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300 एकड़ बंजर भूमि को बनाया निजी अभयारण्य
मिसाल : निजी जंगल में जैव विविधता को संरक्षित कर रहे अनिल और पामेला अनिल कुमार मल्होत्रा पत्नी पामेला के साथ वर्ष 1990 में अमेरिका से भारत घूमने आये़ वह यहां की जैव विविधता पर मोहित हुए, लेकिन लगातार सिमटते जंगलों और घटती हरियाली से चिंतित भी थे़ फिर क्या था! उन्होंने कर्नाटक में एक […]
मिसाल : निजी जंगल में जैव विविधता
को संरक्षित कर रहे अनिल और पामेला
अनिल कुमार मल्होत्रा पत्नी पामेला के साथ वर्ष 1990 में अमेरिका से भारत घूमने आये़ वह यहां की जैव विविधता पर मोहित हुए, लेकिन लगातार सिमटते जंगलों और घटती हरियाली से चिंतित भी थे़ फिर क्या था! उन्होंने कर्नाटक में एक जंगल के बीच 300 एकड़ बंजर जमीन खरीदी और जंगली पशु-पक्षियों को सुरक्षित घर देने के लिए उसे वन्यजीव अभयारण्य में बदल दिया.
यह बात है सन 1990 की़ अमेरिका में रहनेवाले अनिल मल्होत्रा, पत्नी पामेला गेल के साथ भारत घूमने आये़ कर्नाटक के जंगलों में घूमने के दौरान उन्होंने वहां पर दर्जन भर हाथियों का झुंड देखा और 700 साल पुराना एक बड़ा पेड़ भी, जिस पर रंग-बिरंगे पक्षी बैठे थे़ जैव विविधता की इतनी बड़ी शृंखला उन्होंने इससे पहले कभी और कहीं नहीं देखी थी़
इन सब से यह युगल इतना मोहित हुआ कि जंगल में ही 300 एकड़ जमीन खरीद ली और जंगली पशु-पक्षियों को सुरक्षित घर देने के लिए उसे वन्यजीव अभयारण्य में बदल डाला़ आज उनके इस निजी वन्यजीव अभयारण्य में तमाम तरह के पशु-पक्षी चैन की जिंदगी जी रहे हैं, जबकि खुले जंगल में अब तक वो कब के शिकारियों के हत्थे चढ़ गये होते़
अनिल अपनी पत्नी के साथ पिछले 25 सालों से कर्नाटक के कोडगू जिले में रह रहे हैं और दोनों मिल कर बंजर पड़ी जमीन को जंगली जीवों के लिए दुनिया की सबसे बेहतर जगह का निर्माण करते हैं. आज दोनों के बसाये 300 एकड़ के इस जंगल में हाथियों के अलावा, बाघ, चीते, हिरण, सांप और सैकड़ों अन्य प्रकार के पक्षी और जीव-जंतु भी रहते हैं. अनिल और पामेला का यह निजी वन्यजीव अभयारण्य नीलगिरि की पहाड़ियों पर है, जो पश्चिमी घाट श्रेणी के तहत आते हैं.
प्रकृति की कीमत जानी : गौरतलब है कि यह हिंदुस्तान का इकलौता निजी वन्यजीव अभयारण्य है़ यहां 300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां मिलती हैं. लेकिन 75 साल के हो चले अनिल मल्होत्रा की इस खास उपलब्धि की कहानी कम रोचक नहीं है़ दून स्कूल से पढ़े अनिल अमेरिका में रीयल एस्टेट और रेस्त्रां का व्यवसाय करते थे़ अब 64 की हो चुकीं पामेला से उनकी मुलाकात 1960 के दशक में न्यू जर्सी में हुई थी और कुछ समय बाद दोनों ने शादी कर ली़
जब वह अपने हनीमून के लिए हवाई गये, तो उसकी खूबसूरती को देख कर वहीं रहने भी लगे. अनिल बताते हैं कि वहीं उन्होंने प्रकृति की कीमत भी जानी और यह भी समझा कि ग्लोबल वार्मिंग के बीच जंगलों को बचाने के लिए कोई भी महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाये जा रहे हैं.
शुरुआत 55 एकड़ से
अनिल मल्होत्रा 1986 में अपने पिता का अंतिम संस्कार करने भारत आये. जब वे हरिद्वार गये, तो वहां गंगा नदी की स्थिति देखकर डर गये. जंगलों को वहां जिस गति से काटा जा रहा था, उसे देख कर उन्हें काफी बुरा लगा. बहरहाल, जब वे 1990 में भारत घूमने आये तो यहां की हरियाली और जैव विविधता से मोहित होकर उन्होंने यहीं रहने का फैसला किया़
अनिल बताते हैं, उत्तर भारत में जमीन खरीदने की सीमा थी, इसलिए हमने दक्षिण को चुना़. एक मित्र की सलाह पर कर्नाटक के कोडगू जिले में हमने 55 एकड़ बंजर जमीन खरीदी़ जमीन का मालिक उस जमीन को इसलिए बेच रहा था, क्योंकि वहां कॉफी की पैदावार नहीं हो रही थी, लेकिन हमने यहां पेड़-पौधे लगा कर नयी जिंदगियां शुरू कीं. अनिल कहते हैं, यह प्रकृति से हमारा प्रेम और प्रकृति को सब कुछ वापस लौटाने की चाहत ही थी, जो हमें अमेरिका से भारत खींच ले आयी़
ऐसे बढ़ा जंगल का क्षेत्रफल
पामेला कहतीं हैं, धीरे-धीरे यह जंगल बढ़ने लगा और उसके जानवर भी़ इस जमीन पर पहले से जो पेड़-पौधे मौजूद थे, उनके साथ हमने कोई छेड़छाड़ नहीं की, बल्कि उनके साथ नये पौधे लगाते गये़ इस तरह जैविक तरीके से जंगल फैलता गया.
जंगल के बगल के गांव वाले अपनी जमीनें ज्यादा बारिश होने की वजह से फालतू मान कर अनिल को बेचने लगे और वह अपने जंगल का क्षेत्रफल बढ़ाने के इरादे से सारी जमीनें खरीदते गये़ जब पैसे कम पड़े तो उन्होंने अमेरिका की अपनी सारी प्रॉपर्टी बेच डाली़ इस तरह बढ़ते-बढ़ते यह जंगल 23 सालों में 300 एकड़ का हो गया़ अनिल बताते हैं, धीरे-धीरे जानवरों तक खबर पहुंचने लगी और वो इस जंगल में पहुंचने लगे़ इस जंगल में आने वाले पशु-पक्षियों को शिकारियों से बचाने के लिए उन्होंने वन विभाग का सहारा लिया.
मनुष्यों का अतिक्रमण कम से कम
अाज अनिल और पामेला के इस निजी जंगल में बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, सांभर, हिरण, हाइना, जंगली सूअर, चीता सहित पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियां स्वच्छंद जी रही हैं.
इस जंगल के बीच से होकर एक नदी भी गुजरती है, जिससे जंगली जानवरों की प्यास बुझती है़ यह जंगल बचा रहे, इसके लिए मल्होत्रा दंपती ने सेव एनिमल्स इनिशियेटिव (एसएआइ) ट्रस्ट बनाकर जंगल को उसके हवाले कर दिया है़ इस दंपती की पूरी कोशिश की है जंगल में मनुष्यों का अतिक्रमण कम से कम हो, लेकिन लोग इस संरक्षित जंगल से वंचित न रह जायें, इसके लिए जंगल के दरवाजे खुले हैं, बाकायदा गाइड की सुविधा के साथ.
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