नयी दिल्ली से लौटकर संजय
भारत की कुल आबादी की करीब आधी खुले में शौच करती है. यानी इन लोगों के पास अपना शौचालय नहीं है या फिर ये इसका इस्तेमाल नहीं करते. हर रोज करीब 57 करोड़ भारतीय स्त्री-पुरुष व बच्चे खुले में शौच करते हैं. देश के 11 करोड़ घरों में शौचालय नहीं हैं. यह आंकड़ा इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि खुले में शौच का संबंध बच्चों की मौत, इनकी कम वृद्धि (नाटेपन) व कम वजन होने से है. वहीं महिलाओं के प्रति अपराध से भी.
खुले में शौच से भोजन व पानी मक्खियों व अन्य माध्यम से दूषित हो जाते हैं, जो डायरिया व अन्य बीमारियों सहित उपरोक्त का कारण बनते हैं. स्वच्छता तथा टीम स्वच्छ (शौचालय के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए बनी) विषय पर दिल्ली के होटल मेट्रोपोलिटन में आयोजित यूनिसेफ की इस दो दिवसीय कार्यशाला में मूलत: जर्मन की रहनेवाली वरिष्ठ पत्रकार व लेखक रोज जॉर्ज ने बताया कि हर 15 सेकेंड में दुनिया भर में किसी न किसी बच्चे की मौत डायरिया से हो जाती है. खुले में शौच से हो रहा प्रदूषण इसका बड़ा कारण है.
यूनिसेफ की कम्यूनिकेशन प्रमुख कैरोलिन डेन डक ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम शौच व शौचालय के मुद्दे पर काम करना तो दूर, इस पर बात भी नहीं करते. जबकि यह दूरदराज या ग्रामीण इलाके की ही नहीं बल्कि दिल्ली व इस जैसे बड़े शहरों की भी समस्या है. इसी चुनौती से निबटने के लिए यूनिसेफ ने टीम स्वच्छ बनायी. क्रिकेट स्टार व अन्य सेलेब्रिटी के माध्यम से टी-20 मैच के दौरान स्वच्छता का प्रचार-प्रसार किया गया. ऐसा यह मानकर किया गया कि भारतीय क्रिकेट को अपना धर्म समझते हैं तथा यह यहां खासा लोकप्रिय है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर भारतीय समाज को टीम इंडिया की तरह एक होना होगा.
इग्नू के स्कूल अॉफ जर्नलिज्म एंड न्यू मीडिया स्टडीज के निदेशक शंभुनाथ सिंह जैसे कई अन्य प्रतिभागियों का यह भी मानना था कि खुले में शौच आदत व अनदेखी के साथ-साथ उपलब्धता व सहूलियत से भी जुड़ा है. कार्यशाला में जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी, प्रधानमंत्री के सलाहकार रहे पंकज पचौरी, आकाशवाणी के उप महानिदेशक राजीव शुक्ला, एशिया न्यूज के संपादक पुष्परंजन, स्तंभकार क्षमा शर्मा, टाइम्स अॉफ इंडिया के भाष्कर पंत तथा प्रभात खबर व अन्य मीडिया सहित गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
परंपरा व गरीबी है चुनौती
दरअसल भारत में खुले में शौच की एक परंपरा सी बन गयी है, जो अब बढ़ती आबादी के साथ खतरनाक साबित हो रही है. बच्चों को खुले में शौच की शुरुआती आदत घर के लोग ही डालते हैं. यह एक चलन सा है. वहीं गरीबी (शौचालय निर्माण न करवा पाना) तथा भूमि हीनता व बिना शौचालय के घर (ज्यादातर शहरों में) से भी खुले में शौच प्रोत्साहित होता है. बेशक सामाजिक व सांस्कृतिक नॉर्म्स ने भी खुले में शौच को भारत में एक स्वीकार्य चलन (प्रैक्टिस) बना दिया है. यही शौचालय निर्माण तथा इसके उपयोग की चुनौती भी है.
क्यों जरूरी है इसे रोकना
हर 15 सेकेंड में दुनिया में किसी एक बच्चे की मौत डायरिया से. खुले में शौच डायरिया का बड़ा कारण है.
शौचालय व स्वच्छ जल की उपलब्धता से डायरिया, हैजा, पेचिस, टायफाइड व पोलियो जैसे रोग आधे कम हो सकते हैं.
करीब 25 फीसदी छात्राएं शौचालय नहीं होने के कारण स्कूल नहीं जातीं. पीरियड के दौरान यह संख्या दोगुनी हो जाती है.
खुले में शौच महिलाओं के प्रति अपराध, दुराचार व उत्पीड़न का बड़ा कारण है.