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कश्मीर में इस कड़ी सर्दी में भी बर्फ पिघली है

गृह राज्य व सूचना मंत्री सुबोध कांत सहाय ने रांची के विकास के लिए एक ‘मास्टर प्लान’ दिल्ली में तैयार कराया है. इस कार्य-योजना से रांची में काम कर चुके अनेक वरिष्ठ और दक्ष प्रशासक -नौकरशाह जुड़े हैं. कल शाम इस संवाददाता को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री कल्याण सिंह कालवी ने बताया कि सुबोध कांत के […]

गृह राज्य व सूचना मंत्री सुबोध कांत सहाय ने रांची के विकास के लिए एक ‘मास्टर प्लान’ दिल्ली में तैयार कराया है. इस कार्य-योजना से रांची में काम कर चुके अनेक वरिष्ठ और दक्ष प्रशासक -नौकरशाह जुड़े हैं. कल शाम इस संवाददाता को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री कल्याण सिंह कालवी ने बताया कि सुबोध कांत के बार-बार स्मरण कराने पर उन्होंने कल ही कोयल-कारो के लिए एक करोड़ रुपया आवंटित कर दिया है. अगले वित्तीय वर्ष में वह और दो करोड़ रुपये देंगे. फिलहाल सुबोध कांत असम, कश्मीर और अयोध्या विवाद में फंसे हैं, इससे मोहलत पाते ही उनकी योजना है रांची के विकास को विभिन्न मंत्रालयों से पूरा कराने की. फिलहाल इसी संदर्भ में 22 व 23 दिसंबर को रांची आने की उनकी योजना है. पंजाब, कश्मीर आदि के ज्वलंत मुद्दों पर हरिवंश से हुई उनकी बातचीत के अंश.

सवाल : ‘झारखंड’ संबंधी बातचीत और कमेटी की रिपोर्ट किस स्टेज पर है?
जवाब : अब मैं यह कह सकता हूं कि बिहार सरकार की अनुशंसाएं (रिकोमेंडेशन) और झारखंड विषयक कमिटी की अनुशंसाएं दोनों को मिलाकर और एक एक्सपर्ट कमिटी की राय लेकर इसको निर्णायक रूप से तय करने की स्थिति बन गयी है. इस दिशा में मैं बहुत ही जल्द कार्रवाई करूंगा. इस संदर्भ में उन तमाम लोगों, जो उस इलाके के विधायक -सांसद हैं, सत्ता-विपक्ष की सभी पार्टियों को साथ लेकर उनकी राय लेंगे, ताकि जो भी फैसला हो, वह बिहार के लोगों की राय व सहमति से हो.
सवाल : क्या कारण है कि इस बार अयोध्या के मसले को लेकर उस किस्म का देशव्यापी तनाव नहीं हुआ, जो पिछली बार हुआ था?
जवाब : इसका कारण तो नहीं, बल्कि मैं उपलब्धि की दृष्टि से बता सकता हूं कि जो भी संबंधित लोग थे, उन लोगों ने इसमें भाग लिया. मसलन मुख्यमंत्री, उत्तरप्रदेश, भाजपा के प्रमुख नेता के रूप में राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत, कांग्रेस पार्टी के शरद पवार, ये सभी लोग ऐसे हैं, जो कहीं-न-कहीं नेशनल कांग्रेस (राष्ट्रीय चेतना) का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहां जो भी फैसला हो रहा था, उसमें वे भागीदार थे. दूसरा, नीयत और नेतृत्व का स्पष्ट दिमाग. चंद्रशेखर गलत फैसला नहीं करेंगे, दबाव में नहीं झुकेंगे, यह एहसास लोगों को था. लोगों को यह एहसास था कि अगर हम बैठ कर बातचीत से कोई फैसला करते हैं. तो लोग उसे इंडोर्स करेंगे. यहां वह एहसास नहीं था कि बाद में किसी राय के कारण वह परिवर्तित हो जायेगा या वापस कर लिया जायेगा. नेतृत्व के प्रति लोगों में इतना विश्वास था. कहीं न कहीं इसके पीछे चंद्रशेखर जी की राजनीतिक शैली, दर्शकों का काम करने का उनका व्यक्तित्व, बेबाक तरीके से चीजों को निर्णीत करने का तरीका ही इस विश्वास के मूलाधार थे, जिससे कि सभी लोग साथ बैठें.
सवाल : सांप्रदायिक दंगों से आप कैसे निबटेंगे?
जवाब : पहली बार सांप्रदायिक दंगे बिना किसी कारण के हो रहे हैं. पहले कोई कारण होता था, तब दंगे भड़कते थे. दंगों के पीछे ऐसे लोग हैं, जो बिल्कुल ‘डेस्परेट’ हो गये हैं और ‘फ्रस्ट्रेशन’ में कुछ भी करना चाहते हैं. ऐसे लोगों से सख्ती से निबटना ही होगा. दूसरा, मेरा विश्वास है कि जहां भी दंगे हों, वहां 24 घंटों के अंदर दंगों पर काबू पाया जाये, हमें इस किस्म की प्रशासनिक क्षमता बनानी होगी. मेरे दिमाग में एक स्पष्ट बात है, जिसे सभी लोगों से बातचीत-परामर्श के बाद मैं बनाना चाहता हूं. एक कपोजिट करेक्टर का फोर्स हो, जिसका खास दंगों को नियंत्रित करना, हाईजैकिंग से निबटना, आतंकवाद से निबटना आदि काम हो. राज्यों में भी इस तरह का क्रैक फोर्स हो, ताकि उस पर लोगों का विश्वास-यकीन जमे कि इस तरह की फोर्स आ गयी है तो वह लोकल किसी की नहीं सुनेगी. यह बहुत जरूरी है.

