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फिल्म रिव्यू ‘उड़ता पंजाब”: यह यश चोपड़ा वाला नहीं अभिषेक चौबे का हकीकत वाला ‘पंजाब” है…

II अनुप्रिया अनंत II फिल्म : उड़ता पंजाब कलाकार : शाहिद कपूर, करीना कपूर खान, आलिया भट्ट, दिलजीत दोसांझ, सतीश कौशिक निर्देशक : अभिषेक चौबे निर्माता : अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवाणे, विकास बहल, एकता कपूर लेखक : सुदीप शर्मा, अभिषेक चौबे रेटिंग : 4.5 स्टार हां, यह यश चोपड़ा और करन जौहर वाला फिल्मी ‘पंजाब’ […]

II अनुप्रिया अनंत II

फिल्म : उड़ता पंजाब

कलाकार : शाहिद कपूर, करीना कपूर खान, आलिया भट्ट, दिलजीत दोसांझ, सतीश कौशिक

निर्देशक : अभिषेक चौबे

निर्माता : अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवाणे, विकास बहल, एकता कपूर

लेखक : सुदीप शर्मा, अभिषेक चौबे

रेटिंग : 4.5 स्टार

हां, यह यश चोपड़ा और करन जौहर वाला फिल्मी ‘पंजाब’ नहीं है, जहां सरसो के खेत हैं, मक्के दी रोटी ते सरसो दा साग है. हां, यहां लस्सी के लंबे-लंबे गिलास नहीं हैं. लोहरी नहीं है, हरियाली नहीं है. चूंकि यह अभिषेक चौबे का सिनेमा है. यह अभिषेक चौबे का ऐसा फिल्मी पंजाब है जो कि हकीकत के बेहद करीब है. जिन्हें पंजाब की उस खूबसूरती से प्यार है,उन्हें शायद यह फिल्म बेतूकी लग सकती है.

लेकिन जो हकीकत देखने और समझने में विश्वास करते हैं. उन्हें फिल्म बेहद पसंद आयेगी. जी हां, फिल्म सच्चाई बयां करती है. इसलिए रोंगटे खड़ी करती है. उनके लिए यह फिल्म आइ ओपनर है. फिल्म की ओपनिंग दृश्य एक व्यक्ति जिसकी जर्सी पर एथेलिट लिखा हुआ है. वह एक पैकेट हवा में उछालता है और फिल्म का शीर्षक आपके सामने आता है ‘उड़ता पंजाब’.

पहले ही दृश्य में निर्देशक अपने शीर्षक को सार्थक साबित कर देते हैं. पिछले कई दिनों से ‘उड़ता पंजाब’ को लेकर शोर है. सीबीएफसी और फिल्म के निर्माताओं के बीच फिल्म के कट्स को लेकर ठनी थी. लेकिन आखिरकार फिल्म रिलीज हुई और सिर्फ एक आवश्यक कट के साथ. दरअसल, ‘उड़ता पंजाब’ को हम उन फिल्मों की फेहरिस्त में बिल्कुल शामिल नहीं कर सकते, जो सिनेमेटिक लिबर्टी के नाम पर ड्रग्स जैसे विषयों को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने की कोशिश करते हैं.

इस फिल्म की खासियत यही है कि पूरा मुद्दा ड्रग्स की समस्या को लेकर है. लेकिन बेवजह गाने या पब, या नाच-गाने या गाने के बोल या किसी दृश्य में बेवजह किरदारों को ड्रग्स की आगोश में सोते और नशे में धुत, अपनी ही धुन में भजन कीर्तन कराते नहीं दिखाया गया है. निर्देशक अभिषेक चौबे की यह फिल्म पंजाब की एक भयानक समस्या के प्री इफेक्ट्स और आफ्टर इफेक्ट्स का चिट्ठा खोलती एक आवश्यक डॉक्यूमेंटेशन है.

निश्चय ही फिल्म की कहानी गढ़ने में निर्देशक अभिषेक चौबे और लेखक सुदीप शर्मा ने अपनी शोध और अध्ययन में काफी वक्त दिया होगा. चूंकि फिल्म की कहानी में भटकाव नहीं. फिल्म के संवाद सिर्फ बोले हुए संवाद नहीं, बल्कि दृश्यों में भी संवाद नजर आते हैं. यहां नारेबाजी नहीं है. यहां शोर-शराबा नहीं है. बड़े-बड़े शगूफे नहीं छोड़े जा रहे. लेकिन फिल्म देखते वक्त आप महसूस करेंगे कि आप ठगे नहीं जा रहे.

अभिषेक अपने चार महत्वपूर्ण किरदारों के माध्यम से उन तमाम जिंदगियों की जीवनशैली को छूने की कोशिश कर रहे हैं, जो ड्रग्स की चपेट में आकर अपनी जिंदगी तबाह कर रहे हैं. दरअसल, यह फिल्म एक आइ ओपनर है. उन तमाम युवाओं के लिए, जिन्हें सिर्फ कूल दिखना है. इसलिए वे नशा करते हैं. फिल्म का महत्वपूर्ण किरदार टॉमी सिंह, पॉपस्टार है. युवाओं का आइकॉन.

22 साल की उम्र में पॉपस्टार है. वह कूल है, नशेड़ी है तो क्या हुआ युवाओं को उसकी तरह ही दिखना है. टॉमी सिंह भी सिर्फ अपनी धुन में रहता बेपरवाह. लेकिन अचानक उसके सामने एक ऐसी हकीकत आती है, जिससे उसे समझ आता है कि वह गबरू नहीं फुद्दू है, लूजर है. टॉमी सिंह के किरदार और उनके साथ की परिस्थितियों के माध्यम ने निर्देशक युवाओं की उस पीढ़ी को आगाह करने की कोशिश कर रहे हैं, जो हर पल सोशल मीडिया पर नये आदर्श तलाशते हैं और उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं.

निर्देशक ने इसके भयावह सच का जो चित्रण किया है. वह रोंगटे खड़े करने वाला है. जहां एक तरफ टॉमी सिंह की चकाचौंध दुनिया है, वही दूसरी तरफ बिहार की एक हॉकी प्लेयर जो कि पलायन में पंजाब आ पहुंची है. उसकी कहानी बयां की है. आलिया भट्ट द्वारा निभाया गया यह किरदार उस कौम का प्रतिनिधित्व करता है, जो सिर्फ शोषण का ही शिकार हो रही है. तीसरा किरदार सरताज पुलिस में है. लेकिन उसकी आंखें भी तभी खुलती है, जब घर पर बीतती है.

डॉक्टर की भूमिका में करीना कपूर खान हैं. सरताज और डॉक्टर की जोड़ी मिल कर ड्रग की जड़ को खत्म करने की कोशिश करते हैं. यह फिल्म इस लिहाज से भी एक प्रयोग है कि फिल्म के चारों महत्वपूर्ण किरदारों की कहानी एक तार से बंधी है. चारों का कनेक् शन है. लेकिन चारों का मिलना निर्देशक ने फिल्म में अनिवार्य नहीं बनाया है और यह बात भी फिल्म को अलग पहचान देती है. ड्रग के मुद्दे को लेकर पहले भी फिल्में बनी हैं. लेकिन वे फिल्में फिल्मी नजर आयी हैं.

इस फिल्म में एक खोखली लोकप्रियता की जिंदगी जीता एक आइकॉन, गरीबी की मार झेल रही दुखियारी लड़की, एक डॉक्टर जो कि ड्रग को जड़ से खत्म करने की जद्दोजहद में जुटी है और एक पुलिस सिपाही, जो पॉवर होने के बावजूद निहत्था है. इन चार किरदारों के माध्यम से निर्देशक ने तमाम जिंदगियों में झांकने की कोशिश की है. दृश्य-दर दृश्य जिस तरह इस पूरे मायाजाल का चिट्ठा निर्देशक खोलते हैं. आप चौंकते हैं. शाहिद कपूर ने हैदर के बाद एक बार फिर से एक सनकी टॉमी सिंह के किरदार को जीवंत किया है. उनके हाव-भाव, लहजा, वेशभूषा ध्यान खींचती है.

आलिया भट्ट बधाई की पात्र हैं, कि उन्होंने इस किरदार को निभाने के लिए हां कहा. परदे पर एक मजदूर कौम की व्यथा का चित्रण वह जिस तरह करती हैं. उनकी बेबसी रूलाती है. दिलजीत पहली ही फिल्म में आकर्षित कर रहे हैं. करीना कपूर ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. सतीश कौशिक लंबे अरसे के बाद स्टिरियोटाइप से हटे हैं. उनकी उपस्थिति फिल्म को और रौनक करती है. फिल्म में पंजाबी लहजे को बरकरार रखने की पूरी कोशिश की गयी है.

आमतौर पर फिल्मों में कुछ दृश्यों के बाद वह लहजा छूट जाता है. लेकिन आलिया भट्ट की भोजपुरी में काफी त्रूटियां नजर आती है. यह फिल्म की कमजोर कड़ी है. फिल्म के अधिकतर दृश्य रात में फिल्माये गये हैं. अमित त्रिवेदी का संगीत उन दृश्यों को विश्वसनीयता प्रदान करता है.

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