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कुछ देर प्रधानमंत्री के साथ

-हरिवंश- तारीख:7 जुलाई समय: दोपहर 12.45 जगह- सात रेसकोर्स (प्रधानमंत्री निवास, नयी दिल्ली) : सुरक्षा प्रबंध इतना चौकस और चुस्त कि परिंदे भी पर न मार सकें. इस सुरक्षा प्रबंध से हर प्रधानमंत्री परेशान लगता है, कम से कम बाहरी रूप में. पूर्व प्रधामंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी कई बार इसके मुक्ति की […]

-हरिवंश-

तारीख:7 जुलाई
समय: दोपहर 12.45
जगह- सात रेसकोर्स (प्रधानमंत्री निवास, नयी दिल्ली) : सुरक्षा प्रबंध इतना चौकस और चुस्त कि परिंदे भी पर न मार सकें. इस सुरक्षा प्रबंध से हर प्रधानमंत्री परेशान लगता है, कम से कम बाहरी रूप में. पूर्व प्रधामंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी कई बार इसके मुक्ति की चर्चा कर चुके हैं. सबसे अधिक परेशानी विश्वनाथ प्रताप जी बताते हैं. पता नहीं जनता से जुड़ने की भावना के कारण या दिखावे के लिए. पर वह रहते एसपीजी सुरक्षा में ही हैं.
प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी परेशान लगते हैं. क्षेत्रीय अखबारों के संपादकों (लगभग 25 लोग) से बातचीत में उनकी यह परेशानी झलकती है. फिलहाल राष्ट्रीयय सवालों पर चर्चा के लिए वह विभिन्न समूहों से मिल-बतिया रहे हैं. इसी क्रम में उन्होंने सात जुलाई, दोपहर को क्षेत्रीय अखबारों के संपदकों को न्योता था. वह बताते हैं कि उनकी इच्छा गांव-देहात अचानक पहुंचने की रहती है. तय यात्राओं में पहले से तैयारी रहती है. सच पता नहीं चलता. अफसर-नेता मिल कर तथ्यों को तोप ढंक देते हैं. पर यह आकस्मिक यात्रा सुरक्षा प्रबंधों के कारण संभव नहीं हो पाती.
अजीब स्थिति है. 92 करोड़ लोगों का यह मुल्क. सबसे ताकतवर लोकतंत्र और लोकतंत्र का सबसे ताकतवर पद, प्रधानमंत्री. उस पर आसीन व्यक्ति सुरक्षा प्राचीरों में घिरा है. वह असहाय महसूस करता है. जनता (गंगोत्री) से ऊर्जा ग्रहण करनेवाले इस महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक पद और जनता के बीच, सुरक्षा के जो बड़े-बड़े बांध खड़े हो गये हैं, इसमें जन और तंत्र दोनों दूर होते जा रहे हैं. क्या कोई करिश्माई रहनुमा तोड़ पायेगा? भारत के राजनीतिक क्षितिज पर कोई ऐसा व्यक्तित्व है? यह सुरक्षा इसलिए है, क्योंकि डर, भय, हिंसा,द्वेष की राजनीति चल रही है. कुरसी, के लिए होड़ है. जहां गलाकाट प्रतिस्पर्धा होगी, वहां सुरक्षा चाहिए ही. आज प्रधानमंत्री आवास, प्रधानमंत्री कार्यालय, दिल्ली के साउथ ब्लॉक-नार्थ ब्लॉक में सामान्य जनता सहजता से आ-जा नहीं सकती. गणराज्य की गंगा, दिल्ली के जिन सचिवालयों-कार्यालयों या राजधानी दिल्ली से निकल कर, देश के गांव-गलियों तक पहुंचनी चाहिए. उसे विशिष्ट वर्ग के लोगों, दलालों ने रोक लिया है. शायद किसी भगीरथ की प्रतिक्षा में. फिलहाल दिल्ली के सत्ता गलियारों में (सरकार चाहे किसी की हो) इस विशिष्ट वर्ग की पकड़ है. दिल्ली की इस दुनिया का गणित अलग है.
प्रधानमंत्री लंबी बातचीत में बार-बार इसका एहसास कराते हैं. वह जनता से सीधे संवाद चाहते हैं. अपनी सीमाओं का उल्लेख करते हैं. किन परिस्थितियों में वह कैसे प्रधानमंत्री बने, इसका विस्तार से वर्णन करते हैं. अंदरूनी किस्से बताते हैं. नौकरशाही-व्यवस्था के संबंध में कहते हैं.
वह उन सारे मुद्दों के बारे में चिंता जताते हैं, जिनके बारे में कमोवेश हर दल के गंभीर नेता बोलते रहते हैं. फिर भी इन सवालों पर आम सहमति नहीं है. क्या मौजूदा राजनीति में आम सहमति के इन बिंदुओं पर सर्वानमुति बनाने के लिए कोई पहल करेगा? प्रधानमंत्री देवगौड़ा के लिए यही यक्ष प्रश्न है और अग्नि परीक्षा भी.
आरंभ में ही प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि यह बातचीत छपने के लिए नहीं है, बल्कि सीधे संवाद का एक हिस्सा है. इसलिए, बातचीत न छाप कर इस संवाद पर आधारित अनुभव रिपोर्ताज प्रस्तुत है.

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