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पाकिस्तानी आतंक व चीन : बबूल में आम

रवि दत्त बाजपेयी चीन-पाकिस्तान जुगलबंदी-4 : चीन कभी भी इसलामी आतंक को खुल कर चुनौती देना नहीं चाहेगा अमेरिकी सेना और सरकार से सारी मदद लेने के बाद भी पाकिस्तानी सेना, आइएसआइ और आतंकवादी सगठनों ने अमेरिका पर हमले में कोई हिचक नहीं दिखायी थी. चीन को जाने यह गुमान क्यों है कि जिस पाकिस्तानी […]

रवि दत्त बाजपेयी

चीन-पाकिस्तान जुगलबंदी-4 : चीन कभी भी इसलामी आतंक को खुल कर चुनौती देना नहीं चाहेगा

अमेरिकी सेना और सरकार से सारी मदद लेने के बाद भी पाकिस्तानी सेना, आइएसआइ और आतंकवादी सगठनों ने अमेरिका पर हमले में कोई हिचक नहीं दिखायी थी. चीन को जाने यह गुमान क्यों है कि जिस पाकिस्तानी रणनीति में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद एक अनिवार्य अंग है, वह कभी भी चीन के खिलाफ प्रयोग नहीं करेगा. पढ़िए अंतिम कड़ी.

पाकिस्तान की चीन से मोहब्बत इस बात से है कि चीन उनके लिए क्या कर सकता है, जबकि चीन का पाकिस्तान से प्यार इस बात के बावजूद है कि पाकिस्तान अपने साथ क्या कर रहा है. अप्रैल, 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बहु प्रचारित पाकिस्तान यात्रा के पहले दोनों राजधानियों, इसलामाबाद और बीजिंग में बेहद बेचैनी थी, राष्ट्रपति जिनपिंग का यह प्रस्तावित दौरा कई बार स्थगित हो चुका था.

सितंबर , 2014 में चीनी राष्ट्रपति अपने भारत दौरे के साथ-साथ पाकिस्तान आने वाले थे, लेकिन इसलामाबाद में इमरान खान और ताहिर-उल कादरी के उग्र धरने के बाद यह यात्रा मुल्तवी हो गयी. वर्ष 2015 में भारतीय गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि बने तो सिर्फ भारत के बराबर दिखने के लिए, पाकिस्तान ने मार्च 2015 में राष्ट्रपति जिनपिंग को अपने राष्ट्रीय दिवस समारोह में आमंत्रित करने का मंसूबा बनाया.

राष्ट्रपति जिनपिंग ने पाकिस्तान के इस बचकाने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. मार्च 2015 के अंत में राष्ट्रपति जिनपिंग का पाकिस्तान दौरा निश्चित था, इस दौरे में चीनी राष्ट्रपति मिस्र और सऊदी अरब भी जा रहे थे. 26 मार्च 2015 को सऊदी अरब ने यमन में ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों पर हवाई हमले शुरू कर दिये, ईरान और सऊदी अरब की इस प्रतिस्पर्धा में निष्पक्ष दिखने के उद्देश्य से राष्ट्रपति जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा एक बार फिर टल गयी.

अप्रैल 2015 में राष्ट्रपति जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा के ठीक पहले, पाकिस्तान ने शायद अपने इतिहास में पहली बार सऊदी अरब के आदेश/निर्देश/अनुरोध/ को नकारने की हिम्मत दिखायी थी. सऊदी अरब ने यमन में शिया विद्रोहियों पर सैन्य कार्यवाही के लिए पाकिस्तानी फौज की मांग की थी, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने इसे अस्वीकृत कर दिया.

कई जानकारों का मानना है कि क्षेत्रीय संतुलन लाने, शिंजियांग में मुसलिम अलगाववादियों को रोकने और पाकिस्तान में अपने भारी निवेश को सैन्य सुरक्षा देने के उद्देश्य से चीन ने पाकिस्तान को सऊदी अरब की सहायता करने से रोक दिया था. पाकिस्तान के इतिहास में भी यह पहली बार हुआ कि चीन के सबसे बड़े प्रशासक सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान यात्रा पर आ रहे थे. अपनी इस यात्रा में राष्ट्रपति जिनपिंग ने 46 बिलियन डॉलर की आर्थिक निवेश, तकनीकी सहयोग के साथ ही पाकिस्तान को परमाण्विक पनडुब्बी जैसे तोहफे दिये.

पाकिस्तान में चीन की इस दरियादिली पर खूब वाहवाही हुई. पाकिस्तान के इस भाईचारे और आवभगत की पृष्ठभूमि में यह बात विचारणीय है कि अपने नये अधिनायक, अर्थात चीनी राष्ट्रपति को प्रसन्न करने के लिए पाकिस्तान ने अपने सबसे पुराने, सबसे बड़े और सबसे विश्वसनीय आर्थिक सहयोगी को ठेंगा दिखा दिया था.

