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गला तर करने के लिए नहीं है पानी

बदहाली. यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बना सुपौल रेलवे स्टेशन अंग्रेजों के जमाने में स्थापित सुपौल रेलवे स्टेशन को विभाग द्वारा कुछ वर्ष पूर्व मॉडल स्टेशन का दर्जा दिया गया था, लेकिन स्टेशन की वर्तमान हालत देख कर इसे सामान्य दर्जे का भी स्टेशन मानना सहज प्रतीत नहीं होता है़ पुराने रंग-ढ़ंग में बने […]

बदहाली. यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बना सुपौल रेलवे स्टेशन

अंग्रेजों के जमाने में स्थापित सुपौल रेलवे स्टेशन को विभाग द्वारा कुछ वर्ष पूर्व मॉडल स्टेशन का दर्जा दिया गया था, लेकिन स्टेशन की वर्तमान हालत देख कर इसे सामान्य दर्जे का भी स्टेशन मानना सहज प्रतीत नहीं होता है़ पुराने रंग-ढ़ंग में बने स्टेशन की हालत अब जर्जर हो चुकी है़
सुपौल : सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड का सुपौल रेलवे स्टेशन गत आठ वर्षों से उद्धारक का बाट जोह रहा है़ अंग्रेजों के जमाने में स्थापित इस रेलवे स्टेशन को विभाग द्वारा कुछ वर्ष पूर्व मॉडल स्टेशन का दर्जा दिया गया था, लेकिन स्टेशन की वर्तमान हालत देख कर इसे सामान्य दर्जे का भी स्टेशन मानना सहज प्रतीत नहीं होता है़ पुराने रंग-ढ़ंग में बने स्टेशन की हालत अब जर्जर हो चुकी है़ ज्ञात हो कि कुशहा त्रसादी से पूर्व जब सहरसा-पूर्णिया रेलखंड पर रेल गाड़ियां दौड़ रही थी
तो सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड के सुपौल स्टेशन पर भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव यात्रियों को नहीं खटक रहा था, लेकिन वर्ष 2008 में आयी कुसहा त्रासदी के बाद रेल मंत्रालय के द्वयम दर्जे की सोच के कारण यह स्टेशन बदहाली का शिकार बन गया. वर्तमान स्थिति में इस स्टेशन पर आलम यह है कि जब भी विभाग के किसी बड़े अधिकारी का यहां आगमन होता है तो उनके आने से पूर्व प्लेटफार्म को तत्कालिक रूप से साफ-सुथरा कर दिया जाता है,
लेकिन उनके जाते ही स्टेशन परिसर की हालत नारकीय हो जाती है़ समुचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं रहने की वजह से स्टेशन परिसर असामाजिक तत्वों का अड्डा भी बनता जा रहा है़
अमान परिवर्तन अब भी बना है यक्ष प्रश्न
मालूम हो कि सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में आजादी के 68 वर्ष बाद भी छोटी लाइन की ट्रेन चलती है़ छह जून 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा निर्मली में अमान परिवर्तन व कोशी रेल महासेतु की नींव रखी गयी थी, लेकिन 13 साल बाद भी रेलखंड के एक भी किलोमीटर में बड़ी रेल लाइन पूरी तरह तैयार नहीं हो पायी है़ सबसे बुरा हाल किसनपुर से फारबिसगंज के बीच बसे रेल यात्रियों का है़ 20 जनवरी 2012 को विभाग द्वारा अमान परिवर्तन के नाम पर राघोपुर से फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लाक किया गया था़
चार वर्ष से अधिक बीत जाने के बावजूद अमान परिवर्तन का काम पूरा नहीं हो पाया है़ वहीं एक नवंबर 2015 को किसनपुर व राघोपुर के बीच भी मेगा ब्लाक कर दिया गया़, जो लोगों की समझ से परे है़ आलम यह है कि वर्तमान समय में जिले के महज 10 प्रतिशत हिस्से में ही रेल सुविधा उपलब्ध रह गया है. जिससे यात्रियों में असंतोष का माहौल व्याप्त है.
प्लेटफाॅर्म पर यात्री सुविधाओं का अभाव
यहां यात्री सुविधा नगण्य है़ भीषण गरमी में प्लेटफाॅर्म पर शुद्ध पेयजल की बात छोड़िये गला तर करने के लिए एक घूंट पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है़ स्टेशन के दक्षिणी और उत्तरी किनारे पर जो नल लगाये गये थे, वो वर्षों से खराब पड़े हैं. वहीं प्लेटफाॅर्म के दोनों कोने पर लगाये गये दो चापाकल पर लगी गंदगी के कारण यात्री यहां पानी पीने में परहेज करते हैं. प्लेटफाॅर्म पर कुछ वर्ष पूर्व बनाया गया ओवरब्रिज परिचालन के अभाव में बेकार बन कर यात्रियों को मुंह चिढ़ा रहा है. ज्ञात हो कि ओवरब्रिज का निर्माण स्टेशन के पश्चिमी हिस्से से पूर्वी
हिस्से की ओर आने-जाने वाले लोगों को सुविधा प्रदान करने की नियत से की गयी थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि ऊपरी पुल का पश्चिम की दिशा में निकास द्वार का सही इंतजाम नहीं किये जाने की वजह से लाखों की लागत से बना यह पुल बेकार साबित हो रहा है़ प्लेटफाॅर्म के बाहरी हिस्से में व्याप्त गंदगी व खराब पड़े यूरिनल रख-रखाव में बरती जा रही लापरवाही का परिचायक है़
प्लेटफाॅर्म पर विचरते हैं आवारा पशु
सुपौल रेलवे स्टेशन इन दिनों आवारा पशुओं का अघोषित खटाल बना हुआ है. प्लेटफार्म पर आवरा कुत्ता, गाय, भैंस और सुअरों का जमावड़ा लगा रहता है. यात्रा करने के लिए जब यात्री यहां ट्रेन की प्रतीक्षा में बैठते हैं तो उन्हें आवारा पशुओं से परेशानी होती है. वहीं इस प्लेटफाॅर्म पर यात्रियों के बैठने की व्यवस्था भी नगण्य है.

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