हमारा दिमाग निरंतर सुख और दुख से प्रभावित रहता है. सुख या खुशी प्यार और रिश्तों से मिलता है, जबकि दुख या पीड़ा नफरत से जन्म लेती है. इसलिए यह घुमक्कड़ मन हमेशा खुशी और गम के बीच और चीजों और इच्छाओं के बीच अटक जाता है. लेकिन मन जब ध्यान और स्व-जागृति के द्वारा अपने अंदर झांकने लगता है, तो यह मुक्ति की ओर बढ़ने लगता है.
ध्यान हमारे मन और शरीर के द्वारा अपनी पहुंच बनाता है और खुद के आंतरिक मन को टटोलने की अनुमति देता है, जो हमें शांति तलाशने में मदद करती है. लेकिन इस अधीर मन के लिए स्थिर होना मुश्किल होता है. प्राय: हमारा दिमाग वहां नहीं होता जहां हमारा शरीर होता है, बल्कि यह खुद के लिए भटकता रहता है. लेकिन यह इसका मूल स्वभाव है.
जब यह नियंत्रण में होता है, तो यह सबसे ताकतवर हथियार बन जाता है, जो आपकी जिंदगी बदल सकता है. ध्यान करना तभी संभव है, जब अस्थिर विचारों में बिना किसी दबाव या अभिव्यक्ति के स्थिरता आ जाये और बिना किसी हलचल के बौद्धिकता अविभाज्य रहे. जब आप गहरे ध्यान की अवस्था में होते हैं, तो मानव स्वभाव (चित्त) में विराजमान सारी मिथ्या (वृत्ति) दूर हो जाती है, जो योग-चित्त-वित्त-निरोध कहलाता है. अपने सच्चे रूप को तलाशने के लिए अपनी प्रकृति में झांकना जरूरी है. ध्यान की शुरुआत तब होती है, जब आप स्वंय को अहंकार से अलग कर लेते हैं. ध्यान एक प्रकार की जागरूकता है, जो अपने मन, शरीर और प्राण के प्रति होती है.
जब यह जागरूकता एक लंबे समय के लिए बनी रहती है, तो आप समाधि की अवस्था में प्रवेश करते हैं. आप तब ध्यान में होते हैं, जब खुद को भ्रम से अलग कर लेते हैं और सर्वोच्चता को पा लेते हैं. आनंद हमारे अंदर समाहित है. आपको बस अपनी भावनाओं और विचारों के प्रति जागरूक होना है.
जब ध्यान गहरे स्तर पर होत है, तो आप स्वयं में शांति महसूस करते हैं और आपके अंदर दूसरों के प्रति प्यार और करुणा की भावना होती है. ध्यान के द्वारा आप खुद को बाहरी संसार से अलग करने के अनुशासित कर सकते हैं और अपने अंदर झांककर खुद को दिव्यता से जोड़ सकते हैं.
– याेगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी