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FILM REVIEW : जानिए कैसी है फिल्म “अजहर”

-अनुप्रिया अनंत- फिल्म रिव्यू :अजहरकलाकार : इमरान हाशमी, गौतम गुलाटी, वरुण वडोला, प्राची देसाई, नरगिस फाकरी, लारा दत्ता, करन रॉय कपूर निर्देशक : टोनी डिसूजा निर्माता : एकता कपूर बालाजी प्रोडक् शन लेखक : रजत अरोड़ा रेटिंग : 2.5 स्टार एक आम लड़का. हैदराबाद की गलियों से निकल कर भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनता […]

-अनुप्रिया अनंत-

फिल्म रिव्यू :अजहर
कलाकार : इमरान हाशमी, गौतम गुलाटी, वरुण वडोला, प्राची देसाई, नरगिस फाकरी, लारा दत्ता, करन रॉय कपूर

निर्देशक : टोनी डिसूजा

निर्माता : एकता कपूर बालाजी प्रोडक् शन
लेखक : रजत अरोड़ा
रेटिंग : 2.5 स्टार
एक आम लड़का. हैदराबाद की गलियों से निकल कर भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनता है. अपने पहले ही तीन टेस्ट मैचों में शतक लगाने वाला यह लड़का, उस दिन तक पूरे देश का हीरो बना रहता है, जब तक उस पर एक गंभीर इल्जाम नहीं लगता. अचानक उसका नाम मैच फिक्सिंग में आता है और वही नायक अचानक खलनायक बन जाता है. इंसान दौलत शोहरत बार-बार बना सकता. लेकिन एक बार जो इज्जत जाये तो दोबारा नहीं मिलती. भारतीय क्रिकेट टीम के सफल कप्तानों में से एक मोहम्मद अजहरुद्दीन की जिंदगी भी इन्हीं उतार-चढ़ाव के बीच गुजरी.
अपने शानदार परफॉरमेंस से एक तरफ जहां उन्होंने करोड़ों हिंदुस्तानी के दिलों में जगह बनायी. वहीं, करोड़ों हिंदुस्तानी के सपने तब टूटे, जब उनका हीरो मैच फिक्सिंग के इल्जाम में फंसता है. अजहर अजहरुद्दीन की जिंदगी के इसी अंधकार भरी जिंदगी को दर्शाती है, जो क्रिकेट के जानकार हैं. विशेषज्ञ हैं और अजहर के फैन रहे हैं. वे इन बातों से भलि भांति वाकिफ होंगे कि अजहर वाकई बहुत ही साधारण परिवार से निकल कर आये और अपने बल्ले के दम पर उन्होंने अपनी पहचान बनायी.
उनकी जिंदगी में उन्होंने काफी मुफलिसी का भी दौर देखा था. लेकिन वे जानते थे कि जब तक उनका बल्ला बोलेगा. सारी दुनिया उन्हें सुनेगी. वे खेलते रहे और मुकाम हासिल किया. यह उनके लिए बड़ी कामयाबी थी कि मनोज प्रभाकर, रवि शास्त्री, कपिल देव जैसे सीनियर खिलाड़ियों के होते हुए उन्हें कप्तानी की कमान सौंपी गयी थी और उन्होंने अपनी कप्तानी में कई गेम जीते भी. लेकिन एक गलती और वे शिखर से शून्य पर आ गये. मैचफिक्सिंग को लेकर भारत को तीन मैचों में हराने को लेकर उन पर लगातार छींटाकशी होती रही. जो फैन उन्हें मुड़ कर देखते थे, वे हीन भावना से देखने लगे थे. उन्हें देश का गद्दार भी कहा गया था. फिल्म अजहर अजहरुद्दीन की जिंदगी में उसी हिस्से को झांकने और टटोलने की कोशिश है.
