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जीवन कर सकता है तबाह बेटे-बेटियों का बेमेल विवाह

वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena आज समाज के जो हालात हैं, उन्हें आप युवा ही बदल सकते हैं. आप चाहें तो हर स्तर पर बदलाव हो सकते हैं. समाज की हर बुराई को खत्म कर सकते हैं. नये आदर्श समाज की संरचना कर […]

वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
आज समाज के जो हालात हैं, उन्हें आप युवा ही बदल सकते हैं. आप चाहें तो हर स्तर पर बदलाव हो सकते हैं. समाज की हर बुराई को खत्म कर सकते हैं. नये आदर्श समाज की संरचना कर सकते हैं. बशर्ते आप चाहें और आगे बढ़ कर कदम उठाएं तो !
जब आप कदम उठायेंगे तो आनेवाली पीढ़ी खुद-ब-खुद आपके द्वारा बनाये-बताये रास्ते पर चलेगी. इसलिए अगर आप सजग हैं, तो खुशहाल समाज स्थापित होने से को कोई नहीं रोक सकता. चाहे वह भ्रष्टाचार, नारी का सम्मान, अपराध हो या झूठ-फरेब का संसार हो. इतिहास गवाह रहा है जब-जब देश के युवाओं ने बदलाव की बागडोर अपने हाथों में ली, तब-तब ही आमूल-चूल परिवर्तन हुए. इसलिए देश की बेहतरी के लिए आपको आगे आना ही होगा, जिससे आनेवाली पीढ़ी को सही दिशा-निर्देश मिल सके.
एक महिला ने लिखा है कि वह तीन बहनें हैं और एक भाई. उनके माता-पिता लड़का चाहते थे और इसी चाहत में हम सब बहनों ने जन्म लिया. हम सम्पन्न परिवार से नहीं हैं. इसीलिए हम तीनों का विवाह वहां किया गया, जहां एक भी पाई खर्च नहीं हुई. लेकिन मेरे पति मुझसे दोगुना उम्र के हैं. मेरी बाद वाली बहन के पति की पहली शादी हो चुकी थी और उनकी एक बेटी भी है और तीसरी बहन के पति के पैर पोलियो की वजह से खराब हैं. हमारे माता-पिता के पास इतने रुपये कहां थे कि हमारे लिए हमारे लायक लड़का खोजते या इसे हमारी किस्मत कहिए कि हमें जहां-तहां बांध दिया गया. हमें अपनी पसंद चुनने का भी अधिकार नहीं दिया गया.
हम सभी बहनें थोड़ा-बहुत पढ़ीं, फिर सबकी शादी कर दी गयी. वह भी हमसे बिना पूछे, क्योंकि हमारे पिता के पास रुपये ही नहीं थे. अगर हमें खरीदा न गया होता तो मैं कभी भी अपनी उम्र से दोगुने व्यक्ति से विवाह नहीं करती, न ही अपनी बहन की शादी शादीशुदा से होने देती और न ही अपनी सबसे लाड़ली बहन को ऐसे लड़के के साथ बंधने देती, जिसके पैर ही खराब हों. हम तो वैसे भी अनचाही संतान हैं, जिसे मां ने कहीं भी बांध दिया. दर-दर भटकने से तो बेहतर है कि किसी घर में शादी करके रहना. मान लिया यह भी ठीक है, मगर भाई की शादी भी उन्होंने वहां की, जहां उन्हें ज्यादा दहेज मिला. साथ ही लड़की ऐसी कि वह हम बहनों को देख नहीं सकती. उसकी आंखें खराब हैं. मतलब जिसे भैंगापन कहते हैं, वैसी हैं उसकी आंखें.
अगर मां उससे काम कहती हैं तो यही जवाब देती है कि मेरे पापा ने इतना सारा दहेज इसलिए थोड़े ही दिया कि मैं काम करूं. सब कहने की बातें हैं, लोग उपदेश बहुत देते हैं, लेकिन आज भी लड़कियों और लड़कों की मजबूरी खरीदी-बेची जाती है.
मेरा भाई तो बहुत हैंडसम है, मगर दहेज के लालच में पिता ने उसका भी सौदा कर दिया. जब तक समाज में गरीबी रहेगी तब तक हम जैसे बच्चों को बिकना पड़ेगा. माना कि घरवालों के पास रुपये नहीं थे तो अपनी बराबरी में विवाह करना चाहिए था. पता नहीं हमारे माता-पिता कैसे थे, जिन्होंने ऐसी जगह रिश्ता जोड़ा जो उनकी बेटी की दोगुनी उम्र का था, एक शादीशुदा था और तीसरे के पैर खराब थे . हमारी क्या गलती थी ? यही कि हमने गरीब परिवार में जन्म लिया. क्या गरीब परिवार में जन्म लेने की इतनी बड़ी सजा मिलनी चाहिए लड़कियों को? मुझे तो लगता है गरीब होने की सबसे बड़ी सजा नारी भुगतती है.
बात यही पर खत्म नहीं होती. मेरे भाई को भी बेचा गया और बदले में ऐसी लड़की मिली जो बात-बात पर धमकी देती है कि जहर खा लूंगी, जब पुलिस ले जायेगी पकड़ कर तब आयेगी अक्ल ठिकाने. मां को सारा काम करना पड़ता है. मगर मां भी अपने कर्मों को ही भोग रही हैं. हम कुछ कहें तो भाभी कहती हैं- तुम लोग अपने घर को देखो. अगर चाहती हो कि घर में आना-जाना बना रहे, तो अपना मुंह बंद रखो.
आखिर मैम, कब तक ये बिकने-बिकाने की परंपरा चलती रहेगी? कहीं लड़कियां खुद बिकती हैं, कहीं बेची जाती हैं. अगर हमारे पिता ने बराबरी में हमारी शादी की होती तो कम-से-कम हम खुश तो रहते. मैं मजदूर से शादी करके खुश रहती. कम-से-कम वह सम्मान से कमाता तो और मुझे भी समझता. मैं 20 वर्ष की थी और मेरा पति 40 का. मेरी बहन 17 वर्ष की थी और उसका पति 28 वर्ष का.
उसकी पहली पत्नी ने उसे छोड़ दिया था. यह विवाह गैर कानूनी भी है, क्योंकि पहली पत्नी से तलाक नहीं हुआ. जिस बहन को मैंने लाड़ से पाला, उसका पति ठीक से चल नहीं सकता. हम सभी बहनों को खरीदा गया या यूं कहें कि हमारे माता-पिता ने बेच दिया और जिस बेटे के लिए उन्होंने तीन बेटियों को जन्म दिया, उस बेटे को भी बेच दिया, पांच लाख में. अब वह घर का काम नहीं करती. मां को करना पड़ता है. हम बहनें घर भी नहीं जा सकतीं. मेरा भाई देखने में बहुत अच्छा है, मगर उसकी किस्मत तो काली निकली. जिसको उसके अनुरूप लड़की नहीं मिली. कम-से-कम शालीन, खुशमिजाज और माता-पिता का कहना माननेवाली तो होनी चाहिए थी. शायद माता-पिता को उनके कर्मों की सजा मिली है.
इस मेल को पढ़ते वक्त बहुत दुख हुआ. यह बात आप सब माता-पिता को समझनी होगी कि अपनी बेटियों की नुमाइश न लगाएं. घर ऐसा तलाश कीजिए जो आपकी बराबरी का हो. कभी-कभी अपनी हैसियत से ज्यादा के चक्कर में आपकी बेटी सारी उम्र पिसती है. यह बहुत ही गंभीर स्थिति है. किसी की भी मजबूरी-बेबसी कोमत खरीदिए.
क्रमश:

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