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नियम तोड़ कर निगरानी के अफसरों ने दी थी क्लीन चिट

इंजीनियर पारस के खिलाफ बंद मामले की समीक्षा के दौरान हुई गड़बड़ी की पुष्टि अमन तिवारी रांची : निगरानी के अफसरों ने नियमों को दरकिनार कर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में इंजीनियर पारस को क्लीन चिट देने के लिए मामले की जांच की थी. इसका खुलासा तब हुआ, जब भ्रष्टाचार निरोधक […]

इंजीनियर पारस के खिलाफ बंद मामले की समीक्षा के दौरान हुई गड़बड़ी की पुष्टि
अमन तिवारी
रांची : निगरानी के अफसरों ने नियमों को दरकिनार कर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में इंजीनियर पारस को क्लीन चिट देने के लिए मामले की जांच की थी. इसका खुलासा तब हुआ, जब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के अफसरों ने पारस के खिलाफ बंद मामले की फिर से समीक्षा की. समीक्षा के दौरान पाया गया कि पूर्व में निगरानी के पास इस बात की जानकारी थी कि पारस के पास बेंगलुरू, देवघर सहित अन्य स्थानों पर संपत्ति है.
उनके परिवार के सदस्य के नाम पर एक कंस्ट्रक्शन कंपनी चलती थी. कंस्ट्रकशन कंपनी के पास रुपये कहां से आये, कंस्ट्रक्शन कंपनी ने कौन से काम कर रुपये अर्जित किये, इस बात की गहराई से जांच नहीं की गयी थी. पारस की ओर से अपनी संपत्ति को वैध बताने के लिए जो साक्ष्य निगरानी को उपलब्ध कराये गये थे, उसे ही सही मान लिया गया.
संपत्ति के बारे में सत्यापन के लिए गहराई से निगरानी के अफसरों ने खुद जांच नहीं की. जांच में गड़बड़ी करने के लिए केस के अनुसंधानक इंस्पेक्टर राज नारायण सिंह को दोषी माना गया है. वे पहले से दूसरे मामले में निलंबित है. इसलिए पारस को क्लीन चीट देने के लिए जांच में गड़बड़ी के लिए इंस्पेक्टर के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने का निर्णय लिया गया है. केस के अनुसंधानक के अलावा दूसरे सीनियर अफसरों की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये हैं. इस बात को लेकर कि जब केस के अनुसंधानक ने गड़बड़ी की, तब वरीय अफसरों को इस पर ध्यान देना चाहिए था.
उल्लेखनीय है कि निगरानी ने इंजीनियर पारस की संपत्ति की जांच 2007 में सरकार के निर्देश पर शुरू की थी. प्रारंभिक जांच में आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की बात सामने आने पर इंजीनियर के खिलाफ निगरानी थाना में कांड संख्या 40/10 के अंतर्गत वर्ष 2010 में केस दर्ज हुआ था.
निगरानी के रिकॉर्ड के अनुसार जब जांच शुरू हुई थी, तब पारस कुमार ग्रामीण विकास विभाग में सहायक अभियंता के रूप में पदस्थापित होने के साथ-साथ ग्रामीण कार्य विभाग देवघर में प्रभारी कार्यपालक अभियंता के रूप में पदस्थापित थे.
अंतिम जांच के दौरान जब पारस की ओर से निगरानी को आय-व्यय का ब्योरा उपलब्ध कराया गया, तब निगरानी के अफसरों ने उसे सही मान कर पारस को क्लीन चिट दे दिया था. वर्ष 2013 में केस बंद कर फाइनल रिपोर्ट 31 दिसंबर को न्यायालय काे साैंप दी गयी थी.

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