Advertisement
कुछ सेंटीमीटर के दायरे में मिलेगी सटीक जानकारी, जीपीएस की नजर से कोई नहीं बचेगा!
कार में सफर के दौरान सुरीली आवाज में ‘200 मीटर सीधे चलें’ ‘200 मीटर बाद बायीं ओर मुड़ें’ आदि सुनना अब आम बात है. सफर के दौरान रास्ता पूछे बिना मंजिल तक पहुंचने के लिए खासकर बड़े शहरों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस का इस्तेमाल लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं. यह सिस्टम केवल […]
कार में सफर के दौरान सुरीली आवाज में ‘200 मीटर सीधे चलें’ ‘200 मीटर बाद बायीं ओर मुड़ें’ आदि सुनना अब आम बात है. सफर के दौरान रास्ता पूछे बिना मंजिल तक पहुंचने के लिए खासकर बड़े शहरों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस का इस्तेमाल लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं. यह सिस्टम केवल किसी जगह की तलाश में ही मददगार नहीं है, बल्कि किसी की सटीक लोकेशन जानना सुरक्षा के लिहाज से भी उपयोगी साबित हो रहा है.
इसीलिए जीपीएस का इस्तेमाल अब कई अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रहा है और कभी-कभी इसके अप्रत्याशित नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं. हालांकि इस समय जीपीएस कुछ मीटर के दायरे में लोकेशन की जानकारी देता है, जिससे कई बार सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है. इसे बेहतर बनाने के लिए अब इसे कुछ सेंटीमीटर के दायरे तक सटीक बनाने की दिशा में आरंभिक सफलता मिली है, जिसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा रहा है. जीपीएस के सफर, इसके उपयोग और भविष्य की संभावनाओं पर नजर डाल रहा है आज का साइंस टेक्नोलॉजी पेज…
आम तौर पर जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल किसी खास चीज या परिवहन के साधन की सटीक लोकेशन को जानने के लिए किया जाता है. इसकी सटीकता का पैमाना अलग-अलग चीजों के लिए विभिन्न तरीकों से निर्धारित किया जाता है.
इसे नेविगेशन के रूप में समझा जाता है. मसलन यदि मोबाइल फोन की बात हो, तो उसका नेविगेशन कुछ सौ मीटर के दायरे तक होता है यानी नजदीकी मोबाइल टॉवर (जहां से वह किसी रीयल टाइम में नेटवर्क से जुड़ा हो) से वह मोबाइल किस ओर व कितनी दूरी पर मौजूद है, इस बारे में जानकारी हासिल होती है. हालांकि, स्मार्टफोन में यह दूरी और भी कम हो गयी है. मौजूदा तकनीकों के आधार पर जीपीएस की सटीकता का मानक कुछ मीटर तक सीमित है, जिसे और भी कम किया जा रहा है.
यह इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब आप सड़क पर होते हैं, तो कई बार आपकी लोकेशन की प्वॉइंट-टू-प्वॉइंट जानकारी को समझना जरूरी हो जाता है. खासकर जब हम स्मार्ट सिटी की बात करते हैं, तो यह और भी जरूरी हो जाता है कि किसी निर्धारित सड़क पर आप कहां हैं.
शोधकर्ता पिछले काफी समय से इस दिशा में प्रयासरत हैं और हाल ही में उन्हें एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है. ‘साइंस एलर्ट’ के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने जीपीएस को इंच से भी छोटे मापक यानी सेंटीमीटर के स्तर तक विकसित किया है. यातायात के तमाम साधनों में इसका इस्तेमाल होने पर रास्ता भटकने वाली बात इतिहास का हिस्सा बन जायेगी. ड्राइवरलेस कारों के लिए यह बड़ी चीज साबित हो सकती है.
यहां तक कि इससे हवाई यात्रा भी ज्यादा सुरक्षित होने की उम्मीद है. इस शोध के मुखिया और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड के शोधकर्ता जेय फैरेल का कहना है, ड्राइवरलेस कारों की सुरक्षा और ऑटोमेशन की जरूरतों को देखते हुए कुछ एप्लीकेशन को समझना जरूरी होता है, जैसे- सड़क पर कार किस लेन में चल रही है. आपकी लोकेशन और वेलोसिटी यानी गति को मापने के लिए जिस जीपीएस डिवाइस का इस्तेमाल हो रहा है, वह अंतरिक्ष में मौजूद सेटेलाइटों के नेटवर्क पर आधारित है. समय की सटीक माप के लिए इन्हीं सेटेलाइटों के नेटवर्क में से चार या चार से ज्यादा सेटेलाइट से सिगनल हासिल किये जाते हैं और उसके आधार पर आपकी लोकेशन को तकरीबन 10 मीटर के दायरे में निर्धारित किया जाता है. हाल के दिनों में इस सिस्टम में थोड़ा और सुधार किया गया है, जिसे डिफेरेंशियल जीपीएस यानी डीजीपीएस के नाम से जाना जाता है. इसकी खासियत है कि ग्राउंड-वेस्ड रेफरेंस स्टेशंस के इस्तेमाल से यह एक मीटर के दायरे में सटीकता से लोकेशन बताता है.
आप भले ही यह सोच रहे हों कि लोकेशन को इतनी नजदीकी से समझना काफी है, लेकिन विशेषज्ञों का दृष्टिकोण भिन्न है. उनका कहना है कि किसी ड्राइवरलेस कार में पीछे की सीट पर बैठे व्यक्ति की लोकेशन को सटीकता से समझने के लिए जीपीएस के स्तर को सेंटीमीटर तक ले जाना होगा.
इसके लिए फैरेल और उनकी टीम ने एक नयी तकनीक विकसित की है, जो मौजूदा जीपीएस डाटा के लिए पूरक का काम करेगी. इसमें गतिमान अवस्था में चीजों की लोकेशन मापने के लिए सेंसर लगाये जायेंगे. इन मापकों का अपने आप समामेलित होना कोई नया नहीं है, लेकिन पूर्व में इसके लिए महंगे कंप्यूटरों की जरूरत पड़ती थी और कार या मोबाइल फोन के लिए इनका इस्तेमाल नहीं होपाता था.
एल्गोरिदम के नये सेट का विकास
शोधकर्ताओं ने एल्गोरिदम के नये सेट का विकास किया है, जिससे मैग्निट्यूड संबंधी जरूरी चीजों द्वारा दोनों सिस्टम्स को आपस में जोड़ने की दक्षता हासिल होगी. नतीजन इसकी सटीकता में बारीकी लाने के लिए जरूरी गणना और प्रोसेसिंग में लगने वाले समय को कम किया जा सकेगा.
ऐसा होने पर यह तकनीक ज्यादा से ज्यादा चीजों को साथ में जोड़ेगी और इसे कम से कम लागत में बनाया जा सकेगा. व्यक्तिगत उपकरणों में जल्द ही हम सेंटीमीटर-लेवल वाले जीपीएस को इस्तेमाल
कर पायेंगे. फैरेल का कहना है कि कंप्यूटेशनल लोड को बढ़ा कर इस स्तर तक की शुद्धता को हासिल किया जा सकता है, जो रीयल-टाइम एप्लीकेशंस के लिए सटीक है. भविष्य में इसका इस्तेमाल खेती में भी किया जा सकता है. साथ ही बिना खर्च बढ़ाये हुए इसे मोबाइल फोन और अन्य व्यक्तिगत उपकरणों के साथ जोड़ कर लोकेशन सर्विसेज में सुधार किया जा सकेगा.
रीयल-टाइम काइनेमैटिक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम नेविगेशन
डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड कंप्यूटर इंजीनियरिंग, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंटेगर एंबिगुटी रिजोलुशन यानी इसे ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट बनाना एक बड़ी तकनीकी चुनौती है, जो अक्सर रीयल-टाइम काइनेमैटिक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम नेविगेशन के दौरान आती है. एक बार जब इस ‘इंटेगर वेक्टर’ का समाधान खोज लिया गया, तो सेंटीमीटर स्तर तक पोजिशनिंग का सटीक अनुमान लगाना आसान हो जायेगा.
हालांकि, काफी हद तक इसका समाधान तलाश भी लिया गया है, लेकिन अभी एक बड़ी चुनौती यह है कि इसके लिए गणना की जिस प्रणाली का इस्तेमाल किया गया है, वह काफी महंगी है. इस नये शोध में इस लागत को कम करने की कोशिश की गयी है.
प्रस्तुति : कन्हैया झा
टक्कर-रोधी उपकरण विकसित
करने में सहायक
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के शोधकर्ताओं ने मौजूदा स्मार्टफोन जीपीएस चिप्स का इस्तेमाल करते हुए सॉफ्टवेयर-आधारित जीपीएस को सेंटीमीटर तक एक्यूरेट करने में कामयाबी पायी है. ‘एक्सट्रीम टेक’ के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि ऐसा होने से ड्रोन के माध्यम से पैकेट की डिलीवरी को निर्धारित स्पॉट तक यानी किसी घर के खुले बरामदे तक भेजने में सफलता मिलेगी.
साथ ही इसका इस्तेमाल कार समेत अनेक गाड़ियों में टक्कर-रोधी उपकरण विकसित करने के लिए किया जायेगा. शोधकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि जब इसे स्मार्टफोन कैमरे से जोड़ दिया जायेगा, तो यह आपके आसपास 3डी रेफरेंस मैप भी बना सकता है.
बिना सेटेलाइट्स के जीपीएस नेविगेशन पर जोर
अमेरिका की ‘डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ ने एक योजना बनायी है, जिसके तहत सेटेलाइट के इस्तेमाल के बिना अन्य तरीकों से जीपीएस नेविगेशन पर जोर दिया जा रहा है. ऐसा होने पर इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव आ सकता है. इसके तहत आंकड़े जुटाने के लिए एयर, मेरिटाइम, ग्राउंड, स्पेस और साइबर डोमेन को एक साथ जोड़ा जायेगा. ‘ब्रांड न्यू ग्लोबल पोजिशनिंग, नेविगेशन एंड टाइमिंग सिस्टम’ के नाम से इसे विकसित किया जा रहा है, जो किसी प्रकार के व्यवधान से मुक्त होगा. साथ ही यह मौजूदा जीपीएस से ज्यादा एडवांस होगा.
जानें यह भी
क्या है जीपीएस?
आम तौर पर गाड़ियों में जीपीएस का इस्तेमाल ड्राइवरों को रास्तों की जानकारी और उनकी ट्रैकिंग के लिए किया जाता है. किसी दुर्घटना की स्थिति में तत्काल मदद के लिए भी जीपीएस सिस्टम बेहद कारगर है. इसकी मदद से कम समय में प्रभावित वाहन तक पहुंचा जा सकता है.
अमेरिका ने सबसे पहले जीपीएस का इस्तेमाल किया था. इसकी शुरुआत सैन्य कार्यों में इस्तेमाल से हुई थी. लेकिन अब इसका इस्तेमाल सामान्य होता जारहा है. जीपीएस की मदद से वाहन पर नजर रखने के साथ ही उसके चालक को निर्देश भी दिया जा सकता है.
कैसे करता है काम?
जीपीएस उपकरण एक सिम के जरिये सेटेलाइट्स के नेटवर्क से जुड़ा रहता है. इसके जरिये संदेशों का आदान-प्रदान होता है. जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिल कर बना है- स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट. दरअसल, जीपीएस सीधे सेटेलाइट से जुड़े होने के कारण रीयल-टाइम में वास्तविक लोकेशन की पहचान करने में सक्षम होता है. इसके जरिये कहीं से भी वाहन की स्थिति को जाना जा सकता है.
इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि किसी दुर्घटना की स्थिति में बचाव दल को जगह खोजने में दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वह जीपीएस की लोकेशन के सहारे सटीक जगह तक पहुंचते हैं. आम तौर पर वाहनों में जीपीएस उसके हैंडल के पास या किसी भी जगह सेट किया जा सकता है.
कैसे हुआ विकास?
जीपीएस के विकास की योजना पहली बार अमेरिका ने उस समय बनायी, जब रूस के साथ शीतयुद्ध का दौर जारी था. 1960 के दशक में पहली बार इसका विकास किया गया और अमेरिकी नौसेना ने अपने समुद्री जहाजों की सटीक स्थिति जानने के लिए इसका प्रयोग किया. पहले सिस्टम में महज पांच सेटेलाइटों का इस्तेमाल किया गया. इनके जरिये प्रत्येक घंटे में एक बार समुद्री जहाजों की लोकेशन चेक की जाने लगी. आज अमेरिका द्वारा विकसित ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम यानी जीएनएसएस का दायरा दुनिया में व्यापक हो चुका है और ज्यादातर देश इसी सेवा से जुड़े हैं.
गैलिलियो पोजिशनिंग सिस्टम
यूरोपियन यूनियन ने इसके लिए अपना एक अलग सिस्टम विकसित किया है, जिसे ‘गैलिलियो पोजिशनिंग सिस्टम’ का नाम दिया गया है. इसका संचालन ‘यूरोपियन ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम्स एजेंसी’ करती है. 1990 के दशक में इस पर काम शुरू हुआ था और हाल ही में इसने काम करना शुरू किया है.
रूस का ग्लोनास
ग्लोनास (ग्लोबलनय नेविगेजियोनाया स्पूतनिकोवाया सिस्टेमा) नाम से रूस ने अपना जीपीएस विकसित किया है. वर्ष 1976 में सोवियत यूनियन ने ग्लोनास का विकास शुरू किया था. रूसी फेडरल स्पेस एजेंसी का यह सबसे महंगा कार्यक्रम समझा जाता है.
1982 से लेकर 1995 तक इस पर तेजी से काम हुआ, लेकिन बाद में काम धीमा हो गया. वर्ष 2000 के बाद इसमें तेजी आयी और 2010 तक ग्लोनास ने रूस के लगभग 100 फीसदी हिस्सों को कवर करने की क्षमता हासिल कर ली थी.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement