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लू, कहर से कोहराम

अप्रैल के महीने में ही देश के ज्यादातर हिस्सों में तपती गर्मी के कहर ने लोगों को बेहाल कर रखा है, िजसमें 160 से अिधक की जान जा चुकी है. अपनी आजीविका के लिए इनसान का घर से निकलना मजबूरी है और इन मारक हवाओं से बचने के लिए वह छांव खोजता है. ऐसे में […]

अप्रैल के महीने में ही देश के ज्यादातर हिस्सों में तपती गर्मी के कहर ने लोगों को बेहाल कर रखा है, िजसमें 160 से अिधक की जान जा चुकी है. अपनी आजीविका के लिए इनसान का घर से निकलना मजबूरी है और इन मारक हवाओं से बचने के लिए वह छांव खोजता है.
ऐसे में पेड़ों के जरिये पर्यावरण बचाने की गुहार करता यह नारा एकाएक अत्यंत मौजूं बन जाता है- ‘जलता सूरज, तपते पांव- होते वृक्ष, तो मिलती छांव’. हालांकि, बाहर निकलते समय हम कुछ खास चीजों का ध्यान रखें, तो लू से बचना ज्यादा मुश्किल नहीं है. देश भर में गर्मी के भयावह असर और लू के बीच कैसे हम खुद काे सुरक्षित रख सकते हैं, रू-ब-रू करा रहा है आज का मेडिकल हेल्थ विशेष पेज …
भारत में मौसम संबंधी भविष्यवाणियां बहुधा गलत निकलने की वजह से पारंपरिक रूप से हास्य-व्यंग्य के पसंदीदा मुद्दों में से एक रही है. लेकिन, देश में विज्ञान और बुनियादी ढांचों के विकास के साथ-साथ अब उनकी सटीकता विकसित देशों जैसी बनने की दिशा में अग्रसर है. पिछले ही महीने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने गर्मी संबंधी अपनी पहली ही विज्ञप्ति में यह सूचित किया था कि इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच सामान्य से अधिक गर्मी रहेगी. काश, यह सूचना भी असत्य साबित हुई होती!
अप्रैल के उत्तरार्द्ध ने ही मोटे तौर पर पूरे उपमहाद्वीप को तपती गर्मी के आगोश में लेकर एक बड़ी आबादी से नाकों चने चबवा दिये हैं. ओड़िशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश इस जानलेवा गर्मी के सबसे अधिक शिकार बने हैं, जबकि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा झारखंड के कई हिस्सों में भी थोड़े-बहुत हेरफेर के साथ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है. ऐसे में मई और जून के महीने कैसे-कैसे गुल खिलायेंगे, इसकी कल्पना ही जनसाधारण के साथ-साथ सरकारों को भी हैरान कर रही है.
ताजा खबरों के मुताबिक लू लगने से पूरे देश में 160 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं, जिनमें अकेले ओडिशा और तेलंगाना में ही गत शनिवार तक क्रमशः 79 और 49 लोगों की दुखद मौतें हो चुकी थीं. बीते रविवार को ओडिशा के तितलगढ़ में 48 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जबकि देश के कई अन्य हिस्से भी 45 डिग्री से ऊपर की गर्मी झेल रहे हैं. जून में माॅनसून के पहले आनेवाली फुहारों तक कुछ उतार-चढ़ाव के बीच माैसम के इसी तरह आग उगलते रहने की आशंका है.
इस वर्ष तो असामान्य स्थिति है, पर देश में सामान्य गर्मियों में भी खासी तादाद में मौतें होती रही हैं. अपुष्ट खबरों के मुताबिक पिछले वर्ष की गर्मी में देशभर में करीब 2,500 व्यक्तियों की जानें गयीं, जबकि पाकिस्तान में यह संख्या 2,000 के आसपास रही. विकसित देशों की बात करें, तो यूरोप में 2003 की कुख्यात गर्मी में दसियों हजार लोग काल कवलित हो गये थे.
‘लू लगना’ आखिर है क्या?
देश के एक बड़े हिंदीभाषी इलाके में जिसे ‘लू लगना’ कहते हैं, अंगरेजी और आधुनिक मेडिकल साइंस में उसे ‘हीटस्ट्रोक’, ‘सनस्ट्रोक’ या ‘हाइपरथर्मिया’ के नाम से जाना जाता है. कई लोग इसके लिए ‘ऊष्माघात’ जैसे हिंदी शब्द का प्रयोग भी करते हैं. यह एक शारीरिक स्थिति है, जो अत्यधिक तापमान का शिकार होने के कारण शरीर का तापमान नियमित रखनेवाले तंत्र के विफल हो जाने की वजह से पैदा होती है.
इसका मरीज बुखार तथा कई बार बेहोशी से भी पीड़ित हो जाता है. यह स्थिति उस सामान्य बुखार से भिन्न होती है, जिसमें शारीरिक तापमान अपने नियत स्तर से अधिक हो जाता है. अंगरेजी में जिसे ‘स्ट्रोक’ कहा जाता है, सामान्यतः उसमें मस्तिष्क तक जाते रक्त का स्राव अथवा उसके प्रवाह में किसी अवरोध के आ जाने का बोध होता है. लेकिन, सनस्ट्रोक या हीटस्ट्रोक में मस्तिष्क तक जाते रक्तप्रवाह के साथ ऐसा कुछ नहीं होता.
लू लगने की जैव वैज्ञानिक वजहें
शारीरिक तापमान को नियमित और नियंत्रित रखने के लिए शरीर का एक अपना तंत्र है. लेकिन, अत्यधिक उच्च तापमान के साथ निर्जलीकरण की दशा में यह तंत्र विफल हो जाता है.
शरीर का ऐसा ऊंचा तापमान अत्यधिक परिश्रम की वजह से शरीर में पैदा हुई ज्यादा गर्मी अथवा बहुत अधिक तापमान के ऐसे वातावरण में रहने से पैदा हो जाता है, जिससे गर्मी निकलने की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती. शरीर के इस अधिक ऊंचे तापमान से उसकी कोशिकाओं में श्वसन की प्रक्रिया नियमित रखनेवाले एंजाइमों की कार्यप्रणाली गड़बड़ हो जाती है, जिससे शरीर के प्रमुख अंग काम करना बंद कर देते हैं.
लू से बचाव के लिए करें कुछ उपाय
हलके और ढीले-ढाले कपड़े पहन कर बाहर निकलें, ताकि शरीर से निकले पसीने का आसानी से वाष्पीकरण होता रहे और शरीर ठंडा बना रहे. सिर और गरदन को बड़े हैट, छाते अथवा कपड़े से सूरज की सीधी किरणों का शिकार होने से बचाये रखें. हवा के प्रवाह की गुंजाइश वाले हेलमेट का इस्तेमाल करें. ऐसी तंग जगहों में रहने से बचें, जहां हवा का प्रवाह न हो. पानी का भरपूर सेवन करते रहें, ताकि पसीने की पूर्ति होती रहे. प्यास महसूस करने के पहले ही पानी पीते रहें. अपने पेशाब का रंग देखते रहें, जो यदि कड़वा हो, तो समझ लें कि आपके शरीर को और पानी चाहिए.
लू लगने पर ऐसे करें उपचार
लू लगने के उपचार में प्राथमिक रूप से दो मुख्य बातें शामिल हैं: शरीर को तेजी से ठंडा करते हुए मरीज की सांसें फिर से चालू करने की कोशिश करना. मरीज को तत्काल घर के अंदर या छांव में ले जाकर उसके गैर-जरूरी कपड़े खोल देने चाहिए, ताकि शरीर की गरमी तेजी से बाहर निकल सके. तेजी से ठंडा करने के लिए उसके शरीर पर ठंडा पानी उड़ेल कर उसे नहलाया भी जा सकता है. मगर उसे भींगे कपड़े या तौलिये आदि में लपेटने जैसी गलती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उससे शरीर की गरमी निकलने में बाधा पहुंचती है.
बर्फ अथवा ठंडे पानी में भिंगोये कपड़ों से माथे, गरदन, धड़ (कमर से ऊपर का भाग) और रान (पेट व जंघाओं के बीच का कोना) की ठंडी सिंकाई करने से भी शरीर को जल्द ठंडा किया जा सकता है. मरीज को पानी अथवा ओआरएस जैसे पुनर्जलीकरण पेय देकर जल्द से जल्द निर्जलीकरण दूर करने की कोशिश करनी चाहिए. मगर कड़े परिश्रम या अत्यधिक गरमी से पैदा निर्जलीकरण में ज्यादा पानी पीना हानिकारक भी हो सकता है. यदि मरीज बेहोश और मुंह से कुछ पीने में सक्षम नहीं हो, तो फिर पुनर्जलीकरण के लिए नसों से पानी चढ़ाना ही बेहतर है.
