14.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कंप्यूटर या कि तलवार कंप्यूटर या कि तलवार

इस साल मेरी बेटी पांचवीं कक्षा में गयी तो स्कूल ने उसे कलम से लिखने की आजादी दे दी. आजकल वह तरह-तरह के कलम जमा करने में लगी रहती है. इससे मुझे याद आया कि कलम से लिखे जमाना हो गया. कम-से-कम दस साल पहले तक ज्यादातर लेखक कलम से लिखते थे. करीब 12 साल […]

इस साल मेरी बेटी पांचवीं कक्षा में गयी तो स्कूल ने उसे कलम से लिखने की आजादी दे दी. आजकल वह तरह-तरह के कलम जमा करने में लगी रहती है. इससे मुझे याद आया कि कलम से लिखे जमाना हो गया. कम-से-कम दस साल पहले तक ज्यादातर लेखक कलम से लिखते थे. करीब 12 साल पहले जब मैं एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका का संपादक था, तब मुझे हिंदी के अनेक मूर्धन्य लेखकों की हस्तलिपि में रचना पढ़ने का सुयोग मिला था.

मुझे याद है करीब 10 साल पहले जब मैंने पहली बार सीधे कंप्यूटर पर कहानी लिखी थी और उसको एक प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक को भेजा था तो उन्होंने तंज करते हुए कहा था कि धीरे-धीरे तुम्हारी रचनाओं से संघर्ष का स्वर गायब हो जायेगा, क्योंकि अब तुम लिखने में श्रम नहीं करते हो. जो संघर्ष हाथ से लिखने में है वह कंप्यूटर से लिखने में कहां.

मुझे और पुरानी बात याद आ गयी. उन दिनों मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में शोध छात्र था. जब भी समय मिलता बड़े-बड़े लेखकों से मिलने चला जाता था. जिनमें कमलेश्वर जी के घर अक्सर जाना होता था. उन दिनों वे ‘चंद्रकांता’ धारावाहिक के लेखन में संलग्न थे. वे उंगलियों में पट्टी बांधकर हाथ से लिखते रहते थे. एक दिन जिज्ञासावश पूछा कि सर, आपकी उंगलियों में घाव हो गया है, लिखने में दर्द होता होगा, आप टाइपिस्ट रखकर क्यों नहीं लिखवाते हैं. आपके पास तो सुविधा है, साधन है? उनका जवाब था कि सृजन का जो सुख हाथ से लिखने में है वह मशीन से लिखने में कहां.

लेखक के लिए हाथ से लिखना एक बड़ी चीज होती थी. आज जब मैं बेटी को कलम से लिखते हुए देखता हूं, तो सोचता हूं कि हाथ से लिखे कितना समय हो गया. पांच साल पहले तक मेरे जानने वाले मुझे लेखक होने का सम्मान देते थे और भेंट में कलम दिया करते थे. पांच सालों से किसी ने मुझे कलम भेंट में भी नहीं दिया. मेरी और मेरे बाद की पीढ़ी अब कलम से लिखना भूल भी गयी है. एक दिन हाथ से लिखना पड़ा तो मेरे हाथ कांपने लगे. मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं है कि कंप्यूटर पर लिखने में सुविधा अधिक होती है. आप उसको निर्ममता से संपादित कर सकते हैं. किसी की रचनाओं के टंकण में अशुद्धियों की संभावना भी अब कम हो गयी है. सबसे बड़ी बात है कि रचनाओं की कॉपी के खोने एक डर नहीं रहता. मुझे याद है मैं जिन दिनों कविताएं लिखता था, उन दिनों मेरी कविता की एक डायरी खो गयी, जिसमें मेरी कम से कम सौ कविताएं थीं.

बहरहाल, आज हाथ से लिखनेवाले लेखकों से मुलाकात होती है, तो लगता है जैसे वे दूसरे ग्रह से आये प्राणी हों. अब सोचता हूं कि ‘कलम आज उनकी जय बोल’ जैसी कविताएं क्या अप्रासंगिक हो गयी हैं. या फैज़ की वह मशहूर नज़्म- ‘मता-ए-लौहो कलम छिन गयी तो क्या गम है/ कि खूने दिल में डुबो ली हैं उंगलियां मैंने.’ आज जो पीढ़ी तैयार हो रही है उसका कलम से नाता स्कूल-कॉलेज तक ही रहा गया है. मेरी बेटी स्कूल में जरूर कलम से लिखती है, लेकिन घर में आकर कंप्यूटर पर लिखने का अभ्यास करती है. मुझे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र का यह कथन याद आता है कि आनेवाले समय में कंप्यूटर पर लिखी जानेवाली लिपि यूनिकोड ही हिंदी की सर्वमान्य लिपि हो जायेगी. हम कंप्यूटर से हिंदी लिखने की आलोचना भले कर लें, लेकिन यह सच्चाई है कि जब से कंप्यूटर से हिंदी लिखना सुगम हुआ है हिंदी में लिखने वालों की तादाद बढ़ गयी है. एक जमाने में कहा जाता था- कलम या कि तलवार. अब कहा जायेगा कंप्यूटर या कि तलवार!

प्रभात रंजन

कथाकार

prabhatranja@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें