एक था राजा, उसकी बहुत बड़ी सेना थी. वो बहुत बड़े महल में रहता था, सोने-चांदी से जड़े हुए लिबास पहनता था, उसकी कई रानियां थीं.
जो उस राजा की नहीं सुनता था या तो उसे डरा धमकाकर क़ाबू में कर लिया जाता था या फिर उसका सर क़लम कर दिया जाता था.
बहुत पुराने ज़माने की राजा टाइप कहानी लग रही है न? चलिए आपको 21वीं सदी के राजा की कहानी सुनाता हूं.
एक बहुत बड़े राजा हैं, वो महल में तो नहीं, लेकिन एक बड़े से घर में रहते है. आमतौर पर टीशर्ट और जींस में ही नज़र आते है. उम्र है सिर्फ़ 31 की और उनकी एक ही रानी है और एक बच्चा भी है.
किसी को डराना-धमकाना, किसी का सर क़लम करना तो दूर की बात, आज तक किसी ने उन्हें ऊंची आवाज़ में बात करते हुए भी नहीं सुना. लेकिन उनकी सत्ता दुनिया में फैलती जा रही है.
कहते हैं फ़िलहाल वो एक अरब साठ करोड़ लोगों पर शासन करते हैं यानी चीन और भारत से भी ज़्यादा बड़ी आबादी पर उनका क़ब्ज़ा है.
और उनके राज में सभी ख़ुश नज़र आते हैं. सभी एक दूसरे को लाइक करते हैं, एक दूसरे पर कमेंट करते हैं, अपनी निजी ज़िंदगी एक दूसरे के लिए खोल देते हैं.
कौन मनाली में गलबहियां डाले खड़ा है और कौन हवाई में बिकनी-दर्शन कर रहा है, किसने मुग़लई खाया और किसने चायनीज़, किसकी शादी के बीस साल पूरे हो गए और कौन नए हेयर कट की ख़ुशी मना रहा है, अब ये सारी बातें सबको पता होती हैं.
उनके राज में लोग एक दूसरे को गालियां भी देते हैं, बिल्कुल मां-बहन वाली, लेकिन गाली दी किसने ये पता नहीं चल पाता, गाली ली किसने ये भी नहीं पता चल पाता. सब ख़ुश रहते हैं. मांएं और बहनें भी हैप्पी मदर्स डे और रक्षाबंधन की बधाइयों से तरोताज़ा रहती हैं.
राजा ने प्रजा का इतना ध्यान रखा है कि उसे क्या ख़रीदना है, कहां से ख़रीदना है, कौन सा म्यूज़िक सुनना है, कौन सा खेल देखना है, सब वही तय कर देता है. दिमाग़ पर ज़ोर डालने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.
मोदी, ओबामा, पुतिन, ट्रंप, हिलेरी कोई इस राजा की बराबरी में खड़ा नहीं हो सकता.
सरहदें मायने नहीं रखतीं, पासपोर्ट-वीज़ा की ज़रूरत नहीं पड़ती, एक ऊंगली ज़रा सी दबाई और आप इस रियासत के अंदर होते हैं यानी बादशाहों के बादशाह, फ़ेसबुक-नरेश मार्क ज़करबर्ग की हुकूमत के अंदर.
नेता, अभिनेता, मालिक, मज़दूर, चोर, कोतवाल, टीवी, अख़बार सभी बिना किसी दबाव के, बिना ज़ोर-ज़बरदस्ती के ख़ुशी-ख़ुशी हंसते-खेलते उनकी शरण में चले आ रहे हैं, सही मायने में इसे कहते हैं अच्छे दिन, अच्छा राजा.
बारह साल पहले जब एक हार्वड कैंपस में इस रियासत की नींव रखी गई थी, तो इसका मकसद था कॉलेज गॉसिप और वहां पढ़ रही लड़कियों की ख़ूबसूरती को आंकना. आज राजा ज़करबर्ग दुनिया पर हुकूमत चला रहे हैं.
लेकिन ख़बर है कि राजा अब टूथपेस्ट और नारियल तेल बेचकर ख़ुश नहीं है, उठती-ढलती जवानियों की सेल्फ़ी और उनकी वाहवाही से ऊब रहे हैं, पप्पू हनीमून मनाने मनाली गया या गोआ ये सब जानकारी शेयर करते-करते तंग आ चुके हैं.
सुना है अब वो इन सबसे बड़ा खेल खेलने के मूड में है और लोगों की सोच पर क़ाबू करने के जुगाड़ में हैं.
लोग किसके बारे में क्या सोचें ये भी तय करने की कोशिश में हैं और वो भी इस बारीकी से कि सोचने वाले को पता भी न लगे कि उसकी सोच बदल दी गई है या उसपर किसी का क़ब्ज़ा हो गया है.
उसकी रियासत के अंदर भारत और अमरीका जैसे छोटे-छोटे कस्बे और मोहल्ले बसे हुए हैं जहां के लोग अक्सर चार-पांच साल पर अपना मुखिया चुनते हैं.
उड़ती-उड़ती ख़बर है कि राजा के पास अब ऐसा नुस्खा है कि अगर वो चाहें तो लोग वैसा ही मुखिया चुनेंगे जो राजा की पसंद का हो. और इस नुस्खे की ख़ासियत ये है कि लोगों को ऐसा लगेगा कि उन्होंने अपने दिल की सुनकर अपना मुखिया चुना है.
यानी उठते-बैठते, सोते-जागते जनता के इर्द-गिर्द वही बातें होंगी, वही तस्वीरें होंगी जो उसकी सोच पर क़ब्ज़ा कर ले.
राजा के एक-दो मुलाज़िम पिछले दिनों बाग़ी हो गए थे और उनके हवाले से ख़बर आई है कि राजा ने अपने नुस्खे को टेस्ट भी किया है.
बागियों की मानें तो उन्होंने इस नुस्खे के ज़रिए ये कोशिश की है कि अमरीकी चुनाव में उनके चहेते मुख़िया के ख़िलाफ़ खड़े उम्मीदवारों की बातें लोगों तक पहुंचे ही नहीं.
उनके पास ऐसा नुस्खा भी है कि राजा के चहेते मुखिया के गांव की ख़ुशहाली की बातें ही हों, बुरी बातें कहने वाले के ख़िलाफ़ इतने लोग बोलें कि उसकी बात झूठी लगने लगे.
यानी किस गांव पर मोदी का राज हो, किस गांव पर ट्रंप का, मुमकिन है कि ये फ़ैसला राजा की रसोई में ही हो जाए.
बढ़िया है. आपकी एक और परेशानी ख़त्म होगी और आप मौज में गुनगुनाते फिरेंगे–चल बेटा सेल्फ़ी ले ले रे.
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