जिले के सात गांवों का हाल. बरसात ही नहीं, जेठ में भी आवगमन मुश्किल
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सड़क बिना बदहाल 10 हजार लोग
जिले के सात गांवों का हाल. बरसात ही नहीं, जेठ में भी आवगमन मुश्किल चांदन नदी के तटवर्ती सात गांवों में पहुंचने के लिए आज भी एक अदद मुकम्मल सड़क नहीं है. ऐसे में लोगों को आवागमन में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. बांका : अपनी तमाम स्थानीय गौरवशाली विशिष्टताओं के बावजूद महज […]
चांदन नदी के तटवर्ती सात गांवों में पहुंचने के लिए आज भी एक अदद मुकम्मल सड़क नहीं है. ऐसे में लोगों को आवागमन में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
बांका : अपनी तमाम स्थानीय गौरवशाली विशिष्टताओं के बावजूद महज एक अदद सड़क के अभाव में सात गांवों के करीब 10 हजार लोग सूखे बैशाख में भी टापू की जिंदगी जीने पर विवश हैं. बांका की सीमा से लगी चांदन नदी के पश्चिमी तट पर बसे इन गांवों में राजपुर, सुपाहा, रामनगर, जोगिया, डुबौनी, कंझिया और पतवय शामिल हैं.
यहां लोग बरसात की रात में तो दूर, बैशाख जेठ की दोपहरी में भी आने जाने से पहले सौ बार सोचते हैं. ये सभी गांव अमरपुर प्रखंड के विशनपुर पंचायत अंतर्गत हैं, जहां विकाश के नाम पर सिर्फ लोकतंत्र के महापर्व अर्थात चुनावों के अवसरों पर वायदे बरसते हैं. और फिर वायदों की बरसात थमते ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का जो सूखा पड़ता है तो ग्रामीण अगले चुनाव में पुन: वायदों की बारिश में भींगने तक बुनियादी सुविधाओं तक का दुर्भिक्ष झेलने पर विवश होते हैँ.
आश्चर्य तो यह है कि ग्रामीण भारत, ग्राम स्वराज और ग्रामोत्थान जैसी लोक भावन योजनाओं की प्रणेता सरकारों के कार्यपालक भी इन कामों को जैसे भारत भूमि का अंश नहीं मानते. शायद यही वजह है कि वे भी यहां की लोगों की सड़क जैसी बुनियादी जरूरत तक से अनभिज्ञ और उदासीन बने हुए हैं.
बेहद खतरनाक है उबड़ खाबड़ कच्ची पगडंडी: इन गांवों तक पहुंचने के लिए एकमात्र पगडंडीनुमा उबड़ खाबड़ कच्ची सड़क है. जरा सी बारिश होते ही इसके गड्डों में पानी भर जाता है. फिर पता ही नहीं चलता कि सड़क किधर है और खेत किधर. यह सड़क राजपुर से डुबौनी तक चांदन नदी के तट से पश्चिम जबकि डुबौनी ठौर से पतवय गांव तक चांदन नदी के बिल्कुल पश्चिमी तट के समानांतर है. यह सड़क एक गांव से दूसरे को जोड़ने का भी एकमात्र जरिया है. कई जगह नदी की वजह से सड़क का इस तरह कटाव हुआ है कि इस पर चलना बेहद खतरनाक है. फिर भी लोग विवश होकर इस सड़क पर चलने की जोखिम उठाते हैं.
जिला योजना से भी नहीं बन पायी सड़क
दरअसल, समुखिया मोड़ से जेठौर तक जाने वाली करीब 6 किलोमीटर लंबी यह पूरी सड़क ही कच्ची और खतरनाक है. राजपुर तक इस सड़क में कुछ स्थानों पर बोल्डर-मेटल बिछाये गये हैं जबकि कुछ अंश तक रामनगर के पास पीसीसी भी किया गया है. लेकिन यह नाकाफी है. रामनगर से आगे सड़क पूरी तरह ग्रामीणों की पीड़ा बनी हुई है. कुछ वर्ष पूर्व जिला योजना मद् से इस सड़क को बनाने का प्रस्ताव पास हुआ था. लेकिन इसके बाद यह सड़क जिला परिषद की उपेक्षा श्रेणी में शायद सबसे उपर दर्ज हो गया. तभी तो इस सड़क की स्थिति सुधरने की जगह लगातार बदतर होती चली गयी.
उपज बाजार नहीं पहुंचा पाते किसान
चांदन नदी के कछार में होने की वजह से कटाव और बहाव के हर वर्ष होने वाले आक्रमण के बावजूद यह क्षेत्र बेहद उपजाउ और उर्वर है. सिर्फ खरीफ और रबी ही नहीं, नकदी फसल भी इन गांवों की खास पहचान हैं. गन्ना, सब्जी, मक्का और फल यहां बड़े पैमाने पर होते हैं. लेकिन त्रासदी ये है कि सड़क के अभाव में वे इन फसलों को बाजार तक नहीं पहुंचा पाते. उन्हें मजबूरी में अपनी फसल आढ़तिए एवं बिचौलियों को औने पौने दर पर बेचना पड़ता है. यही वजह है कि तमाम सैद्धांतिक संपन्नताओं के बावजूद इन गांवों के लोगों की व्यावहारिक विपन्नताएं कायम हैं.
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