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एनजीओ से शौचालय बनवाने को मजबूर

अनियमितता. मुखिया, अधिकारी की मिलीभगत से खुले में शौच से मुक्ति के अभियान में उड़ रही नियमों की धज्जियां मेदिनीनगर : स्वच्छता अभियान के तहत देश भर के गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने का अभियान जोर-शोर से चल रहा है. झारखंड में भी इस अभियान ने तेजी पकड़ ली है. पडवा पलामू […]

अनियमितता. मुखिया, अधिकारी की मिलीभगत से खुले में शौच से मुक्ति के अभियान में उड़ रही नियमों की धज्जियां
मेदिनीनगर : स्वच्छता अभियान के तहत देश भर के गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने का अभियान जोर-शोर से चल रहा है. झारखंड में भी इस अभियान ने तेजी पकड़ ली है. पडवा पलामू के उन प्रखंडों में शामिल है, जिन्हें 30 जून तक खुले शौच से मुक्त कर देना है.
सरकार ने प्रावधान किया है कि शौचालय का निर्माण लाभुक स्वयं करायेंगे और इसमें किसी स्वयंसेवी संस्था या गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) की कोई भूमिका नहीं होगी. लेकिन, सरकार के इस आदेश को धत्ता बताते हुए पडवा प्रखंड में एनजीओ के माध्यम से धड़ल्ले से शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है. इसके पीछे पेयजल व स्वच्छता विभाग का तर्क है कि वैसे लाभुकों के शौचालय का ही निर्माण एनजीओ द्वारा कराया जा रहा है, जो खुद इसका निर्माण करवाने में सक्षम नहीं हैं. इस संबंध में मुखिया द्वारा प्रमाण पत्र निर्गत किये जाने के बाद ही एनजीओ निर्माण करा रहे हैं.
कई लाभुक प्रशासन के इस तर्क को सिरे से खारिज कर रहे हैं. उनका कहना है कि वह स्वयं शौचालय का निर्माण कराना चाहते थे, लेकिन प्रशासन ने दबाव देकर कहा कि एनजीओ ही क्षेत्र में शौचालय का निर्माण करेंगे. इसके बाद वह कुछ नहीं बोल सके. इधर, लोहड़ा पंचायत के मुखिया बुद्धिनारायण पासवान प्रशासन के सुर में सुर मिला रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हीं लाभुकों के शौचालय का निर्माण एनजीओ के माध्यम से कराया गया है, जो स्वयं निर्माण कराने में सक्षम नहीं हैं.
पडवा में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय का जो निर्माण हो रहा है, उसमें सिर्फ पांच लाभुकों ने ही स्वयं शौचालय का निर्माण कराया है. जो आंकड़े मिले हैं, उसके मुताबिक पडवा प्रखंड के लोहडा पंचायत में ही पांच लाभुकों ने स्वयं से शौचालय का निर्माण कराया है. बाकी एनजीओ ने कराया है.
लोहड़ा पंचायत में वार्ड सदस्य ने काम रोका था, बाद में शुरू हो गया निर्माण
लोहड़ा पंचायत के दो नंबर वार्ड के वार्ड सदस्य श्रीनारायण भुइयां ने एनजीओ के नेतृत्व में हो रहे घटिया निर्माण का पुरजोर विरोध किया. उन्होंने शौचालय निर्माण का काम रुकवा भी दिया, लेकिन बाद में फिर से निर्माण कार्य शुरू हो गया.
क्या कहते हैं लाभुक
ऐसे शौचालय से शौचालय न होना ही बेहतर
पिछले दिनों मुझे पता चला कि शौचालय बनवाने का मेरा आवेदन स्वीकृत हो गया है. मैं शौचालय का निर्माण खुद करवाना चाहता था. लेकिन, कुछ ही दिनों बाद देखा कि कुछ लोग ईंटा- बालू गिरा रहे हैं. पूछने पर पता चला कि लोग एनजीओ से आये हैं. मेरे घर शौचालय बनाने. मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं. विरोध नहीं कर पाया. शौचालय बन गया, लेकिन शौचालय की गुणवत्ता बेहद खराब है. ऐसे शौचालय से शौचालय न होना ही बेहतर था.
नकल भुइयां, लोहड़ा पंचायत
लकड़ी खुद उपलब्ध करवाना पड़ा
एक दिन कुछ लोग हमारे घर आये और पूछा कि शौचालय कहां बनवाना चाहते हो. मैंने जगह दिखाया और दूसरे दिन से वहां निर्माण कार्य शुरू हो गया. शौचालय में दरवाजा के ऊपर जो लकड़ी लगनी है, वह लाभुकों से लिया जा रहा है. सरकार ने हमें पैसे दे दिये होते, तो हम खुद इससे बेहतर शौचालय बनवा लेते.
साकेत भुइयां, लोहड़ा गांव
गाड़ी गांव की महिला ने भी की शिकायत
मैं शौचालय खुद बनवाना चाहती थी, लेकिन एनजीओवाले कहते हैं कि बालू की व्यवस्था करो, तो शौचालय का निर्माण होगा. शिकायत की, तो विभाग के लोग जांच करने आये. उन्होंने एनजीओ से कहा कि लाभुकों से कोई मांग न करें.
शांति कुंवर, गाड़ी गांव
लाभुक को राशि भुगतान का है निर्देश : डीसी
मुखिया व जल सहिया को स्पष्ट निर्देश है कि लाभुक को ही राशि का भुगतान किया जाये. लाभुकों शौचालय बनवाने में जिससे सहयोग लेंगे, उसको वह पैसे देंगे. यह सही है कि इसका काम लाभुक या फिर स्वयंसहायता समूह से कराया जाना है. समय पर लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रशासन सक्रियता के साथ लगा है.

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