-हरिवंश-
आज देश में हर आदमी नमक से लेकर हर चीज पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर देता है, ताकि स्टेट पावर (राजसत्ता) हमारी सुरक्षा कर सके. पर कहां है जनता की सुरक्षा? क्या कर रही है, केंद्र सरकार? इनकी चर्चा करते हुए एक ऐतिहासिक प्रसंग याद आता है. रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था, कहावत आपने सुनी होगी. भारत के अनुभवों के आधार पर कहें, तो इस कहावत को बदल देना चाहिए. जब दिल्ली में विस्फोट हो रहे थे, तो भारत के गृह मंत्री शिवराज पाटील सूट बदल रहे थे. तीन घंटे में तीन सूट. सुना है, एक मंत्री ने उन्हें मजाकिया लहजे में सुझाव दिया, पाटील साहब, ‘एके रंग के सफारी क्यों नहीं सिलवा ले रहे हैं?’
ये पाटील साहब हैं, कौन? यह पिछले लोकसभा चुनाव में हार गये थे. फिर भी गृह मंत्री बनाये गये, क्योंकि इन पर कांग्रेस आलाकमान की कृपा है. जनता ने रिजेक्ट किया, आलाकमान ने गद्दी सौंप दी. इनके आचरण से स्पष्ट है कि पाटील साहब, कांग्रेस आलाकमान के प्रति ही एकाउंटेबल हैं, जनता के प्रति जवाबदेह नहीं. पिछली दफा दिल्ली बम विस्फोट के बाद, जब इनके सूट बदलने का प्रकरण तूल पकड़ने लगा, तो इनके आसपास से खबरें आयीं कि पाटील साहब किसी नेता या घटक दल की कृपा से गृह मंत्री नहीं हैं.
इन्हें कांग्रेस आलाकमान का अभय वरदान है. उल्लेखनीय है कि दिल्ली बम विस्फोटों में यूपीए की भद पिटते देख, यूपीए के घटक दलों ने पाटील पर कार्रवाई की मांग की. पर कुछ हुआ नहीं. पाटील साहब एक और चीज के लिए याद किये जायेंगे. उनके बेटे ने एक कंपनी में निदेशक बनने पर अपना पता दिया, भारत के गृह मंत्री का आवास. इसके पहले शायद किसी गृह मंत्री के आसपास के लोगों ने ऐसा काम नहीं किया, क्योंकि गृह मंत्री का पद, भारत की शान-शौकत और ताकत का प्रतीक तो है ही, वह भारतीय संघ की पवित्रता, नैतिकता और आभा का भी मुकुट है. इस पद पर सरदार पटेल जैसे महान आदमी रहे हैं.
पर इन विस्फोटों के कितने आरोपी पकड़े गये? कितने लोगों को सजा मिली? क्या गृह मंत्री बतायेंगे? दरअसल सत्ता में बैठे लोग इस देश के गवर्नेंस को चौपट कर देने के अपराधी हैं. इनमें न नैतिकता बची है, न मानवीय संवेदना. जब राजनीति, लाशों की सौदेबाजी करने लगे, तो यही हालात बनते हैं. न इंटेलिजेंस साबूत बचा है, न पुलिस और प्रशासन में क्षमता और इफीशियंसी है? भ्रष्टाचार ने देश के शासन को बिकाऊ बना दिया है. न्याय प्रक्रिया लगभग ध्वस्त है.
15-20 वर्षों बाद भी अपराधी सजा नहीं पाते. राजनीतिक पार्टियां गिरोहों में बदल गयी हैं. ऐसे हालात में जनता किससे सुरक्षा की उम्मीद करे? जब तक आम आदमी इस सड़ी-गली और भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ सड़क पर नहीं उतरेगा, वह असुरक्षित ही रहनेवाला है. चाहे घटनाएं जितनी हों, पर गृह मंत्री पाटील साहब की कोई जबावदेही नहीं है? दुनिया के किसी मुल्क में शायद ही ऐसी अराजक और असहाय स्थिति हो. दरअसल विस्फोट इसलिए बढ़ गये हैं, क्योंकि आतंकवादी बेखौफ हैं. वे जानते हैं, भारत की सरकार, पुलिस और शासन उनका कुछ नहीं कर सकते. अब इस देश को तय करना है कि असली गुनहगार कौन है, शासन (जो ध्वस्त और फेल हो चुका हो) या आतंकवादी?