यात्रियों को होनी वाली कठिनाई से अवगत होने के लिए प्रभात खबर की टीम स्थानीय रेलवे स्टेशन पर पहुंची. नजारा काफी खतरनाक था.
एक हल्की से गलती से यात्रियों को अपने जाने से हाथ धोना पड़ सकता था. दरवाजा पर ठसाठस यात्रियों के भरे रहने के कारण कोई खिड़की के रास्ता से उतर रहा था, तो कोई ट्रेन के पायदान पर लटक कर अपनी यात्रा कर रहा था. बोगी में जगह नहीं रहने के कारण कोई ट्रेन की छत पर बैठा तो कोई बोगी ज्वाइनर के बीच में खड़ा था. कई यात्री ऐसे थे, जो ट्रेन में यात्रियों की संख्या देख कर यात्रा करने की हिम्मत नहीं कर रहे थे.
कुछ यात्रियों ने ट्रेन से अपनी यात्रा को रद्द भी कर दिया. पूरा रेलवे स्टेशन परिसर यात्रियों से पटा हुआ था.
जोखिम भरी रेल यात्रा विवशता. यात्री हाे रहे मजबूर
भेड़-बकरी की तरह बोगी में कसे होते हैं यात्री
सीतामढ़ी : डीएमयू ट्रेन के परिचालन के बाद से सीतामढ़ी-रक्सौल रेल खंड पर रेल यात्रा खतरनाक होती जा रही है. यात्रियों के अनुपात में ट्रेनों व बोगियों की संख्या कम रहने के कारण ट्रेनों में भेड़-बकरी की तरह यात्री कसे होते है. सबसे अधिक कठिनाई महिला यात्रियों को होती है.
भीषण गरमी में यात्रियों के ठसमठस भरे बोगियों में मासूम बच्चों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. कुल मिला कर आजादी के साढ़े छह दशक बीत जाने के बाद भी जिलावासियों को सुलभ रेल यात्रा मुहैया नहीं हो सकी है. यात्रियों की संख्या अधिक व ट्रेनों में पहले चढ़ने की होड़ में अब तक कई लोग काल के गाल में समा चुके है या ट्रेन की पटरी के नीचे अपना हाथ-पांव कटवा चुके है.
डीएमयू में बोगियों की संख्या घटी: रेल यात्रा का सुलभ व कम समय में तय करने के उद्देश्य से 15 दिसंबर 2015 को डीएमयू का परिचालन आरंभ हुआ. जो सराहनीय भी था. शुरुआती दौर में रेल यात्रियों को यह काफी हद तक सुविधाजनक व समय की बचत करने वाला लगा,
लेकिन समय के साथ यात्रियों की संख्या बढ़ने के साथ यह समय-समय पर खतरनाक साबित होता चला गया.
विभागीय लोगों का कहना है कि डीएमयू डबल इंजन वाली ट्रेन के परिचालन से पूर्व सिंगल इंजन वाली ट्रेन चलती थी. दोनों में फर्क यह है कि सिंगल इंजन वाली ट्रेन में आठ बोगी व 72 सीट थी, जबकि डीएमयू ट्रेन में पांच बोगी व 62 सीट है. इस कारण यात्रियों को होनी वाली कठिनाई से इनकार नहीं किया जा सकता है.