तेलंगाना में राज्य सरकार की एक कोयला कंपनी (सिंगरैनी कोल कंपनी) है. यहां काम करनेवाले कर्मी भी इसी समझौते में शामिल होते थे. इस बार तेलंगाना की राजनीतिक पार्टी टीआरएस ने एक मजदूर यूनियन बना लिया है. इसने वेतन समझौते में शामिल नहीं होने की बात कही है. इसको लेकर अन्य मजदूर यूनियनों के साथ बात चल रही है. इस बार एक नया विवाद सामने आ गया है. कोयला मंत्रालय ने अपने को वेतन समझौते से अलग रखने की बात कह दी है. उसका कहना है कि पूरा मामला कोल इंडिया और मजदूर यूनियनों का है. इस कारण कोयला मंत्रालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. इसका मजदूर यूनियनों ने विरोध किया है.
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जून में समाप्त होगी कोयलाकर्मियों के नौवें वेतन समझौते की अवधि, वेतन समझौते को लेकर सरगरमी
रांची : करीब पौने चार लाख कोयलाकर्मियों को वेतन समझौते को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गयी है. कोयला मंत्रालय और कोल इंडिया भी सक्रिय हो गया है. यूनियन एकजुट होकर ज्यादा से ज्यादा वेतन वृद्धि को लेकर रणनीति तैयार करने लगे हैं. जून में कोयला कर्मियों के नौवें वेतन समझौते की अवधि समाप्त हो जायेगी. […]
रांची : करीब पौने चार लाख कोयलाकर्मियों को वेतन समझौते को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गयी है. कोयला मंत्रालय और कोल इंडिया भी सक्रिय हो गया है. यूनियन एकजुट होकर ज्यादा से ज्यादा वेतन वृद्धि को लेकर रणनीति तैयार करने लगे हैं. जून में कोयला कर्मियों के नौवें वेतन समझौते की अवधि समाप्त हो जायेगी. जुलाई से इनको नये समझौते (10वां) के आधार पर वेतन का भुगतान होना है. समय पर समझौता नहीं होने पर कर्मियों को एरियर दिया जायेगा.
अब तक नहीं हुआ है जेबीसीसीआइ का गठन
कोयला कर्मियों का वेतन कोल इंडिया प्रबंधन और मान्यता प्राप्त मजदूर यूनियनों से बातचीत के बाद तय होता है. इसके लिए मजदूर प्रतिनिधि और अफसरों की कमेटी बनायी जाती है, जिसे (ज्वाइंट बाइपरटेटिव कमेटी फॉर कोल इंडस्ट्रीज ) जेबीसीसीअाइ कहा जाता है. अब तक नौ बार जेबीसीसीआइ वेतन समझौता कर चुकी है. 10वीं बार वेतन समझौते के लिए अब तक जेबीसीसीआइ का गठन नहीं हुआ है. मजदूर यूनियनों में से एटक, इंटक, बीएमएस, सीटू और एचएमएस के प्रतिनिधि होते हैं. इंटक के दो गुटों में हमेशा प्रतिनिधित्व को लेकर विवाद होता है. राजेंद्र सिंह और ददई दुबे गुट हमेशा दावा करते हैं. यह विवाद इस बार भी हो रहा है.
अभी दबाव देने की स्थिति में नहीं
ट्रेड यूनियन कोयला मंत्रालय पर अभी बहुत दबाव देने की स्थिति में नहीं है. ऐसा एक बड़ी यूनियन के सदस्य का भी मानना है. उनका कहना है कि अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत गिर गयी है. स्थानीय स्तर पर भी कोयले का उत्पादन बढ़ गया है. बिजली कंपनियों के पास कोयले की कमी नहीं है. स्टॉक अधिक है. इस कारण हड़ताल की धमकी का असर सरकार पर नहीं पड़ेगा. कर्मी भी अब हड़ताल पर नहीं जाना चाहते हैं.
जून माह समाप्त होने का इंतजार है. इसके बाद सरकार पर दबाव बनाया जायेगा. सरकार हठधर्मिता करेगी तो आंदोलन जबरदस्त होगा. सभी यूनियन मिलकर इस पर अंतिम निर्णय लेंगे.
लखन लाल महतो, सदस्य जेबीसीसीसीअाइ
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