ब्रह्मा, विष्णु और महेश में केवल शिव ही हैं जिनके लिंग स्वरुप की पूजा की जाती है. भगवान शिव के लिंग की पूजा का काफी महत्व है. शिवलिंग पर फूल, दूध, दही, जल आदि चढ़ाने से साधक को मनवांक्षित फलों की प्राप्ति होती है. शिव पुरान में भगवान शिव के लिंग की पूजा और महत्व के बारे में बताया गया है. विभिन्न ऋषियों के यह पूछे जाने पर कि भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा क्यों होती है जबकि किसी अन्य देवता की पूजा इस रूप में नहीं की जाती है. सूतजी कहते हैं – शिवलिंग की स्थापना और पूजन के बारे में कोई और नहीं बता सकता. भगवान शंकर ने स्वयं अपने ही मुख से इसकी विवेचना की है. इस प्रश्न के समाधान के लिये भगवान शिवने जो जो कुछ कहा है और उसे मैंने गुरूजी के मुख से जिस प्रकार सुना हैं, उसी तरह क्रमश: वर्णन करुंगा. एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण ‘निष्कल’ (निराकार) कहे गये हैं. रूपवान होनेके कारण उन्हें ‘सकल’ भी कहा गया है. इसलिए वे सकल और निष्कल दोनों हैं.
शिव के निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ हैं. अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक हैं. इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता हैं अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरुप का प्रतीक होता है. सकल और अकल (समस्त अंग-आकार-सहित निराकार) रूप होने से ही वे ‘ब्रह्म’ शब्द से कहे जानेवाले परमात्मा हैं. सनतकुमार के प्रश्न के उत्तर में श्री नंदिकेश्वर ने यही जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि भगवान शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल (निराकार) हैं, इसलिये उन्हीं की पूजा में निष्कल लिंग का उपयोग होता है.
जब भगवान शंकर ने ब्रह्मा-विष्णु को बताया शिवलिंग पूजा का महत्व
सनतकुमार के सवाल के जवाब में नंदिकेश्वर कहते हैं – ब्रह्मा और विष्णु भगवान शंकर को प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़ उनके दायें-बायें भाग में चुपचाप खड़े हो गये, फिर उन्होंने वहां साक्षात प्रकट पूजनीय महादेव को श्रेष्ठ आसन पर स्थापित करके पवित्र पुरुष-वस्तुओं द्वारा उनका पूजन किया. इससे प्रसन्न हो भक्तिपूर्वक भगवान शिव ने वहां नम्रभाव से खड़े हुए उन दोनों देवताओं से मुस्कराकर कहा – आजका दिन एक महान दिन है. इसमें आप दोनों के द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है, इससे मैं बहुत प्रसन्न हूं. इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान से महान होगा. आज की यह तिथि ‘महाशिवरात्रि’ के नामसे विख्यात होकर मेरे लिये परम प्रिय होगी. जो महाशिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय रहकर अपनी शक्ति के अनुसार निश्चलभाव से मेरी यथोचित पूजा करेगा, उसको विशेष फल मिलेगा.
भगवान कहते हैं – पहले मैं जब ‘ज्योतिर्मय स्तम्भरूप से प्रकट हुआ था, वह समय मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र से युक्त पूर्णमासी या प्रतिपदा है. जो पुरुष मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र होनेपर पार्वतीसहित मेरा दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिंग की ही झाँकी करता हैं, वह मेरे लिये कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय है. उस शुभ दिन को मेरे दर्शनमात्र से पूरा फल प्राप्त होता है. वहां पर मैं लिंगरूप से प्रकट होकर बहुत बड़ा हो गया था. अत: उस लिंग के कारण यह भूतल ‘लिंगस्थान’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. यह लिंग सब प्रकार के भोग सुलभ करानेवाला तथा भोग और मोक्षका एकमात्र साधन है. इसका दर्शन, स्पर्श और ध्यान किया जाय तो यह प्राणियों को जन्म और मृत्यु के कष्ट से छुडानेवाला है.