प्रभात खबर के पिछले कुछ अंकों में इतिहास में दर्ज चंद अमर प्रेम कथाएं पढने का अवसर मिला. इसके लिए अखबार बधाई का पात्र है. अमर गाथाएं और भी हैं जैसे लैला-मजनूं, सोहनी-महीवाल, शीरीं-फरहाद, सदावृक्ष-सारंगा आदि, जिनसे हम भली-भांति परिचित हैं.
इनकी गाथाओं पर आधारित फिल्में भी हम देख चुके हैं. कहते हैं ‘ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय’! लेकिन एक बात तो तय है कि जो प्यार असफल रह जाता है वही ‘अमर प्रेम’ बन जाता है, जैसा ऊपर लिखे नामों के साथ हुआ़ जो प्यार सफल हो जाता है वह गृहस्थी के जंजाल में उलझ कर रह जाता है. कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम में असफलता ही उसे अमरत्व प्रदान करती है! ऐसा क्यों है?
डॉ विनय कुमार सिन्हा, रांची