बल्देव भाई शर्मा
भारत में वेद-पुराणों से लेकर आधुनिक साहित्य तक में कई तरह से पानी के महत्व को बताया गया है. भारतीय चिंतन में जल को भी देवता माना गया है और उसके पूजन-संरक्षण का भी संदेश दिया गया. वरुण और इंद्र जल के देवता कहे गये हैं. उपनिषद में बालक आरुणि की कथा बड़ी प्रेरक व रोचक है. इसमें गुरु के प्रति भक्ति व आज्ञापालन की सीख है कि कैसे जल को बरबाद होने से बचाने के लिए आरुणि ने अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की.
गुरु उद्दालक के आदेश पर आरुणि खेतों में फसल की सिंचाई के लिए पानी दिये जाने की निगरानी के काम में लगाथा. शीत का समय, खेतों में पानी भरते-भरते रात होने लगी. आश्रम में सभी सोने चले गये, लेकिन आरुणि निगरानी में लगा था. अचानक आरुणि ने देखा कि पानी खेत की मेड़ तोड़ कर बाहर जाने लगा. आरुणि ने मिट्टी डाल कर उसे रोकने का प्रयास किया लेकिन पानी का बहाव तेज होने से बार-बार डालने पर भी मिट्टी बह जाती थी. आरुणि चिंतित हुआ कि गुरु ने जो काम सौंपा उसकी देखरेख ठीक से न करने का दोष तो उसे लगेगा ही, फसल की भी बरबादी होगी और पानी भी बरबाद होगा. अंतत: आरुणि ने स्वयं उस जगह पर जमीन पकड़ कर लेट गया जहां से पानी तेजी से बाहर जा रहा था. पानी तो रुक गया लेकिन भयंकर शीत भरी रात में वह बेसुध हो गया. उधर, प्रात: जब सभी जगे तो गुरु ने आरुणि को नहीं देखा. काफी खोजबीन के बाद भी उसका अता-पता नहीं चला .
गुरु को ध्यान आया कि आरुणि को खेतों में पानी देने की देख-रेख पर लगाया था. वहां जाने पर जो देखा तो सभी अचंभित हो उठे. खेतों में पानी तो सही-सलामत भरा जा रहा था लेकिन आरुणि टूटी मेड़ के बीच बेसुध पड़ा था, ठंड और पानी से उसका शरीर नीला पड़ गया. उसे आश्रम में लाकर गुरु ने उपचार किया, कुछ समय बाद आरुणि स्वस्थ होकर उठ बैठा.
गुरु ने पूछा तुमने ऐसा क्यों किया, आरुणि ने बड़ा मासूम-सा उत्तर दिया कि आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए मुझे कोई उपाय नहीं सूझा तो मैं खुद लेट गया. गुरु की आंखें छलछला आयीं ऐसा शिष्य पाकर. यही आरुणि बड़ा होकर ऋषि के नाम से विख्यात हुआ और नचिकेता इन्हीं का पुत्र था.
आज जब देश के कई हिस्सों में पानी के लिए हाहाकार मचा है, कई स्थानों पर ट्रेनों से केंद्र सरकार पानी भिजवा रही है तब समझ में आ रहा है कि पानी की कमी जीवन के लिए कितना गंभीर संकट बन जाता है.
आदमी की प्यास से लेकर खेतों की सिंचाई और पशु-पक्षियों का जीवन पानी के बिना कल्पना नहीं की जा सकती . इसलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है. आशंकाएं तो यहां तक व्यक्त की जाती हैं कि यदि दुनिया में तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह पानी के लिए ही होगा, पानी का संकट केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में छाया हुआ है.
नदियां सूख रही हैं, तालाब भर कर उस जमीन का अतिक्रमण कर बेरोकटोक भवन बनाये जा रहा हैं, जल स्रोत लगातार घट रहा है और धरती के गर्भ का पानी और नीचे खिसकता जा रहा है यानी उसकी मात्रा निरंतर घट रही है. इन स्थितियों का फायदा उठा कर पानी का निजी कारोबार बढ़ रहा है. अब तो रेस्टोरेंट और होटलों में भी नाश्ते-खाने के बाद पानी पैसे देकर खरीदना पड़ता है. जगह-जगह प्याऊ लगा कर लोगों की प्यास बुझाना कभी पुण्य का काम माना जाता था, आज प्याऊ कहीं दिखता नहीं है.
पहले शहरों-कस्बों में पशु-पक्षियों के लिए भी कई जगह लोग पानी का इंतजाम करते थे. गरमी में तो ऐसे दृश्य आम थे, लेकिन आज पीने के लिए भी पानी खरीदना तो शहर में लगभग हर परिवार की मजबूरी सी हो गयी. रेलवे स्टेशनों पर पेयजल के लिए यात्री मारे-फिरते हैं, बच्चे प्यास से तड़पते हैं पर पानी नहीं मिलता, कई लोग, कुछ संस्थाएं इनके लिए कहीं-कहीं व्यवस्था करती भी हैं, पर वह भी ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है.
