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कैसे फिसला बंगाल !

-हरिवंश- गोखले ने टिप्पणी की थी, वाट बंगाल थिंक्स टुडे कंट्री थिंक्स टूमारो (बंगाल जो आज सोचता है, देश एक दिन बाद सोचता है). समाज सुधार, पुनर्जागरण आंदोलन (रेनेसां) और अपनी शिक्षण संस्थाओं के कारण बंगाल देश का अग्रणी राज्य बना. गुलाम भारत में भी बंगाल से निकले लोगों ने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी. […]

-हरिवंश-

गोखले ने टिप्पणी की थी, वाट बंगाल थिंक्स टुडे कंट्री थिंक्स टूमारो (बंगाल जो आज सोचता है, देश एक दिन बाद सोचता है). समाज सुधार, पुनर्जागरण आंदोलन (रेनेसां) और अपनी शिक्षण संस्थाओं के कारण बंगाल देश का अग्रणी राज्य बना. गुलाम भारत में भी बंगाल से निकले लोगों ने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी. अपनी विद्वता के कारण. चरित्र के कारण. अपनी सृजनात्मकता के कारण. अपनी आध्यात्मिक शक्ति के कारण. मूल्यों के अनुसार जीने के कारण. बंगाल से निकले नेतृत्व ने भारत को एक नयी आभा दी.

इन सभी चीजों में बंगाल की शिक्षण संस्थाओं का अद्भुत योगदान रहा. लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी कलकत्ता यूनिवर्सिटी पूरे देश की बौद्धिक रहनुमाई का सेंटर बनी. नये विचारों के फैलाव का केंद्र.1977 में वामपंथ, बंगाल में सत्तारूढ़ हुआ. आज 32 वर्षों बात भी वह अभेद्य है. पर अब हालात बदले हैं. बुद्धदेव बाबू की छवि अच्छी है. वह ईमानदार हैं. उनकी गुडविल है. उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र में बंगाल की खोयी गरिमा लाने की ईमानदार कोशिश भी की.

फिर भी वाम मोर्चा उतार पर है. तटस्थ समीक्षक कहते हैं, बंगाल में वाम मोर्चा के सांसद अप्रत्याशित रूप से कम होंगे. कहां और कैसे चूका, यह वामपंथ, यह समझने के लिए राजनीति से अधिक, प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर संतोष भट्टाचार्य की पुस्तक मदद करती है. पुस्तक का नाम है ‘रेड हैमर ओवर कलकत्ता यूनिवर्सिटी’ (कलकत्ता विश्वविद्यालय पर लाल हथौड़ा). लगभग 700 पेजों की पुस्तक है. हार्ड बाउंड है. पुस्तक छापा है ‘द स्टेट्समैन’ अखबार ने. कीमत है 595 रूपये.

कौन हैं, प्रो संतोष भट्टाचार्य? क्यों लिखी उन्होंने यह पुस्तक? और क्यों हर जागरूक भारतीय को, जिसके मन में एक मुकम्मल भारत का सपना है, यह पुस्तक पढ़नी चाहिए? प्रो संतोष भट्टाचार्य, कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे. 1984 से 1987 के बीच. मूलत: अर्थशास्त्री जानेमाने प्राध्यापक. तीन दशकों से अधिक तक अर्थशास्त्र पढ़ाया. विश्व विद्यालय के विभिन्न पदों पर रहे. संयुक्त राष्ट्र में भी रहे.

अनेक महत्वपूर्ण सरकारी समितियों में रहे. पर इससे भी महत्वपूर्ण परिचय उनका है कि वह छात्र जीवन में कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के ‘होल टाइमर’ (24 घंटे के समर्पित)काडर थे. बाद में भी कम्युनिस्ट पार्टी से भावनात्मक रूप से जुड़े रहे. पर तीखे अुनभवों के बाद, इस विचारधारा से अपना नाता तोड़ लिया. उन्होंने भूमिका में लिखा है, जब हम युवा थे, तो एडगर स्नो की मशहूर पुस्तक ‘रेड स्टार ओवर चाइना’ से हमारी पीढ़ी और हम सम्मोहित थे.

