इनसे जुड़े अन्य धंधे. यौनाचार भी होता है.छुआछूत-भेदभाव व शोषण की तो पराकाष्ठा है. यह सब ‘बाबा’ के ठेकेदार पंडों की देखरेख में हो रहा है. ये लोग हिंदू धर्म का अपने को ‘स्वघोषित संरक्षक’ मानते हैं.