चीन यह कभी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान-सऊदी अरब संबंधों में संभावित तनातनी के लिए बीजिंग को जिम्मेदार ठहराया जाए, पाकिस्तान के आम लोगों का सऊदी अरब के साथ भावनात्मक, आध्यात्मिक, धार्मिक लगाव है.

पाकिस्तानी समाज,और फौज दोनों ही पाकिस्तान या इसके किसी सहयोगी द्वारा सऊदी अरब की अवहेलना को लंबे समय तक बरदाश्त नहीं करेंगे और अवसर आने पर ऐसे लोगों को उचित सबक देंगे. चीन कभी भी पाकिस्तान में जड़ जमा चुके इसलामी आतंकवाद को खुल कर चुनौती देना नहीं चाहेगा. वर्ष 2007 में इसलामाबाद स्थित लाल मसजिद के छात्रों ने अनैतिक आचरण को बढ़ावा देने के आरोप में कुछ चीनी नागरिकों का अपहरण किया था. इस घटना के बाद, पाकिस्तान सरकार ने चीन के भारी दबाव में लाल मसजिद पर सैन्य कार्यवाही की जिसमे सैकड़ों लोग मारे गये थे. लाल मसजिद पर सैन्य कारवाई के बाद से पाकिस्तान में आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सेना और वहां रहने वाले चीनी लोगों पर आक्रमण बहुत तेज कर दिये थे.

चीन के लिए पाकिस्तान एक बहुत उपयोगी देश है, चीन-यूरोप का मार्ग, भारत के सतत विरोध के अलावा शिंजियांग प्रांत में बसने वाले ओइघुर मुसलिम लोगों पर नियंत्रण रखने में पाकिस्तान की अहम भूमिका है. शिंजियांग प्रांत में बसने वाले ओइघुर मुसलिम समुदाय, चीन सरकार की नीतियों से बेहद असंतुष्ट हैं.

वर्ष 1949 में चीन की स्थापना के बाद अपनी सैन्य शक्ति के बल पर शिंजियांग प्रांत को चीन में मिला लिया. बहुसंख्यक मुसलिम आबादी वाले इस प्रांत के मूल निवासियों के साथ नस्ली, सांस्कृतिक, धार्मिक आर्थिक भेदभाव बरतने और हान चीनी मूल के लोगों को यहां बसाने जैसी नीतियों के कारण कुछ मुसलिम देशों और मुसलिम संगठनों ने चीन की आलोचना की है. शिंजियांग प्रांत की सीमा पाकिस्तान से जुड़ी हुई है और ओइघुर अलगाववादी पाकिस्तान के रास्ते गुरिल्ला युद्ध सीखने, अफगानिस्तान-इराक-सीरिया में वैश्विक जिहाद में हिस्सा लेने आते-जाते रहे हैं.

पिछले कुछ वर्षों में ओइघुर अलगाववादियों ने चीन में कुछ बड़े हमले किये हैं, जिसके बाद चीनी सरकार, समूचे ओइघुर समाज पर और अधिक सख्त हो गयी है. पाकिस्तान की सरकार और सेना ने मुसलिम ओइघुर लोगों पर चीनी सरकार की कठोर नीतियों का हमेशा से समर्थन किया है. पाकिस्तान ने अपनी सीमा में रहने वाले अनेक ओइघुर अलगाववादियों को गिरफ्तार करके चीन के हवाले किया है.

चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी के बावजूद कभी ना कभी पाकिस्तानी इसलामिक आतंकवादी, शिंजियांग के स्थानीय मुसलिम ओइघुर लोगों पर चीनी दमन का विरोध करेंगे. अमेरिकी सेना और सरकार से सारी मदद लेने के बाद भी पाकिस्तानी सेना, आइएसआइ और आतंकवादी सगठनों ने अमेरिका पर हमले में कोई हिचक नहीं दिखायी थी. चीन को जाने यह गुमान क्यों है कि जिस पाकिस्तानी रणनीति में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद एक अनिवार्य अंग है, उसे कभी भी चीन के खिलाफ मैदान में नहीं उतारा जायेगा .

अप्रैल 2015 में अपनी पहली पाकिस्तान यात्रा की पूर्व संध्या पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक पाकिस्तानी अखबार में लिखा, ‘हमारे द्विपक्षीय संबंध एक ऊंचे और सुदृढ़ वृक्ष की तरह समृद्धशाली हुए हैं.’

पाकिस्तान में द्विपक्षीय संबंधों के सबसे बड़े ‘अमेरिका-पाक’ वृक्ष पर तो वर्ष 1979 में अफगानिस्तान में रूसी आक्रमण के दौरान भरपूर बहार आयी हुई थी, अंततः इस वृक्ष के फल वर्ष 2001 में 9/11 हमले के रूप में अमेरिका में वितरित हुए थे. आखिरकार राष्ट्रपति जिनपिंग पाकिस्तान के साथ मिलकर किस विशाल, ऊंचे और सुदृढ़ वृक्ष की कल्पना कर रहे हैं?

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