-हरिवंश-
चाणक्य से जुड़ा प्रसंग है. चीनी यात्री मेगास्थनीज भारत आये. वह चाणक्य से मिलने गये. यह निजी मुलाकात थी. देखा, चाणक्य मोमबत्ती की रोशनी में काम कर रहे थे. वह बैठे. चाणक्य कुछ देर काम करते रहे. फिर उस मोमबत्ती को बुझा दिया. दूसरा जलाया. बातचीत करने लगे. मेगास्थनीज को उत्सुकता हुई. पूछा, आपने ऐसा क्यों किया? एक मोमबत्ती जल रही था, उसे बुझा दिया. फिर वैसा ही दूसरा जलाया? चाणक्य ने कहा. पहले का खर्च मौर्य साम्राज्य (सरकार) वहन करता है. उसके प्रकाश में मैं राजकाज कर रहा था. सरकारी पैसे से सरकारी काम. अब मैं निजी काम कर रहा हं. निजी मुलाकात. इसलिए दूसरा जलाया. इसका खर्च मैं उठाता हूं. इसी ईमानदारी की नींव पर मौर्य साम्राज्य खड़ा हुआ, जिस पर इतिहास फख्र करता है.
इस चर्चा के संदेश साफ हैं. राजसत्ता (शासक राजनीतिक दल, सरकार, शासन, पुलिस वगैरह) चलाने में, अगर ईमानदारी नहीं है, तो वह मिट जाने को अभिशप्त है. मुंबई में हुए आतंकवादी हमले ने भारत की अंदरूनी स्थिति से नकाब उतार दिया है. दस आतंकवादियों के खिलाफ कितनी बड़ी ताकत झोंकनी पड़ी? महाराष्ट्र पुलिस, एटीएस, एनएसजी, थलसेना, वायुसेना और नौसेना. साठ घंटे तक देश बंधक की स्थिति में रहा. एक तरफ थे, अपने उद्देश्यों के प्रति समर्पित आतंकवादी, तो दूसरी तरफ भारत की राजसत्ता की कमजोरियां भी. एनएसजी या मिलिट्री या पुलिस के लोगों ने शहादत दी.
पर उन्हें चलानेवाली राजकीय व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो गयी है और इसे ध्वस्त किया है, हमारी सरकारों ने, नेताओं ने और भ्रष्ट अफसरों ने. अकर्मण्य राजनीति ने.चार दिनों पहले मुंबई से प्रकाशित एक अखबार ने रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के बारे में रिपोर्ट छापी. कहते हैं कि यह आइएसआइ, सीआइए या केजीबी की तरह भारत का विदेशी खुफिया संगठन है. पर इसके अंदरूनी भ्रष्टाचार, इनइफिसियेंसी, अफसरों की अनैतिकता और अमर्यादित आचरण के बारे में आप सुनेंगे, तो आपका खून खौलेगा. इनकी और ऐसे सरकारी संगठनों की विफलता की कीमत चुकाई है, मुल्क ने.
इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती? क्योंकि राजनीति ऐसे तत्वों को पालती है. इसके मौजूदा इंचार्ज के बारे में सूचना है. उन्होंने अपना ही घर ‘सेफ हाउस’ बता कर रॉ को भाड़े पर दे दिया है. इनके दूसरे बंगले में भी साज-सज्जा हो रही है. उसकी सुरक्षा भी रॉ के लोग कर रहे हैं. रॉ के पूर्व प्रमुखों के भी घर भाड़े पर रॉ ने लिये हैं. रॉ चीफ के निजी सचिव की चारों लड़कियां रॉ में नौकरियां पा गयीं हैं. इनमें से दो को विदेश पोस्टिंग मिलनेवाली है. 27 को मुंबई में विस्फोट हुए.
सूचना है कि रॉ चीफ उस समय फिल्म देख रहे थे. इसमें एक विंग है, रिसर्च एंड एनालिसिस सर्विस (रैस). इसमें बड़े ओहदों पर बैठे लोगों के पैरवी-पुत्र ही आते हैं. इस तरह एक ओर बेईमानी है. लूट है. परिवार की झोली भरने का अभियान है. जिस संस्था के हेड हैं, उसे अपना ही घर किराये पर दे रहे हैं. अपने ही बेटे-बेटियों का कल्याण कर रहे हैं. मित्रों को उपकृत कर रहे हैं. क्या आदर्श गढ़ रहे हैं, आप? यह सिस्टम को ध्वस्त करने का पाप है. संस्थाओं को निष्प्राण करने का अभियान है. दूसरी ओर अपने मकसद के प्रति समर्पित आतंकवादी हैं. भला कैसे एक स्वार्थी, नैतिक रूप से पतित और चोर व्यवस्था, देश की हिफाजत कर पायेगी?
