जयपुर/नयी दिल्ली : भाजपा शासित राजस्थान के स्कूलों की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों को अब स्वतंत्रता संघर्ष या आजादी के बाद के भारत में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के योगदान के बारे में नहीं पढ़ाया जायेगा. आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब से नेहरु और उनके योगदान से जुड़ी जानकारियां हटा दी गयी हैं. इस कदम पर कांग्रेस आक्रोशित है और अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है.
सामाजिक विज्ञान की पुनरीक्षित पाठ्य-पुस्तक के दो अध्यायों से नेहरु से जुड़ी जानकारियां पूरी तरह हटा दी गयी हैं. इस पाठ्य-पुस्तक को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में इस शैक्षणिक वर्ष से पढ़ाया जायेगा. अजमेर स्थित राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबंधित पाठ्यक्रम में आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की संशोधित पुस्तक में नेहरु का कोई जिक्र नहीं किया गया है. संशोधित पुस्तक बाजार में उपलब्ध नहीं है. लेकिन इस पुस्तक के प्रकाशक राजस्थान पाठ्य पुस्तक मंडल ने इसे वेबसाइट पर डाल दिया है.
‘‘जानबूझकर” नेहरु का नाम और उनके योगदान की जानकारी हटाने के इस कदम पर आक्रोशित कांग्रेस ने कहा कि आरएसएस-भाजपा का गठजोड़ ‘‘पाठ्य-पुस्तकों से छेड़छाड़ कर सकता है, लेकिन इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकता.” राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि नेहरु का नाम हटाने के इस कदम के खिलाफ पार्टी न सिर्फ राजस्थान में बल्कि पूरे देश में बड़े पैमाने पर आंदोलन करेगी. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा ‘‘आरएसएस-भाजपा की ओछी और संकीर्ण मानसिकता” को दर्शाता है.
पुस्तक के संशोधित संस्करण में स्वतंत्रता सेनानी हेमू कलानी का नाम जोड़ा गया है. साथ में महात्मा गांधी, वीर सावरकर, भगतसिंह, बालगंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस आदि अन्य नामों का पहले से उल्लेख है, लेकिन नेहरु का नाम न तो पुस्तक के स्वतंत्रता संग्राम वाले अध्याय में और न ही आजादी के बाद के भारत के अध्याय में उल्लिखित है.
‘आठवीं कक्षा के लिए सामाजिक विज्ञान’ नाम की पुस्तक के पहले के संस्करण में ‘राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता’ शीर्षक से एक सारणी बनायीगयी थी. जिसमें दादाभाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, नेहरु और सुभाष चंद्र बोस के नामों और उनके योगदानों की जानकारी दी गयी थी. उस सारणी में नेहरु के बारे में लिखा गया था, ‘‘बैरिस्टर बनने के बाद वह राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुए. वह बाद में कांग्रेस अध्यक्ष, अंतरिम सरकार के नेता और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने.”
इस किताब में दी गयी नेहरु से जुड़ी अन्य जानकारियाें के अलावा यह सारणी भी नयी किताब में शामिल नहीं की गयी है. संशोधित पुस्तक का पाठ्यक्रम उदयपुर के राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा तैयार किया गया है. राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान को कई पाठ्य पुस्तकों के पुनरीक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.
सचिन पायलट ने कहा, ‘‘यह एक सोची-समझी रणनीति है, आरएसएस-भाजपा का साफ एजेंडा है कि नेहरु एवं ऐसे अन्य कद्दावर नेताओं के योगदानों को मिटा दिया जाये. यह पाठ्य-पुस्तकों से छेड़छाड़ की उनकी नापाक कोशिश है ताकि युवाओं को एक ऐेसे इतिहास की जानकारी दी जाये जो सच ही नहीं है.
पायलट ने दिल्ली में पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘आरएसएस-भाजपा पाठ्य-पुस्तकों से छेड़छाड़ कर सकती है लेकिन इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकती और न ही नेहरु जैसी शख्सियतों के योगदान को दरकिनार कर सकती है.”
इस संदर्भ में पायलट ने कुछ महीने पहले दिल्ली में हुए अफ्रीका-भारत सम्मेलन का भी हवाला दिया और कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस सम्मेलन में नेहरु का जिक्र तक नहीं किया, लेकिन कई अफ्रीकी नेताओं ने उनके योगदानों को याद किया, क्योंकि उन्हें भारत-अफ्रीका संबंधों में नेहरु, इंदिरा गांधी और अन्य के योगदान के बारे में बहुत अच्छी तरह पता है.
राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने इस मामले पर राज्य की वसुंधरा राजे सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा सरकार राजस्थान में अपना एजेंडा लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है और उसने देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता नेहरु का नाम हटाकर ओछी राजनीति का उदाहरण पेश किया है.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाएगी. राजस्थान के शिक्षा मंत्री प्रो वासुदेव देवनानी से कई बार की कोशिशों के बावजूद संपर्क नहीं हो सका. इस बीच, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि स्कूली पाठ्य पुस्तकों से इतिहास पुरुष राष्ट्र निर्माताओं का नाम हटाने वाली सरकारें खुद हट जाती हैं, लेकिन इतिहास का सच नहीं मिटता. उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत के निर्माता और दुनिया के सबसे बड़े भारतीय लोकतंत्र के संस्थापक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का नाम स्कूली पाठ्य पुस्तकों से हटा देने का राजस्थान सरकार का कृत्य शर्मनाक है.