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भारत गढ़नेवाले विचार !

-हरिवंश- द इकोनामिस्ट का ताजा अंक (13-19 दिसंबर 08) भारत-चीन की नाजुक अर्थव्यवस्था पर केंद्रित है. भारतीय अर्थतंत्र की कमजोर नसों का विवेचन. यह पढ़ते हुए लगा, नंदन नीलेकणी की पुस्तक ‘इमेजिनिंग इंडिया’ (भारत की कल्पना) आइडियाज फार द न्यू सेंचुरी (नयी सदी के लिए विचार), प्रकाशक पेंग्विन/एलेन लेन, कीमत 699 रुपये, के प्रकाशन, समीक्षाओं […]

-हरिवंश-

द इकोनामिस्ट का ताजा अंक (13-19 दिसंबर 08) भारत-चीन की नाजुक अर्थव्यवस्था पर केंद्रित है. भारतीय अर्थतंत्र की कमजोर नसों का विवेचन. यह पढ़ते हुए लगा, नंदन नीलेकणी की पुस्तक ‘इमेजिनिंग इंडिया’ (भारत की कल्पना) आइडियाज फार द न्यू सेंचुरी (नयी सदी के लिए विचार), प्रकाशक पेंग्विन/एलेन लेन, कीमत 699 रुपये, के प्रकाशन, समीक्षाओं की बाढ़ और धूम का सही अवसर भी यही है. लगभग एक माह पहले 24 नवंबर को यह पुस्तक आयी. बड़ी धूमधाम से. इसी दिन यह पुस्तक ली. दिल्ली में. प्रकाशन और लोकार्पण के दिन ही पुस्तक खरीदने का शायद पहला सुख.
अंतर्राष्ट्रीय मंदी के गहराते असर, मुंबई पर आतंकी हमले और भारतीय अर्थव्यवस्था की अंदरूनी कमजोरियों से भारत की आबोहवा में अनिश्चितता, निराशा के बादल और धुंध मंडरा रहे हैं. स्पष्ट दशा-दिशा नहीं. तब इस पुस्तक का प्रकाशन, सकारात्मक असर डालनेवाला है. नहीं जानता, भारत को हाथी की उपाधि किसने दी? पर दशकों से द इकोनामिस्ट के भारत पर केंद्रित अंकों में भारत को इसी विशेषण के साथ पढ़ा. प्रख्यात भारत प्रेमी पत्रकार मार्क टुली भी भारत को हाथी ही कहते हैं. अपनी मुद्रा में मस्त, पस्त और बेफिक्र. न चाल तेज, न बेचैनी. वही सुस्ती, वही मुद्रा, चाहे आसपास का संसार अलट-पलट रहा हो. पश्चिमी मानते हैं, भारत भी कुछ ऐसा ही है. चाहे आतंकी हमले हों, नक्सली खौफ हो, भ्रष्टाचार हो, शासकीय अराजकता हो, जीवंत अव्यवस्था हो, पर इन सबके बीच भारत का वजूद है. इसी बीच, इनसे निर्लिप्त होकर जीवन-कर्म और धर्म का निर्वाह.
भारत को हाथी का विशेषण देनेवाले भी मानते हैं कि भारत करवट ले रहा है. बदलते भारत या महाशक्ति के रूप में उभरते भारत पर लगातार पुस्तकें आयीं हैं. महत्वपूर्ण और जानेमाने लोगों द्वारा. पर नंदन नीलेकणी की पुस्तक कई संदर्भ में अनूठी है. वह खुद को एक्सीडेंटल इंटरप्रेन्योर (आकस्मिक उद्यमी) कहते हैं. वह इंफोसिस की नींव डालनेवालों में से हैं. नारायणमूर्ति के विश्वस्त साथी. 1981 से. इंफोसिस ने न सिर्फ कारपोरेट वर्ल्ड में नया इतिहास लिखा बल्कि भारत के उद्योग जगत के व्याकरण को बदला. नैतिक मूल्यों और सामाजिक सरोकार के साथ उद्यम. फारचून ने इन्हें 2003 में एशिया बिजनेसमैन आफ द इयर कहा. 2006 में टाइम पत्रिका ने इन्हें दुनिया के 100 प्रभावी लोगों में से एक माना. महत्वपूर्ण विदेशी पत्रिका फोर्ब्स ने इन्हें 2007 में बिजनेसमैन अॅाफ द इयर कहा. भारतीय अर्थव्यवस्था में अमूल्य योगदान के लिए इन्हें पद्मभूषण मिला. वह बंगलोर एजेंडा टास्क फोर्स के सदस्य रहे. नेशनल नॉलेज कमीशन, जवाहरलाल नेहरू नेशनल एडवाइजरी ग्रुप ऑन ई-गवर्नेंस और आइटी टास्क फोर्स फॅार पावर जैसी महत्वपूर्ण कमिटियों से जुड़े रहे.
दूसरी ओर सिविल सोसाइटी के लोगों का साथ रहा. मसलन जनाग्रह के रामनाथन से. इन्हें पढ़ने से लगता है कि इनके प्रेरणास्रोत या नायक हैं, राजीव गांधी, सैम पित्रोदा, एन शेषागिरि, एन विट्टल, सुधीर कुमार, रवि नारायण, सी वी भावे, एन गोपालास्वामी, राजीव चावला व अन्य. इन्होंने भारत में इलेक्ट्रानिक क्रांति की नींव डाली. इस पुस्तक का संदेश साफ है. नीलकेणी के शब्दों में कहें तो, राजनीति में उम्मीद की नयी भाषा को अभी हमें इस्तेमाल करना बाकी है.