सभी अफसर ऐसे नहीं हैं. जो ईमानदार, देश के प्रति समर्पित और संविधान की रक्षा से बंधे हैं, वे अपना फर्ज निभा रहे हैं. पर सरकारें उनकी बात नहीं सुन रही. कुछ ही महीनों पहले, मेजर जनरल वी.के.सिंह की किताब आयी, इंडियाज एक्सटरनल इंटेलिजेंस (सीक्रेट्स आफ रॉ). छापा मानस पब्लिकेशन ने. कीमत 495 रुपये. इस पुस्तक ने भूचाल पैदा कर दिया. पुस्तक प्रकाशक पर रेड हुआ. वी.के.सिंह के घर छापेमारी हुई. इसके बाद भारत सरकार ने नियम बना दिया कि रिटायर होने वाले अफसर अपना संस्मरण न लिखें. भारत के पराजित होने, निस्तेज होने और खोखला होने के पीछे ऐसे ही भ्रष्ट लोग हैं. इस पुस्तक में रॉ में काम करनेवाले वी.के.सिंह ने स्तब्धकारी चीजें बतायीं हैं. कैसे बाजार कीमत से दस गुनी कीमत पर चीजें खरीदी जाती हैं? अपने ही देश के प्रति देशद्रोह. जिन पर देश बचाने का दारोमदार है, वे देश को ही खा रहे हैं. वे अपने पदों पर बैठे व्यवसाय और सौदेबाजी में डूबे हैं. चंद टुकड़ों के लिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा खतरे में डाली जाती है. रॉ के तेजतर्रार अफसर विपिन हांडा की किन परिस्थितियों में मौत हई? भारत की टॉप इंटेलिजेंस सर्विस में कैसे बाहरी घुसपैठिये हैं? रॉ के चर्चित अफसर रवींद्र सिंह के भागने की कथा, रॉ और आइबी के बीच, दो दुश्मन संगठनों की तरह आपसी बरताव, विदेशी इंटेलिजेंस की भारत के अंदर कार्यप्रणाली पर इस पुस्तक में सामग्री है. कुल 12 अध्याय हैं. यह पुस्तक भारत के खोखला होते जाने का प्रामाणिक ब्योरा है.
कोई दूसरा मुल्क होता, तो सच उजागर करनेवाले अफसर पुरस्कृत होते. जांच होती. सख्त कार्रवाई होती. पर यहां उस अफसर के खिलाफ ही युद्ध शुरू हो गया. अब मुंबई विस्फोटों के बाद रॉ के बारे में उक्त अखबार में सूचना है कि यह भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और सीक्रेट फंड के दुरूपयोग का अड्डा बन गया है. सूचना है कि रॉ प्रमुख के बेटे को यूरोप में रॉ सीक्रेट फंड से पैसा दिया गया. याद रखिए, रॉ हेड के पास 1000 करोड़ का बजट है. इसी रॉ प्रमुख के खिलाफ, रॉ की महिला निदेशक निशा भाटिया ने प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. कुछ ही दिनों पहले. पर कुछ नहीं हुआ. जब देश की सुरक्षा देश बेचनेवालों के हाथ होगी, तो आतंकवादी बार-बार आयेंगे? यह सब हो रहा था, हो रहा है और हमारी सरकारें सोयी हैं. यह आपराधिक अयोग्यता है.
वर्ष 2008 में ही कोणार्क पब्लिशर ने एक और उल्लेखनीय पुस्तक प्रकाशित की. ग्रिट दैट डिफाइड आड्स (रिफलेक्संस आफ ए रेवेन्यू आफिसर). कीमत 400 रुपये. लेखक ए.के.पांडेय ने इंडियन कस्टम एंड सेंट्रल एक्साइज में 36 वर्षों तक काम किया. 2002 में वह रिटायर हुए. डायरेक्टर जनरल एंड स्पेशल सेक्रेटरी, इकोनामिक इंटेलिजेंस ब्यूरो (वित्त मंत्रालय) से. 1975 से 2002 के बीच के तथ्य उन्होंने उजागर किये हैं. कैसे भारत की नौकरशाही पतित हुई? नौकरशाही, राजनीति, व्यापार और उद्योग के बीच कैसे नापाक रिश्ते बने? इसी दौर में स्मगलिंग और आर्थिक अपराध के नये रूप सामने आये. सोने की तस्करी से बात आगे बढ़ गयी. बैंक घोटाले, निर्यात-आयात फ्रॉड. पहले बाहुबल से अपराध होते थे. इस नये दौर में सांठगांठ, नीतियों में फेरबदल और अंदरूनी षडयंत्र से भयावह अपराध होने लगे. लेखक के अनुसार भारत की आर्थिक व्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ा. इसी दौर में आर्थिक अपराधियों और आतंकवादियों के बीच रिश्ते की शुरूआत हुई. भारत को किस तरह उसके ताकतवर लोगों ने कमजोर किया, इसका ब्योरा इस पुस्तक में है.
2008 में ही एक और चर्चित किताब आयी. के. शंकरन नायर की. वह रॉ के सेक्रेटरी (चीफ) रहे. इसके संस्थापक आर.एन.काव के बाद. पुस्तक का नाम है, इनसाइड आईबी एंड रॉ. शंकरन नायर सिंगापुर में इंडियन हाइकमिश्नर भी रहे. पुस्तक छापी है मानस पब्लिकेशन ने. कीमत 495 रुपये. इस पुस्तक में अनेक महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य हैं. भारत की अंदरूनी राजनीति, राजपाठ और कमजोरियों के बारे में. ये तीनों पुस्तकें हर उस भारतीय को पढ़नी चाहिए, जो आज देश के हालात से बेचैन हैं. इन पुस्तकों के लेखक अत्यंत जिम्मेदार पदों पर काम कर चुके लोग हैं. इनकी ईमानदारी और बेचैनी हर पंक्ति में झलकती है. पुस्तकों को लिखने के पीछे भी शायद यही मानस है कि भारत की जनता, शासक और सरकार जाने कि देश कैसे खोखला हो गया है? कौन देश बेच रहा है? मुंबई में हुए हमलों के बाद इन पुस्तकों को पलटते हुए लगा, भारत बाहर से नहीं हारता, वह अंदर से हार रहा है. जयचंद की परंपरा कैसे आधुनिक व्यवस्था में फल-फूल रही है? यह समझने में भी ये पुस्तकें मदद करतीं हैं.