कैसे लक्षण दिखते हैं लू का शिकार होने पर?
लू लगने की स्थिति में शरीर का तापमान 40.6 डिग्री सेल्सियस (105.1 डिग्री फारेनहाइट) से ऊपर चला जाता है, जिससे बेहोशी या मानसिक भ्रम की स्थिति भी पैदा होने लगती है. इसके साथ एक खास बात यह होती है कि शरीर से पसीना नहीं निकलता. लेकिन, यदि अत्यधिक शारीरिक श्रम की वजह से लू लगा हो, तो पीड़ित व्यक्ति को बहुत ज्यादा पसीना भी आ सकता है.
शिकार हो जाने के पूर्व मरीज चक्कर आने, सिरदर्द होने और कमजोरी की शिकायत भी करते हैं. इसकी चपेट में आने पर छोटे बच्चे तो खास तौर पर बेहोशी के शिकार हो जाते हैं. पर यदि किसी को गहरी नींद की स्थिति में ही लू लग जाये, तो फिर इन लक्षणों की पहचान करना कठिन हो जाता है. ज्यादा पीड़ित मरीज के शारीरिक अंग सुस्त होने लगते हैं और मरीज की मृत्यु तक हो सकती है.
इन लोगों को है ज्यादा खतरा
प्रायः अत्यधिक वृद्ध, शारीरिक अशक्त और छोटे बच्चे अपनी नादानी या उनके देखभाल करनेवालों की लापरवाही से ऐसी तंग जगहों पर देर तक छोड़ दिये जाते हैं, जहां का तापमान बहुत अधिक होने के साथ वहां खिड़कियों और रोशनदानों के जरिये गर्मी निकलने की उचित व्यवस्था नहीं होती. ऐसी जगहें बहुत गर्म होने के साथ अत्यंत नम भी हो जाती हैं.
ज्यादा नमी की वजह से शरीर पसीना निकाल कर वाष्पीकरण के जरिये स्वयं को उचित सीमा तक ठंडा नहीं कर पाता और शरीर का तापमान बढ़ जाता है. इसी तरह खिलाड़ियों, मजदूरों और सैनिकों को प्रायः गर्मी में भी कड़ा अभ्यास या परिश्रम करना पड़ता है, जिससे शरीर का तापमान सीमा पार कर जाता है.
बंद कारों की गर्मी ज्यादा खतरनाक
अमेरिका में 1998 से 2011 के दौरान कम से कम 500 बच्चे गर्म कारों के अंदर देर तक रह जाने से मौत के शिकार हो गये, जिनमें ये 75 फीसदी तो दो साल से कम उम्र के थे. बाहर का तापमान 21 डिग्री सेल्सियस जितना कम होने पर भी धूप में खड़ी बंद कार के अंदर का तापमान जल्द ही 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.
खुले में इतने तापमान में इनसान की मौत नहीं होती, लेकिन कार के अंदर तंग जगह इतने तापमान पर एकदम से मारक हो उठती है. ऐसे में कार में बैठे छोड़ दिये जानेवाले बच्चे, वृद्ध और शारीरिक अशक्त जल्दी और आसानी से हीटस्ट्रोक के शिकार हो जाते हैं. यदि कार के शीशे थोड़े खुले छोड़ दिये जायें, तो भी ऐसी जानलेवा स्थिति बनते केवल कुछ मिनट ही लगते हैं.
प्रायः ऐसे लोग खुद कार के दरवाजे-खिड़कियां नहीं खोल सकते, मदद नहीं मांग सकते और कई बार तो केवल शीशे बंद रहने की वजह से मदद के लिए उनकी पुकार नहीं सुनी जा सकी और उनकी मौत हो गयी. कार के बाहर के माहौल में मौजूद लोग अकसर अंदर बैठे लोगों की भाव-भंगिमाएं नहीं समझ पाते हैं. बंद कारों में बच्चों की हालिया मौतों के विश्लेषण से यह पता चला है कि लगभग 50 फीसदी मामलों में अभिभावक खरीदारी या अन्य कामों में मशगूल होकर देर तक यह भूले रह गये कि उन्होंने बच्चे को बंद कार में ही छोड़ रखा है.
-प्रस्तुति : विजय नंदन

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