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ताकि मौत ‘ब्रेकिंग न्यूज’ बन जाये!

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक इस बार अमेरिका समेत, पश्चिमी टीवी चैनलों ने इसलामिक स्टेट आॅफ इराक एंड सीरिया (आइसिस) सरगना अबू बक्र अल बगदादी की कथित मौत की खबर को चलाने से पहले पूरी सावधानी बरती है. ‘बगदादी की मौत’, पश्चिमी अखबारों की हेडलाइन भी नहीं बनी है. मीडिया के जिम्मेवार लोग […]

पुष्परंजन

ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक

इस बार अमेरिका समेत, पश्चिमी टीवी चैनलों ने इसलामिक स्टेट आॅफ इराक एंड सीरिया (आइसिस) सरगना अबू बक्र अल बगदादी की कथित मौत की खबर को चलाने से पहले पूरी सावधानी बरती है. ‘बगदादी की मौत’, पश्चिमी अखबारों की हेडलाइन भी नहीं बनी है. मीडिया के जिम्मेवार लोग इस बार पूरी तरह से पेंटागन पर आश्रित हैं, ताकि अमेरिकी रक्षा मंत्रालय, सीआइए, अथवा ‘नाटो’ इसकी पुष्टि करे कि अबू बक्र बगदादी सचमुच मारा गया. ‘मोसाद’ के जासूसों ने अभी इजराइल को हरी झंडी नहीं दी है. रूसी सरकारी मीडिया ‘स्पुतनिक न्यूज’ ने भी ‘टोपी’ अमेरिका को पहनाते हुए हेडलाइन बनायी कि अमेरिकी नेतृत्व वाले गंठबंधन ने ‘दाइश लीडर’ बगदादी की मौत की खबर से इनकार किया.

यह खबर जहां से चली, उसे खोदने में अब दुनिया की तमाम एजेंसियां लग गयी हैं. आइसिस के रहमो-करम पर चलनेवाली ‘अमाक न्यूज एजेंसी’ द्वारा एक ‘इमेज’ के जारी किये जाने पर यह खबर गढ़ दी गयी कि पांचवें रमादान (रमजान को अरबी इलाके में ‘रमादान’ बोलते हैं) के दिन ‘दाइश की राजधानी’ रक्का में गंठबंधन सैनिकों की गोलीबारी में अबू बक्र बगदादी बुरी तरह घायल हुआ था, और अब उसकी मौत हो गयी. मगर, ‘इसलामिक स्टेट’ का आॅफिशियल रेडियो ‘अल बयान’ ने बगदादी को लेकर ऐसी किसी भी खबर का प्रसारण नहीं किया है.

ऐसी खबरों को चलाने में मीडिया की साख सबसे पहले दावं पर लगती है. ऐसा दसियों बार हुआ है कि मध्य-पूर्व के बड़े अखबार और चैनल बगदादी की मौत की झूठी खबर को लेकर माफी मांग चुके हैं. ऐसी सनसनी सबसे पहले टर्किश, कुर्दिश, इराकी, और सीरियाई मीडिया में फैलती है, फिर उसका ‘वायरस’ समूचे अरब और पश्चिमी मीडिया में व्याप जाता है.

8 सितंबर, 2014 को ‘इराकी न्यूज’ ने गोली से मारे गये आइसिस फाइटर सामी अब्दुल्लाहू की तस्वीर कुछ इस अंदाज में छापी, मानों वह लाश अबू बक्र अल बगदादी की हो. बगदादी की शक्ल बहुत हद तक सामी अब्दुल्लाहू से मिलती थी. बाद में कई एजेंसियों और सरकारों ने उस तस्वीर की असलियत को उजागर किया, तो ‘इराकी न्यूज’ को माफी मांगनी पड़ी. इराकी अखबार ‘अल सबाह’ को भी ऐसी ही शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. ‘अल सबाह’ ने उन्हीं दिनों तल अफ्तार और सिंजार में अमेरिकी हमले के हवाले से कहानी गढ़ दी कि बगदादी बुरी तरह जख्मी था और यह रही उसकी लाश की तस्वीर! यह सारा कुछ ‘न्यूज ब्रेक’ करने की हड़बड़ी में हुआ था.

आइसिस सरगना अबू बक्र बगदादी संभवतः दुनिया का पहला आतंकवादी है, जिसकी मौत को लेकर सबसे अधिक ‘ब्रेकिंग न्यूज’ चलायी गयी है. इतनी कयासक्यारी ओसामा बिन लादेन को लेकर भी नहीं हुई थी. ओसामा की प्लास्टिक सर्जरी से शक्ल बदल देने के अलावा कई तरह की रहस्यमय बीमारियों की दंतकथाएं मीडिया में खूब चलती रहती थीं. चूंकि, एबटाबाद आॅपरेशन में अमेरिकी मरीन के कमांडो खुद शामिल थे, इसलिए उसकी मौत की खबर में शक की जरा-सी भी गुंजाइश नहीं बनी थी.

यह भी संभव है कि ‘आइसिस’ के कमांडरों ने पश्चिमी खुफिया एजेंसियों की नब्ज टटोलने के वास्ते और रणनीतिक बदलाव के लिए बगदादी की मौत का फसाना गढ़ा हो. मगर, सबसे बड़ा सवाल सीआइए, एमआइ-फाइव, मोसाद, केजीबी और बीएनडी जैसी दुनिया की दिग्गज खुफिया एजेंसियों की क्षमता और उनके अफसरों की काबिलियत को लेकर उठता है. इन खुफिया एजेंसियों के पास उपग्रहों से संचालित जीपीएस से लेकर, चप्पे-चप्पे पर नजर रखनेवाली ड्रोन प्रणाली तक उपलब्ध हैं. उनके तमाम एजेंट मध्य-पूर्व में फैले हुए हैं, फिर भी अबू बक्र बगदादी उनके लिए एक रहस्य जैसा क्यों है?

क्या बगदादी की मौत के बाद ‘आइसिस’ विद्रोही नेतृत्व-विहीन हो जायेंगे? ऐसा नहीं लगता. ऐसा हुआ तो आइसिस की ‘शूरा काउंसिल’ तय करेगी कि अल बगदादी के बाद इस संगठन का मुखिया कौन होगा. बगदादी के दो डिपुटी हैं, पहला अबू मुस्लिम अल-तुर्कमानी, जिसके जिम्मे इराक का मिशन देखना है, दूसरा अबू अली अल-अनबारी है, जो सीरिया आॅपरेशन का इंचार्ज है. दोनों किसी जमाने मेें सद्दाम हुसैन की सेना में रह चुके हैं.

इन दोनों के अलावा आइसिस का मुख्य प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल अदनानी, ‘खलीफा’ की गद्दी का तीसरा दावेदार हो सकता है. इराक और सीरिया में आइसिस ने 12 प्रांतीय गवर्नर नियुक्त किये हंै, इनमें से कोई भी बगदादी का विकल्प हो सकता है!

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