संयुक्त राष्ट्र : भविष्य में वैश्वि खाद्य मूल्य बढे तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद को 49 अरब डालर का नुकसान उठाना पड सकता है. यह बात संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रपट में कही गयी है जिसमें कहा गया है कि बढती आबादी के कारण विश्व को खाद्य मूल्यों में ज्यादा उतार-चढाव का सामना करना पड सकता है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम-ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क रपट, ‘एरिस्क द्वितीय चरण: खाद्य मूल्य पर्यावरण संबंधी बाध्यताओं को सावरेन क्रेडिट के जोखिम से कैसे जोडता है’ में विभिन्न देशों पर वैश्विक खाद्य जिंस मूल्य दोगुना होने की स्थिति पडने वाले प्रभाव का जिक्र किया गया है.
रपट में कहा गया कि यदि वैश्विक खाद्य मूल्य दोगुना होता है तो चीन के जीडीपी में 161 अरब डालर की कमी आएगी और भारत को 49 अरब डालर का नुकसान उठाना पडेगा. उन्होंने कहा, ‘खाद्य की मांग और आपूर्ति के बीच बढते असंतुलन के कारण भविष्य में विश्व को ज्यादा और उतार-चढाव भरे खाद्य मूल्य से जूझना पडेगा. बढती आबादी और आय के कारण खाद्य पदार्थों की मांग और बढेगी जबकि जलवायु परिवर्तन और संसाधन की कमी खाद्य उत्पादन में बाधा पहुंचेगी.’
संयुक्तराष्ट्र की रपट में 110 देशों पर वैश्विक खाद्य मूल्य के झटके के असर का अध्ययन किया गया है ताकि यह आकलन किया जा सके कि कौन से देश इस बढते असंतुलन से सबसे अधिक जोखिम में हैं. खाद्य जिंस मूल्य दोगुना होने की स्थिति में अधिक आर्थिक नुकसान के खतरे वाले देशों में अफ्रीकी देश -बेनिन, नाइजीरिया, कोट डीलवॉयर, सेनेगल और घाना शामिल हैं. लेकिन चीन के सकल घरेलू उत्पाद को सबसे अधिक नुकसान होगा.
यह 161 अरब डालर के बराबर रहने का अनुमान है जो न्यूजीलैंड के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बराबर है. दूसरा सबसे अधिक 49 अरब डालर का नुकसान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में होगा जो क्रोएशिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है. इसमें कहा गया कि विभिन्न देशों का जोखिम उनके खाद्य व्यापार और उनके यहां खाद्य जिंसों पर परिवारों की खर्च होने वाली आय के हिस्से पर निर्भर करेगा.
मिस्र मोरक्को और फिलिपीन जैसे देश जहां उच्च खाद्य जिंस आयात और उच्च परिवारिक व्यय जुडे होते हैं उनके वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद सबसे अधिक प्रभावित होंगे, चालू खाते का संतुलन प्रभावित होगा और मुद्रास्फीति बढेगी. चीन, इंडोनेशिया और तुर्की समेत बहुत से उभरते बाजार भी इससे प्रभावित होंगे क्योंकि उनके यहां भी परिवारों की आय का एक बडा हिस्सा खाद्य जिंसों पर खर्च होता है.
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