लोकसभा में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान के तहत भारत को 2019 तक खुले में शौच से मुक्त करने के लिए सरकार का महत्वाकांक्षी शौचालय-निर्माण कार्यक्रम पिछड़ गया है.
शहरी भारत में 8.5 करोड़ लोगों के रहन-सहन में स्वच्छता का अभाव है. यह संख्या जर्मनी की आबादी से ज़्यादा है.
शहरी क्षेत्रों में मार्च 2016 तक 25 लाख घरेलू शौचालय बनाने के लक्ष्य के विपरीत सिर्फ़ 6 लाख ही तैयार किए जा सके हैं – यानी पुरे काम का महज़ 24 प्रतिशत.
शहरी क्षेत्रों में मार्च 2016 तक 1,00,000 सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय बनाने के लक्ष्य के विपरीत सिर्फ़ 28% (28,948) ही बन पाए हैं.
सरकार के अनुसार शहरी क्षेत्रों में क़रीब 19 लाख शौचालयों का निर्माण जारी है लेकिन इसकी रफ़्तार कम है.
शौचालय निर्माण में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले पांच में से चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है.
गुजरात ने दिसंबर, 2015 तक 2,27,880 निजी शौचालय बनाए हैं, जो किसी भी राज्य से अधिक हैं.
ऐसे कुछ क्षेत्र, जहां शौचालय निर्माण की गति धीमी है जैसे कि दिल्ली और उत्तराखंड वहां शायद पहले ही शौचालय वाले घरों का प्रतिशत ऊंचा है.
लोकसभा में दिए गए सरकारी जवाब के अनुसार शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवार शौचालय का प्रयोग (81%) ग्रामीण क्षेत्रों (43%) के मुकाबले ज़्यादा करते हैं.
इस हफ़्ते दी गई इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2015 में लगाए गए स्वच्छ भारत कर से देश भर में शौचालय निर्माण में तेजी आई है. सरकार के अनुसार दो साल में करीब 1.6 करोड़ करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है (ग्रामीण क्षेत्रों में).
सरकार के 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त देश बनाने के लिए अगले तीन साल में 9.5 करोड़ शौचालय और बनाए जाने हैं.
( इंडियास्पेंड के रिसर्च पर आधारित)
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