24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कितने निर्दोषों की बलि चाहिए?

– नरेश गुप्त- ‘आंतरिक आतंकवाद’ शब्द प्रधानमंत्री ने कहा. नक्सलवाद पर बोलते हुए. उन्होंने तीन-चार बार कहा कि आजादी के बाद देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, नक्सलवाद. संसद के बाहर और भीतर वह यह दोहरा चुके हैं. क्या प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार सिर्फ देश को यह सूचना देने के लिए बने हैं कि […]

– नरेश गुप्त-

‘आंतरिक आतंकवाद’ शब्द प्रधानमंत्री ने कहा. नक्सलवाद पर बोलते हुए. उन्होंने तीन-चार बार कहा कि आजादी के बाद देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, नक्सलवाद. संसद के बाहर और भीतर वह यह दोहरा चुके हैं. क्या प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार सिर्फ देश को यह सूचना देने के लिए बने हैं कि देश में आंतरिक आतंकवाद है? या उनका दायित्व है कि वह इससे देश को मुक्ति दिलाये? चाहे रास्ता जो भी अपनाना हो. बातचीत या कार्रवाई? मकसद है कि जिस पर जो दायित्व है, वह पूरा कर रहा है कि नहीं, यह देश को बताये.

केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्य सरकारों का काम है कि वे सुनिश्चित करें कि राजसत्ता का प्रताप वापस हो. कानून-व्यवस्था का राज चले. आतंकवादियों और नक्सलियों का खौफ न रहे. देश और व्यवस्था उनके आवाहन या कथन से न चले. पर ज्ञानेश्वरी ट्रेन पर हमले के बाद क्या हुआ? जो 60 वर्षों से होता आया है. अब बहस शुरू हो गयी है कि यह काम नक्सलियों का है या किसी और का? नक्सलियों का संकेत माकपा की ओर है. माकपाई नक्सलियों को दोषी बता रहे हैं.

जहां घटना हुई वह समूचा इलाका नक्सलियों के कब्जे में है. यह जगजाहिर सच है. अब पुष्टि भी हो गयी है कि एक संगठन के नेताओं ने लाइनमैन को धमकी दे कर यह सब कराया. सामने ख़डा होकर विस्फोट-दुर्घटना को देखा. फिर हटे. ऐसी स्थिति क्यों बन गयी है? क्योंकि अपराध करनेवाले सजा नहीं पा रहे? जिन्हें फांसी की सजा हो चुकी है, वे भी मजे में हैं. इस मुल्क में यह मानस बन गया है कि बड़ा से बड़ा अपराध भी कर लें, कुछ होगा नहीं. इसलिए निर्दोषों के हत्यारे निर्दोषों को मरते-तड़पते देखते हैं, फिर वहां से चुपचाप चले जाते हैं.

वह पूरा इलाका नक्सली कब्जे में है. उस इलाके में कई बार ट्रेनों पर हमला या कब्जा या उन्हें हाइजैक करने का काम नक्सलियों ने किया है. हाल ही में स्टील एक्सप्रेस पर उन्होंने गोली चलाई. मनोहरपुर के पास पटरी को उड़ा दिया. ट्रेन दुर्घटना हुई. राजधानी एक्सप्रेस को उल्टा. एक वर्ष में 65 बार रेलवे पर माओवादियों के हमले हुए हैं. ममता बनर्जी के अनुसार इन हमलों से 500 करो़ड का नुकसान अब तक हुआ है. क्या यह देश इन हमलों और नुकसान को सहने के लिए बना है? हद तो यह है कि ऐसी दुर्घटना के बाद सरकारें फैसला कर रहीं है, कि रात में ट्रेने नहीं चलेंगी.

कल से दिन में कार्रवाई होगी, तो क्या दिन में भी सरकार सब कुछ बंद कर देगी? लोग घरों में बंद सिमटे रहेंगे. वैसे भी नक्सली बंद में झारखंड के गांवों-कस्बों में ऐसा ही बंद होता है. फिर सरकार है क्यों और उसे क्यों होना चाहिए? वैसे भी नक्सली जैसे ही बंद की घोषणा करते हैं, धनबाद – डालटेनगंज रूट पर पहले से ही ट्रेनें बंद कर दी जाती है. रूट बदल दिये जाते हैं. क्या इन चुनौतियों का यही सरकारी उत्तर है? और बंद घरों में सिमटना और खामोश रह कर सब सहना.


दरअसल आज देश में कोई नेता नहीं है. सब कुर्सी पूजक हैं. इन्हें गद्दी चाहिए. तिजारत के लिए. भोग के लिए. स्विस बैंक में धन जमा करने के लिए. दो दिन पहले खबर आयी है कि जर्मन बैंक में भी भारतीयों का काला धन है. इन नेताओं को राजनीति करनी है. कुल, खानदान और भावी वंश के लिए. परिवार के लिए, तो इन्हें निर्दोष लोगों के मारे जाने की तड़प कैसे होगी? इन नेताओं के लिए गैरजिम्मेदार शब्द बहुत मामूली है.

भयावह ट्रेन दुर्घटना के बाद गृह मंत्रालय और रेल मंत्रालय के बीच ही विवाद रहा. रेल मंत्री का कहना था, सीबीआई जांच करायी जाये. इस देश में कितने जांच कमीशन बने हैं? उन पर कितने खर्च हुए हैं? कितने वर्ष उनकी रिपोर्ट आने में लगे हैं? उन रिपोर्टों पर क्या कार्रवाई हुई है? इतिहास पलट लीजिए, हर मामले को तोपने, ढंकने का कारगर औजार है, जांच की मांग. कितने लोगों पर सीबीआई जांच चल रही है?

उनके भ्रष्टाचार पर, कुकर्मों पर. क्या उनकी रिपोर्ट आती है? या जब रिपोर्ट तैयार होती है, तो केंद्र सरकार के पक्ष में वे मतदान कर अपने अपराध से मुक्त हो जाते हैं? किन-किन भारतीय नेताओं की संपत्ति दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ी है? सबूतों के बावजूद, शिकायतों के बावजूद, कोर्ट के आदेश के बावजूद, क्या ऐसी जांचों से कोई निष्कर्ष मिला? कोई दोषी दंडित हुआ? किसी पर कार्रवाई हुई? किसी को सजा मिली? फिर यह जांच का रास्ता, क्या दो-ढाई सौ निर्दोष लोगों के हत्यारों को सजा दिलायेगी? उधर बंगाल का चुनाव है. सत्ता के भूखे लोग उन हत्यारों की मदद लेने के लिए बेचैन हैं, ताकि उन्हें गद्दी मिले. इसलिए कोई निर्दोषों के हत्यारों को समयबद्ध सजा दिलाने या उनके खिलाफ त्वरित कार्रवाई की मांग नहीं करता.


प्रधानमंत्री कहते हैं कि नक्सलवाद आजादी के बाद की सबसे बड़ी चुनौती है. क्या महज सूचना देना उनका धर्म है? फिर ऐसी चीजों से मुल्क को मुक्त कौन करायेगा? गृह मंत्री बयान देते हैं कि वह नक्सलियों के खिलाफ सीमित कार्रवाई के लिए अधिकृत हैं, तो यह सीमित कार्रवाई है क्या? वह देश को बतायें. इस मसले पर कांग्रेस का रूख क्या है? कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने गृहमंत्री के खिलाफ बयान दिया, तो अब वह बतायें कि इन निर्दोषों के हत्यारे कौन हैं?

और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी? दंतेवाड़ा में हाल में नक्सलियों ने यात्री बस उड़ायी, तो लालू प्रसाद का बयान आया कि नक्सली पुलिस को खबर देने वालों को क्यों न मारे. उन्होंने यह भी कहा कि माओवादी कभी भी सामान्य लोगों को नहीं मारते. ट्रेन दुर्घटना के बाद यही लालू प्रसाद बयान दे रहे हैं कि इस घटना की जितनी भी निंदा की जाये कम है. यह काम करनेवाले कायर हैं. जैसी बयार वैसे बयान. वैसे भी लालू प्रसाद बयान बदलने-पलटने में माहिर हैं. जब वह मुख्यमंत्री थे, तो एक शाम पटना के एक कार्यक्रम में कंप्यूटर के बारे में अनाप-शनाप बोला.

दूसरे दिन उत्तर बिहार के एक शहर में कंप्यूटर के गुणगान किये. इसी तरह उन दिनों जनसंख्या दर ब़ढने के पक्ष में बोले, तो कहीं विपक्ष में. जो राष्ट्रीय नेता भारत की तकदीर लिख रहे हैं, वे अपनी बात और विचार में इतने कच्चे होंगे, तो मुल्क की यही स्थिति होगी? आठ दिनों पहले लालू जी ने यूपीए के दूसरे कार्यकाल को बिलकुल विफल कहा. पर इस केंद्र सरकार को जब गिराने का मौक आया, तो बहिष्कार कर मदद की. यही नेता देश के कर्णधार हैं. ऐसे ही लोग कांग्रेस में हैं, जिनके विचार, बात या स्टैंड साफ नहीं हैं. फिर निर्दोषों की बलि चढ़ेगी ही?

जनता ने सरकार को शासन सौंपा है, ऐसी चुनौतियों के समाधान के लिए. अपनी सुरक्षा के लिए. सरकार को जो रास्ता ठीक लगे, नक्सलियों से बातचीत का या उनके खिलाफ कार्रवाई का. वह करे. स्थिति संभाल नहीं सकते, तो छो़ड दीजिए नेतागिरी और सरकार. जब सरकार के रहते देश अशासित है, तो सरकार न रहने पर कुछ और अशासित हो जायेगा.


मारे गये निर्दोष लोगों को सरकार मुआवजा देती है, पांच लाख रूपये और एक नौकरी. क्या भारत के शासक वर्ग के लोग इस बात के लिए तैयार हैं? वे भी इन निर्दोष लोगों की तरह कुर्बानी दें. इन बड़े नेताओं के परिवार, वंश या स्वजन मारे जायें, तब उन्हें एहसास होगा कि परिवार के साफ हो जाने की पीड़ा क्या होती है. ये तो मनुष्य की पीड़ा, दुख, दर्द के सौदागर हैं. इन्हें ब्लैक कैट, रेड कैट, बुलेट प्रूफ की सुरक्षा चाहिए.

वह भी उन बेजुबान, निर्दोष लोगों के कर से वसूले गये पैसे से ही. इन शासकों पर नक्सली भी हमला नहीं करते. भ्रष्टाचार से लेकर सार्वजनिक जीवन में सफाई और शुचिता की बड़ी-बड़ी बातें नक्सली करते हैं, पर सार्वजनिक जीवन को प्रदूषित करनेवालों के खिलाफ उनका अभियान नहीं चलता? उनके शिकार निर्दोष ही होते हैं. ऐसे लोग तो हवाई सफर करते हैं. भारी सुरक्षा के बीच चलते हैं. फिर संकट आने पर बहस का एजेंडा बदल देते हैं. इसलिए आम जनता भी पूछती है कि निर्दोषों के मारे जाने पर मानवाधिकार के प्रवक्ता कहां चले जाते हैं?

क्या निर्दोषों का खून उन्हें दिखाई नहीं देता? आज देश में न कोई नेता रह गया है, न किसी में सच बोलने का साहस दिखाई देता है. कोई उपदेश दे रहा है कि संकट की घड़ी में एकजुट रहें. नेता उपदेश न दें, तो बेहतर. लोगों के कान पक गये हैं. धीरज जवाब दे रहा है. सब्र खत्म हो चुका है. पर यह गांधी का मुल्क है. और गांधी की प्रतीक्षा में हैं. कोई फकीर तो खड़ा हो और इन निर्दोष लाशों के खिलाफ अपनी बेचैन आवाज गांव-गांव घर-घर तक पहुंचाये. लोगों को जगाये, एक नयी क्रांति-बदलाव की पृष्ठभूमि बनायें. यही एकमेव रास्ता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें