ट्रायबल सब प्लान के तहत आदिवासियों को सक्षम बनाने के लिए ब्रायलर पेरेंट यूनिट, फिड मील स्थापना, वेजिटेबल चेन योजना, डीप वेल बोरिंग, डिस्टीलेशन ऑफ पांड, माइन इरिगेशन योजना, कृषि उपकरण वितरण, स्कील डेवलपमेंट व व्यावसायिक ट्रेनिंग की योजना चलायी जाती है़
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15 वर्ष में 1242 आदिवासियों को ही मिला ऋण
रांची: पिछले 15 वर्षों में राज्य के सिर्फ 1242 आदिवासियों को स्वरोजगार व आय वृद्धि के लिए ऋण मिला है़ राज्य आदिवासी सहकारी विकास निगम लिमिटेड (टीसीडीसी) की ओर आदिवासियों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए यह ऋण बांटे गये है़ं टीसीडीसी की अनुशंसा पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त व विकास निगम ऋण […]
रांची: पिछले 15 वर्षों में राज्य के सिर्फ 1242 आदिवासियों को स्वरोजगार व आय वृद्धि के लिए ऋण मिला है़ राज्य आदिवासी सहकारी विकास निगम लिमिटेड (टीसीडीसी) की ओर आदिवासियों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए यह ऋण बांटे गये है़ं टीसीडीसी की अनुशंसा पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त व विकास निगम ऋण उपलब्ध कराता है़ इस योजना का लाभ आदिवासियों तक नहीं पहुंच रहा है.
सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआइ) के तहत मिली जानकारी के मुताबिक इससे लाभान्वित होनेवाले आदिवासियों की संख्या काफी कम है़ एक वर्ष में एक सौ से भी कम आदिवासियों को इस योजना का लाभ मिल रहा है़ इसके तहत आदिवासियों को स्वरोजगार के माध्यम से सशक्त बनने के लिए स्कील डेवलपमेंट व व्यावसायिक ट्रेनिंग भी चलाये जाते है़ं ट्रायबल सब प्लान क्षेत्र के लिए विशेष केंद्रीय सहायता के माध्यम से भी कई तरह की योजना चलायी जाती है़
ट्रायबल सब प्लान के तहत आदिवासियों को सक्षम बनाने के लिए ब्रायलर पेरेंट यूनिट, फिड मील स्थापना, वेजिटेबल चेन योजना, डीप वेल बोरिंग, डिस्टीलेशन ऑफ पांड, माइन इरिगेशन योजना, कृषि उपकरण वितरण, स्कील डेवलपमेंट व व्यावसायिक ट्रेनिंग की योजना चलायी जाती है़
वसूली में भी परेशानी, नहीं मिलते गारंटर
स्वरोजगार के लिए दिये जानेवाले ऋण की वसूली में भी परेशानी होती है़ ब्याज दर कम होने के बाद भी लाभुक समय पर ऋण वापस नहीं करते है़ं राज्य के आदिवासी सहकारी विकास निगम को राशि की वसूली कर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त व विकास निगम को देना होता है़ केंद्रीय एजेंसी को राशि नहीं लौटाये जाने के कारण राज्य की एजेंसी को फंड नहीं मिलता़ वहीं ऋण लेने के लिए आदिवासियों को गारंटर भी नहीं मिलते है़ं स्वरोजगार के लिए ऋण के लिए नौकरी-पेशा से जुड़े गारंटर की जरूरत होती है़ गरीब आदिवासी गारंटर की व्यवस्था नहीं कर पाते़.
लोगों को इसकी जानकारी नहीं
आदिवासियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने व रोजगार से जोड़ने के लिए केंद्रीय सहायता के तहत कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है़ साधारण ब्याज के रूप में तीन से चार प्रतिशत की दर पर ऋण दिया जाता है, लेकिन टीसीडीसी के माध्यम से चलायी जाने वाली योजना की जानकारी दूर-दराज में रहनेवाले आदिवासियों को नहीं है. सरकार के स्तर पर भी इसके प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कुछ नहीं किया जाता है़
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