बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के कारनामे से शिक्षा का अधिकार मजाक बनता दिख रहा है. एक तरफ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के दावे किये जा रहे हैं, तो दूसरी ओर पर्याप्त संसाधनों का संकट है. और तो और, वर्ग एक से आठ तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं करायी जा सकी हैं. सर्वशिक्षा अभियान के तहत सभी छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क किताबें दी जाती हैं. सत्र का दूसरा महीना चल रहा है. इसी महीने गरमी की छुट्टी भी हो जायेगी. अप्रैल से शुरू हुए सत्र में बच्चों का नामांकन अगली कक्षाओं में कर लिया गया, लेकिन किताब नहीं होने से पढ़ाई बाधित हो गयी है.
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महीने भर से बिना किताब के पढ़ रहे पांच लाख बच्चे
मुजफ्फरपुर : शिक्षा सत्र का एक महीना गुजर गया लेकिन जिले के पांच लाख से अधिक बच्चों को सरकार की ओर से नि:शुल्क टेस्टबुक नहीं मिल सके. जितनी डिमांड जिले से भेजी गयी थी, उससे करीब आधी पुस्तकें ही मिली हैं. विभाग ने जैसे-तैसे सभी पुस्तकों का वितरण तो करवा दिया, अब कक्षाओं के संचालन […]
मुजफ्फरपुर : शिक्षा सत्र का एक महीना गुजर गया लेकिन जिले के पांच लाख से अधिक बच्चों को सरकार की ओर से नि:शुल्क टेस्टबुक नहीं मिल सके. जितनी डिमांड जिले से भेजी गयी थी, उससे करीब आधी पुस्तकें ही मिली हैं. विभाग ने जैसे-तैसे सभी पुस्तकों का वितरण तो करवा दिया, अब कक्षाओं के संचालन में अध्यापकों को परेशानी हो रही है. जिन बच्चों को पुस्तकें नहीं मिली हैं, वे रोज प्रधानाध्यापक व शिक्षकों से पूछ रहे हैं.
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के कारनामे से शिक्षा का अधिकार मजाक बनता दिख रहा है. एक तरफ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के दावे किये जा रहे हैं, तो दूसरी ओर पर्याप्त संसाधनों का संकट है. और तो और, वर्ग एक से आठ तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं करायी जा सकी हैं. सर्वशिक्षा अभियान के तहत सभी छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क किताबें दी जाती हैं. सत्र का दूसरा महीना चल रहा है. इसी महीने गरमी की छुट्टी भी हो जायेगी. अप्रैल से शुरू हुए सत्र में बच्चों का नामांकन अगली कक्षाओं में कर लिया गया, लेकिन किताब नहीं होने से पढ़ाई बाधित हो गयी है.
डिमांड के आधार पर मिली 48 फीसदी किताब : विभाग ने राज्य मुख्यालय से वर्ग एक से आठ तक के लिए जितनी पुस्तकों की डिमांड की थी, उसमें से केवल 48 फीसदी किताबें ही मिली हैं. विभागीय रिकॉर्ड के मुताबिक जिले से कुल 10 लाख छह हजार 54 पुस्तकों की डिमांड भेजी गयी थी. इसमें हिंदी के छात्र 9 लाख 45 हजार 402, उर्दू के 38 हजार 323 व मिश्रित 22 हजार 329 हैं. डिमांड की तुलना में केवल चार लाख 79 हजार 768 पुस्तकें मिलीं. इसमें हिंदी के लिए चार लाख 37 हजार 603, उर्दू के लिए 25 हजार 356 व मिश्रित 16 हजार 809 पुस्तकें हैं. विभाग ने सभी पुस्तकों का वितरण कर दिया है.
वर्ग छह व सात के लिए कुछ नहीं मिला : सबसे खराब स्थिति वर्ग छह व सात के बच्चों की है. उनकी पुस्तकें अभी तक जिला मुख्यालय को भी नहीं मिली हैं. जिले में वर्ग छह में एक लाख 15 हजार 20 व वर्ग सात में एक लाख 12 हजार 163 छात्र-छात्राएं हैं. हिंदी के छठी में एक लाख नौ हजार 64 व सातवीं में एक लाख छह हजार 503 छात्र हैं. इसके अलावा उर्दू और मिश्रित में करीब पांच-पांच हजार छात्र हैं. मुख्यालय ने अभी तक हिंदी विषय के छात्रों के लिए एक भी पुस्तक नहीं भेजी है. इस कारण दोनों कक्षाओं में पठन-पाठन पूरी तरह से बाधित हाे रही है. शिक्षकों का कहना है कि क्लास में बच्चे आते हैं लेकिन किसी के पास किताब नहीं होने से दिक्कत आ रही है.
मुख्यालय से जिले को जितनी पुस्तकों का सेट मिला था, उसका वितरण प्राथमिकता के आधार पर कर दिया गया है. जिस अनुपात में पुस्तकें मिली हैं, उसी अनुपात में स्कूलों में भी वितरण कराया गया. अभी तक लगभग 48 फीसदी वितरण का लक्ष्य पूरा हुआ है. शेष पुस्तकों के लिए मुख्यालय को पत्र भेजा गया है. जैसे ही पुस्तकें मिलेंगी, वितरण शुरू करा दिया जायेगा.
नीता कुमारी पांडेय, डीपीओ, प्रारंभिक शिक्षा व सर्वशिक्षा अभियान
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