निर्देशक ने शुरुआत वही से की है. फिर हम अजहर की निजी जिंदगी के भी पन्ने पलटते जाते हैं, जहां हमें अजहर के बेहद शर्मिले, कम बोलने वाले और परिवार के लिए पूर्ण समर्पित अजहर की छवि देखने को मिलती है. फिर अचानक उनकी जिंदगी में एक बॉलीवुड अभिनेत्री का प्रवेश होता है और उनकी जिंदगी में तब्दीलियां हो जाती हैं. एक आदर्श पुरुष और पति रहे अजहर उस दौरान ही अपनी छवि को धूमिल कर चुके थे. जिस दौर में उन्होंने अपनी पत्नी के रहते दूसरी अभिनेत्री से इश्क किया. निर्देशक ने उन पहलुओं को भी दर्शाया है, लेकिन पूरी कहानी अजहर पर चल रहे कानूनी कार्रवाई के इर्द-गिर्द ही है. निर्देशक ने अजहर के संघर्ष की कहानी नहीं दिखायी है. शायद वह वे पहलू छूते, तो दर्शक उनसे और कनेक्ट कर पाते. लेकिन फिल्म के लेखक रजत अरोड़ा एक बार फिर से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने एक बार फिर से अपने संवादों से फिल्म में धुंआदार पारी खेली है.
फिल्म के संवाद फिल्म के स्तंभ हैं. क्रिकेट की शब्दावली में कहें, तो दर्शक उनके संवाद सुन कर क्लीन बोल्ड होंगे. यही इस फिल्म का सबसे बड़ा स्कोरबोर्ड है. रजत अरोड़ा के संवाद ही इस खेल के ओपनिंग बैट्समैन की तरह मजबूत हैं. निर्देशक ने कहानी गढ़ते हुए इसे कई जगहों पर स्वभाविक होने की जगह अधिक मेलोड्रामेटिक किया है. वह कमी भी फिल्म में खलती है. इमरान हाशमी ने अपने हिस्से को बखूबी जिया है. लेकिन वे कई जगहों पर खुद के होने का अहसास कराते हैं .
कई जगहों पर हम भूल जाते हैं कि हम अजहर की वास्तविक जिंदगी देख रहे. और यह बात खलती है. हालांकि उनकी मेहनत साफ नजर आयी है. फिल्म के आखिरी दृश्य स्वाभाविक और विश्वसनीय नहीं लगते. वे सब्जेक्ट को बेवजह पाक साफ साबित करने की नाकामयाब कोशिश लगी है. बेहतर होता कि निर्देशक जब सिनेमेटिक लिबर्टी ले ही रहे थे इसे और विश्वसीनयता से दिखाते. कई जगहों और दृश्यों में यह विषय वाकई काल्पनिक कहानी लगने लगती है. कई मायनों में यह इस फिल्म के पक्ष और विपक्ष दोनों में हो सकता.
इमरान हाशमी के अलावा शेष किसी भी कलाकार पर निर्देशक ने गंभीरता से काम नहीं किया है. लारा दत्ता और करन रॉय कपूर वाकई अच्छे कलाकार हैं, सो उन्होंने अपना अभिनय संजीदगी से निभाया है. शेष कलाकारों में रवि की भूमिका में गौतम, मनोज प्रभाकर की भूमिका में.. कपिल की भूमिका में वरुण वडोला और नवजोत सिंह सिद्धू का किरदार निभा रहे कलाकार स्वाभाविक नहीं लगे हैं. बेहतर होता कि इन कलाकारों का चयन भी संजीदगी से किया जाता. प्राची देसाई ने सीमित दृश्यों में फिर भी गंभीरता दिखाई है.
मगर नरगिस फाकरी संगीता बिजलानी के किरदार में बिल्कुल स्वाभाविक नहीं लगी हैं और यह फिल्म की कमजोर कड़ी है. क्रिकेट टीम वर्क है. एक खिलाड़ी पर पूरी टीम नहीं बल्कि पूरी टीम पर जीत का दावं होता है. यह बात निर्देशक भी अगर गंभीरता से समझते तो वे केवल मुख्य कलाकार अजहर पर नहीं, बल्कि शेष कलाकारों और दृश्यों पर भी गंभीरता से ध्यान रखते. एक बेहतरीन फिल्म बनते बनते इन वजहों से यह महज अच्छी व औसत फिल्म बन कर रह जाती है.

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