हमारे पूर्वज ऋषि, शास्त्रकार दूरदृष्टा थे, इसीलिए उन्होंने जल के महत्व को बार-बार रेखांकित किया ताकि हम जीवन में पानी की जरूरत और उपलब्धता को समझें और उसके अशुद्ध करने व बरबाद हाेने से बचाएं. श्री गुरुवाणी में कहा गया है, ‘पवन गुरु पानी पिता माता धरती महत.’ पर्यावरण संरक्षण का इससे स्पष्ट संदेश और क्या हो सकता है ? लेकिन आदमी की भौतिकवादी सोच और अकूत सुविधाओं में जीने की लालसा ने प्रकृति, पर्यावरण सबको विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया. हवा सांस लेने लायक नहीं बची है.
पानी पीने लायक नहीं बचा है. पहाड़ सुलग रहे हैं, वन नष्ट हो रहे हैं, नदियां या तो सूख रही हैं या विषैली हो रही हैं और पर्यावरण संतुलन बिगड़ते जाने से धरती की दाती भूकंपों में प्रकंपित है. दुनिया में समुद्रों का जल स्तर बढ़ते जाने के खतरे के कारण एक बड़ी आबादी के डूबने की भी आशंका बनी रहती है.
कुल मिला कर तो ये सब मानवता के लिए ही संकट हैं जो इसी पश्चिमी सोच में से पैदा हुए हैं कि सब कुछ मनुष्य की असीमित मांग के लिए बना है, इसलिए अपनी सुख-सुविधा के लिए जितना प्रकृति का, उसके संसाधनों का दोहन हो सकता है, उतना करो. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा धन कमाओ और उसे सुविधाओं पर खर्च करो. एसी, कार जैसी सुविधाएं भी कार्बन उत्सर्जन के कारण इतनी खतरनाक होती जा रही हैं कि उनसे मिलने वाली सुविधा फीकी पड़ रही है. बिजली-पेट्रोलियम पदार्थों का बेतहाशा उपभोग दूसरों के लिए कितना बड़ा संकट पैदा कर रहा है यह शायद ही कोई सोचता हो. पानी की ऐसी कमी के बावजूद कारों की धुलाई में साफ पानी की बरबादी क्या किसी के दिल में चुभती है?
हमारे वेद, पुराण, उपनिषद सबमें यही संदेश है कि प्रकृति का संरक्षण करो . प्रकृति मनुष्य की जरूरतेें तो पूरी कर सकती है, लालसाएं नहीं. हमारी लालसाएं इतनी बढ़ गयी हैं कि हम अपने धन के बल पर दूसरों की जरूरतों का हिस्सा भी हड़प लेते हैं. अगर आधा गिलास पानी चाहिए तो उतना ही लें. आधा गिलास की जरूरत होने पर पूरा गिलास भर कर पानी लेना और फिर पीकर पानी फेंक देना सचमुच अपराध है. ऐसा अपराध जिसकी कोई सजा भले न हो, पर मन तो कचोटता ही है.
यह संवेदना जगाना बहुत जरूरी है, बच्चों को भी पानी के उपयोग के बारे में शुरू से ही सिखाया जाना चाहिए . हम कितने ही धनाढ्य हों पानी को बरबाद नहीं करना चाहिए. क्योंकि प्रकृति के संसाधन सबके लिए है, उनके लिए भी जो साधनहीन हैं. प्रकृति की परवाह नहीं करोगे, अपने धन के अहंकार में उसे मात्र उपभोग की वस्तु समझोगे तो वह मानवजाति को ही नष्ट कर देगी.
तेजी से बढ़ रही भूकंपों, तूफानों और नये-नये रोगों की श्रृंखला प्रकृति का प्रकोप ही है. जीवन को संयमित रह कर जीने और दूसरों के हिस्से का कुछ भी उपभोग न करने की सीख देने के लिए ही भारत का अध्यात्म है. इसलिए गहराते जल संकट के दौर में पानी को बचाने और उसके संरक्षण की हर स्तर पर कोशिश होनी चाहिए. लगातार घटती बारिश से निबटने के लिए वर्षा जल का संरक्षण किया जाना बेहद जरूरी है ताकि न केवल जल का संचय हो बल्कि उसके असर से धरती का सूखता जल स्तर बढ़े. अन्ना हजारे ने रालेगण सिद्धि गांव में इसका उत्तम उदाहरण प्रस्तुत कर गांव की काया पलट कर दी.