इतिहासकार और जानेमाने स्तंभ लेखक रामचंद्र गुहा कहते हैं, भारत के एक तेजस्वी देशभक्त और लोकतांत्रिक व्यक्ति की यह किताब है. गुहा मानते हैं कि यह विचारों को उद्वेलित करती है. विश्लेषणात्मक है. आइडियाज (विचारों) से संपन्न है. इस पुस्तक के बैक कवर पर वर्ल्ड इज फ्लैट के मशहूर लेखक थामस एस फ्रीडमैन की टिप्पणी है. टाइम पत्रिका में प्रकाशित. वह कहते हैं, नीलकेणी अनोखे क्यों हैं? फ्रीडमैन एक मुहावरे में बताते हैं, नीलकेणी एक बेजोड़ या अद्वितीय व्याख्याकार हैं. नीलकेणी ने ही कहा था कि टेक्नोलाजी ‘ग्लोबल प्लेइंग फील्ड’ (अंतर्राष्ट्रीय मैदान) को समतल बना रही है. इस विचार से ही फ्रीडमैन कहते हैं, मुझे वर्ल्ड इज फ्लैट पुस्तक लिखने की प्रेरणा मिली.

इस पुस्तक की चर्चा पिछले सालभर से बाजार में है. सूचना आयी कि गैर उपन्यास-कहानी पुस्तक पर अब तक की सबसे अधिक अग्रिम राशि इसी पुस्तक पर दी गयी. नीलकेणी ने कहा कि इस पुस्तक से होनेवाली समस्त आय चैरिटी में जायेगी. लगभग 540 पेजों की पुस्तक है. समीक्षक कहते हैं, लगभग दो लाख से अधिक शब्द. यह 18 महीने में लिखी गयी. अलग-अलग क्षेत्रों के जानेमाने 126 लोगों से बातचीत हैं. पुस्तक में कुल चार अध्याय हैं. पहले अध्याय में मूल पांच विचार हैं. जनसंख्या (हमारे लोग ही हमारी असल ताकत हैं), उद्यमिता, अंग्रेजी, लोकतंत्र और दुनिया के लिए हमारा खुलापन.

नीलकेणी ने बताया है कि अंग्रेजी ने भारत को कैसे मजबूत बनाया? अगले अध्याय में पांच चीजों का खास उल्लेख है. स्कूल, शिक्षा, शहरीकरण, बुनियादी ढांचा और एकीकृत भारतीय बाजार. तीसरे अध्याय में रोजगार, विश्वविद्यालय, कमजोर संस्थाओं पर विचार-विश्लेषण हैं. अंतिम अध्याय में सूचना एंव संचार तकनीक (आइसीटी), स्वास्थ्य, सामाजिक असुरक्षा, पर्यावरण और ऊर्जा पर समृद्ध सामग्री है. मशहूर पत्रकार टी एन नाइनन के अनुसार इस पुस्तक में सत्रह विचार हैं. आइसीटी से जुड़े अध्याय के बारे में वह भी कहते हैं, कि यह अत्यंत उम्दा है. पुस्तक के अंत में पंद्रह पेजों में संदर्भ सूची और आभार सूची है.

नीलकेणी मानते हैं कि सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है. वे इंफ्रास्ट्रकचर, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर सकतीं हैं. वह मानते हैं कि अन्य क्षेत्रों में तेजी से उदारीकरण होना चाहिए, ताकि उद्यमी प्रतिभा को रोकनेवाले बंधनों को खत्म किया जा सके. यह पुस्तक भारत के बंटे, विभाजित और बिखरे समाज के बीच, विकास का अर्थशा रेखांकित करती है. जाति और धर्म से परे वह इस भारत की चर्चा करते हैं, जो युवा है, जिसमें अधैर्य है, जो महत्वपूर्ण है और अब जग चुका है. यह आधुनिक भारत की पॉलिटिकल इकानामी (राजनीतिक अर्थप्रणाली) का भी विवेचन है कि चीजें जैसी हैं, क्यों हैं?

इस देश की लालफीताशाही को कैसे सूचना क्रांति (इनफारमेशन टेक्नोलाजी) खत्म कर सकती है, इसका बेहतरीन वर्णन है. वह मानते हैं कि नये विचारों में ताकत है. वही भारत में बदलाव का एजेंडा तय कर रहा है. इनके अनुसार भारतीय समाज को साफ-साफ बांटनेवाली (वर्टिकल डिवाइड) चीजें हैं, जाति, धर्म, क्षेत्र वगैरह. पर इसके साथ ही कुछ आधारभूत सवाल (हारिजेंटल थीम्स) उभर आये हैं. वे समाज को जोड़ रहे हैं. एकजुट और एकमत कर रहे हैं.

मसलन शिक्षा का सवाल, विकास का सवाल, स्वास्थ्य का सवाल, नौकरी का सवाल. ये मुद्दे सीधे बंटे और विभाजित भारतीय समाज को अब एक नये आधार, समान फलक और एक धरातल पर खड़े कर रहे हैं. इस तरह बांटनेवाले मुद्दों के मुकाबले, जोड़नेवाले मुद्दे भी प्रभावी हो रहे हैं. वह कहते हैं, भारत की युवा जनसंख्या, उभरते उद्यमी, फैलता आइटी इद्योग, लोकतंत्र और अंग्रेजी बोलनेवालों की तादाद, देश को मजबूत बना रहे हैं.

वह मानते हैं कि ऐसे मुद्दे भारत को जोड़ेंगे. आइडियाज ही देशों को ऊर्जा देते हैं. मसलन फ्रांस के लिए फ्रेंच राष्ट्रीयता आइडियल (आदर्श) है. अमरीका, अवसरों की भूमि (लैंड ऑफ ऑपरच्यूनिटी) के रूप में जाना जाता है. इसी तरह सिंगापुर की पहचान सामाजिक समरसता से है. इन देशों के प्रभावी विचारों (आइडियाज) ने आर्थिक और सामाजिक नीतियों को गढ़ा.

यह पुस्तक एक नये भारत या उभरते भारत की बात करती है. तर्कपूर्ण ढंग से. पूरी आस्था और विश्वास के साथ. युवाओं के ज्ञान क्षितिज को व्यापक बनाती है. पाठक को एक नयी दृष्टि, ऊर्जा और प्रेरणा देती है. नये भारत को गढ़नेवाले विचारों पर केंद्रित है, यह किताब.

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