फिलहाल जो दैनंदिन काम देख रहे हैं और जो हमारी राजनीतिक शतरंज की चाल है, उसका विक्टिम (दोषी) कहीं न कहीं प्रशासन और फोर्स की कार्यशैली पर जो अब प्रश्न चिह्न उठने लगे हैं, उसे खत्म करने और जो दंगे रोजमर्रा की घटना बनते जा रहे हैं, उनसे निबटने के लिए, मेरी राय है कि (1) नेशनल इंटीग्रेशन के जो गाइड लाइन है, उन्हें हूबहू लागू किया जाये, (2) जो सांप्रदायिक दंगे की दृष्टि से संवेदनशील जगहें हैं, वहां पूरी तरह लागू हो. केंद्र सरकार की गाइड लाइन को अगर राज्य पूरी तरह लागू करे, तो मेरा यकीन है कि दंगे फैलने के पूर्व भी रोके जा सकते हैं. इससे भी अलग हट कर रचनाकार, साहित्यकार और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक टीम हमने गृह मंत्रालय में बनायी है, जो लोग ऐसे सांप्रदायिक संवेदनशील जगहों में जा कर काम करेंगे, क्योंकि ऐसे लोग इस स्तर पर ही ऐसे मुद्दों से नहीं जुड़े हैं, बल्कि ग्रासरूट लेबल पर भी ऐसे लोगों का रिश्ता है. इस तरह दंगा होने के पहले, दंगा होने के वक्त और उसके बाद, इन तीन स्तरों पर इस पर कार्रवाई हो. मैं समझता हूं कि महज पारा मिलिट्री फोर्स भेज देने से कुछ नहीं होगा.

सवाल : पंजाब और कश्मीर समस्या के निबटारे की दिशा में ठोस प्रगति?
जवाब : पंजाब में आज लोगों के बीच विश्वास की एक पूंजी है. चंद्रशेखर जी का पंजाब और पंजाबियत के लिए जो स्टैंड रहा है, वह पूंजी सरकारी पूंजी से भी अधिक है. लीडरशीप के प्रति विश्वास पंजाब के लोगों का है. बड़े खुले दिल से हमने आह्वान किया है कि हम पंजाब के लोगों से बातचीत करना चाहते हैं, लेकिन पंजाब के लोगों का कहीं न कहीं इसी कंधे से हमने शव ढोया है, पर अब जिन बेगुनाहों की हत्या से शवों की कतार लगायी जा रही है, उनसे भी निबटने में सरकार चूकेगी नहीं. पंजाब के लोगों की मान-मर्यादा, उनकी ग्लोरी, हम बढ़ाना चाहते हैं. जिन चंद मुट्ठी भर लोगों के मास्टर दूसरी जगह बैठे हुए हैं और जो लोगों को गुमराह कर रहे हैं, उन्हें शतरंज का मोहरा बनाये हैं, उनसे भी हम डिक्टेट नहीं होंगे.
कश्मीर के संदर्भ में मैं कहना चाहूंगा कि इस कड़ी सर्दी में भी बर्फ पिघली है. यह एक अच्छा शुभ लक्षण है. कर्मचारियों की इतनी लंबी हड़ताल खत्म हुई है. वहां प्रशासन ने स्थिति को संभाल लिया है. उसकी पकड़ मजबूत हुई है. मैं यही कहना चाहता हूं.
सवाल : बिहार की बिगड़ती कानून व्यवस्था के संदर्भ में आपका क्या कहना है?
जवाब : दुर्भाग्य हमारा यह रहा है कि बिहार में हमारा राजनीतिक नेतृत्व ‘रिजल्ट ओरियेंटेड’ नहीं रहा है. अल्पकाल में इमेज बनाने का रहा है और कहीं न कहीं इससे ऊपर उठकर टास्क मास्टर की तरह हम देश भर में तो नेतृत्व पंगु बन जाता है. मैं समझता हूं कि वहां अभी जो नेता, राजनीतिक नेतृत्व है, उसके लिए यही चुनौती है कि जब किसी ने वहां नेतृत्व संभाला है तो वह जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठकर महज बिहार और बिहारवासियों के लिए काम करना शुरू किया. ताकि सभी अपना विश्वास उस नेतृत्व में समाहित कर पायें. इससे अलग हट कर जिस दकियानूसी माहौल में बिहार का नेतृत्व फंस जाता रहा है, उसी का नतीजा है कि वहां की किसी समस्या को हम एक सेक्शन की नजर से देख पाते हैं, समाज की नजर से नहीं.

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