क्रांति के लिए कम्युनिस्टों के बलिदान का सार्वजनिक वर्णन. पर बाद में कम्युनिस्ट शासन में चीन में हुए जुल्म और बही खून की नदी के दस्तावेजों से वे अवगत हुए, तो उनका मोह भंग हुआ. तब प्रो भट्टाचार्य को लगा कि ‘पीपुल्स पावर’ (लोक शक्ति) के नाम पर जनता पर ‘रेड हैमर’ (लाल हथौड़ा) चला. जुल्म और उत्पीड़न का यह अध्याय, दुखों से भरा महाकाव्य है. फिर वह कहते हैं कि एडगर स्नो से क्षमा सहित इस पुस्तक के नाम में भी ‘रेड हैमर’ शब्द है क्योंकि ‘रेड हैमर’ काल और देश की भिन्नता के साथ बंगाल में भी हुआ. मूलत: कलकत्ता विश्व विद्यालय में कम्युनिस्टों ने अपने शासन में क्या किया, यह किताब इसका दस्तावेज है. एक जानेमाने प्राध्यापक व अर्थशास्त्री द्वारा लिखित, एक वाइसचांसलर के प्रत्यक्ष अनुभव.

दरअसल कलकत्ता विश्वविद्यालय अपनी बौद्धिक उपलब्धियों, राष्ट्रीय चरित्र और श्रेष्ठ गुणवत्ता के कारण देश के अंदर और बाहर विख्यात था. पर अब वह गौरव खत्म है. क्यों? इसके प्रामाणिक तथ्य इस पुस्तक में हैं. कभी शिक्षा की दुनिया में कलकत्ता विश्वविद्यालय को पूरे यूरोप में लोग पूरब का श्रेष्ठ केंद्र कहते थे. तब यहां एकेडमिक ऑटोनामी (अकादमिक स्वायत्ता) थी. पर वाम मोर्चा सरकार ने 1979 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी एक्ट लागू किया. यहीं से विश्वविद्यालय अपनी चमक खोने लगा. श्रेष्ठ गुणवत्ता और शिक्षा पर राजनीतिक नियंत्रण, साथ-साथ नहीं चलते. यह बंगाल के कम्युनिस्टों ने नहीं सीखा. वे साम्यवादी उदाहरण भी देखने-समझने के लिए तैयार नहीं थे. कम्युनिस्ट शासनों में ही मास्को यूनिवर्सिटी और बीजिंग यूनिवर्सिटी श्रेष्ठ बौद्धिक केंद्र बने रहे. चीन और रूस के शासकों ने इन्हें बढ़ाने में सहयोग किया. इन विश्वविद्यालयों के नियम-कानून अत्यंत सख्त हैं ताकि वे श्रेष्ठ बने रहें. माकपा ने लोकलुभावन रास्ता चुना.

योग्यता की जगह अन्य तत्वों को तरजीह दी. स्तरीय गुणवत्ता के साथ समझौता. राजनीतिक लाभ से प्रेरित कदम उठाये जाने लगे. हर स्तर पर हस्तक्षेप. नियम-कानूनों का मजाक. नियुक्तियों के आदेश. विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कामों में पग-पग पर हस्तक्षेप. इस तरह एक श्रेष्ठ संस्थान मीडियॉकर (अतिसामान्य) बना दिया गया. यहां तक की अंग्रेजों के शासन में भी 1947 तक इसमें दुनिया के विशिष्ट लोग थे. प्रो नीलरतन सरकार, प्रो भूपेंद्रनाथ बोस, जदुनाथ सरकार, आशुतोष मुखर्जी जैसे लोग वाइसचांसलर रहे.

देश का नाम दुनिया में रोशन करनेवाले अध्यापक यहां रहे. प्रो जगदीशचंद्र बोस, प्रो सी वी रमण, प्रो प्रफुल्लचंद्र राय, डॉ गणेश प्रसाद, प्रो सत्येंद्रनाथ बोस, प्रो मेगानंद साहा, डा अवनींद्रनाथ टैगोर, सर्वपल्ली राधाकृष्णनन वगैरह. राजेंद्र प्रसाद और सुभाषचंद्र बोस जैसे विद्यार्थी रहे. यहां से निकले लोगों ने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी, रहनुमाई की.

सप्रमाण दस्तावेजों के साथ इस किताब में ये तथ्य दिये गये हैं कि कैसे एक शानदार विश्वविद्यालय, गौरवशाली विद्यापीठ खत्म हुआ? लेखक के अनुसार इसकी शुरूआत माकपा के शासन से हुआ. यह पतन सिर्फ कलकत्ता विश्वविद्यालय का नहीं हुआ. लेखक का मानना है कि बंगाल के अन्य विश्वविद्यालयों की और दुर्दशा हुई. चूंकि कलकत्ता विश्वविद्यालय दुनिया में प्रतिष्ठित था, इसलिए उस दुर्गति के दस्तावेज इस किताब में हैं. लेखक कहते हैं कि भारत के किसी और राज्य में शायद इतनी क्रूरता और कठोरता से हर स्तर पर शिक्षा का नियंत्रण, किसी पार्टी ने नहीं किया.

इस तरह कलकत्ता विश्वविद्यालय का एकेडमिक वर्ल्ड, ‘रेड हैमर’ के नीचे आ गया. विश्वविद्यालय में चुनी गयी प्रशासकीय इकाई अचानक बरखास्त कर दी गयी. नॉमिनेटेड काउंसिल बनी. इस काउंसिल में सत्तारूढ़ पार्टी के लोग और उनके सहयोगी थे. लेखक कहते हैं कि यह स्टालिन की डेमोक्रेसी थी. प्रो संतोष भट्टाचार्य जब वाइसचांसलर बने, तो सरकार और पार्टी ने कैसे उनका काम करना बंद करा दिया, इसके सारे कागजात और दस्तावेज इस पुस्तक में संकलित किये गये हैं.

इस पुस्तक को छपवाने में प्रो भट्टाचार्य को काफी परेशानी हुई. कोई प्रकाशक नहीं मिला. अंतत: द स्टेट्समैन ने छापा. वाइसचांसलर पद छोड़ने के बीस वर्षों बाद उन्होंने पुस्तक का प्रकाशन किया है. क्यों? उन्हीं को सुने. क्योंकि यह एक संघर्ष है. कम्युनिस्ट पार्टी के एक पूर्व कार्ड होल्डर (जो बाद में रिफारमर बन गया) और अनरिपेनटेंट लेनिनिस्ट (पश्चाताप न करने वाले लेनिनवादी) के बीच. अकादमिक सवालों पर, प्रशासनिक सवालों पर. लेखक कहते है ‘द गॉड दैट फेल्ड’ यानी साम्यवाद के जिस ईश्वर ने प्रो भट्टाचार्य को युवा दिनों में ही अपने पाश में बांध लिया था, जीवन के अनुभव ने एहसास करा दिया कि यह ईश्वर मर गया है.

‘द गॉड दैट फेल्ड’ दुनिया की अत्यंत चर्चित पुस्तकों में से रही है. 1949 में यह पुस्तक छपी थी. इस पुस्तक को उन लोगों ने लिखा जो पहले कट्टर साम्यवादी थे, जिन्होंने इसमें मानव मुक्ति का सपना देखा था. पर साम्यवाद की असलियत देखकर जिनका मोह भंग हो गया. इस पुस्तक का संपादन किया था ब्रिटेन के रिचर्ड क्रॉसमैन ने. इस पुस्तक में दुनिया की छह जानीमानी हस्तियों ने अपने अनुभव लिखे. लुइस फिशर, आंद्रे गिडे, आर्थर कोसलर, इगनेजियो सिलोन, सिटेफन स्पेंडर और रिचर्ड राइट.

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