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नौ को है अनंत, अक्षय व अक्षुण अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया में पूजा, खरीदारी और दान का विशेष महत्व अनजाने में हुए अपराधों की क्षमा मांगने से भगवान देते मंजूरी आसनसोल : अक्षय तृतीया आगामी नौ मई को है. इसे अनंत, अक्षय और अक्षुण्ण माना जाता है. आठ मई (रविवार) की रात 08.21 बजे ही तृतीया तिथि लग जायेगी. स्थानीय शनि मंदिर के पुजारी […]

अक्षय तृतीया में पूजा, खरीदारी और दान का विशेष महत्व

अनजाने में हुए अपराधों की क्षमा मांगने से भगवान देते मंजूरी

आसनसोल : अक्षय तृतीया आगामी नौ मई को है. इसे अनंत, अक्षय और अक्षुण्ण माना जाता है. आठ मई (रविवार) की रात 08.21 बजे ही तृतीया तिथि लग जायेगी. स्थानीय शनि मंदिर के पुजारी पंडित तुलसी तिवारी ने कहा कि यह पर्व बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इसे कई नामों से जाना जाता है.

इस तिथि को कोई भी शुभ कार्य शुरू किया जा सकता है. इस दिन कोई मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती है. गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य भी बिना पंचांग देखे किये जा सकते हैं. पिंडदान का भी विशेष महत्व है. इस दिन पूजा पाठ और हवन आदि जाने अनजाने में हुए अपराधों के लिये क्षमा याचना की जाये तो भगवान उसे माफ कर देते है.

क्या क्या दान करें?

सत्तू, पंखा, घड़ा, ककड़ी, खीरा, तरबूज, दही, खीर, छाता, अनाज, गुई, तिल, लोहा, नारियल, नमक, काला या पीला वस्त्र, जूता, श्रृंगार के सामान आदि का दान करें.

क्या क्या करना चाहिए?

प्रात: गंगा नदी अथवा अन्य सहायक नदी के साथ-साथ तालाब आदि में स्नान कर लें. भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी सहित अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर लें. ब्राrाणों को भोजन कराये और दान पुण्य करें. भगवान श्री कृष्ण को चंदन अर्पित करना चाहिए. कई लोग इस दिन चावल व मूंग की खिचड़ी बिना नमक के इमली का रस डाल कर बनाते है और उनका सेवन करते है. इसके अलावा ज्वार को भी खिचड़ी खाते है.

क्या है मान्यता?

अक्षय तृतीया को युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का आंरभ हुआ था. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रुप में अवतार लिया था. नर नारायण ने बदरीनाथ में तपस्या कर इसे तीर्थ स्थान बनाया.

यही नर नारायण अगले जन्म में अजरुन व कृष्ण हुए. महाभारत के युद्ध का समापन भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था. श्री कृष्ण के द्वापर युग का अंत भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था. गंगा मां का धरती पर आगमन भी इसी दिन हुआ था. चारों धाम की यात्र इसी दिन से शुरू होती है. इस दिन गंगोत्री व यमुनोत्री के कपाट खुलते है. अगले दिन केदारनाथ और उसके बाद बदरीनाथ के कपाट खुलते है. वृंदावन स्थित बांके बिहारी जी के मंदिर में पूरे वर्ष में इसी दिन भक्तों को उनके चरणों का दर्शन होता है. शेष 364 दिन चरण आवरण में रहते है.

सुंदरकांड का पाठ करें

‘ऊं नम: नारायणाय्’ का जाप करें. दुर्गासप्तसती के तृतीय चरित्र का पाठ करें.

राशि के अनुसार खरीददारी

मेष : सोना, पीतल

वृष : चांदी, स्टील

मिथुन : सोना, चांदी , पीतल

कर्क : चांदी, वस्त्र

सिंह : सोना, तांबा

कन्या : सोना, चांदी, पीतल

तुला : चांदी, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर

वृष्चिक : सोना, पीतल,

धनु : सोना, पीतल,फ्रिज, वाटर कूलर

मकर : सोना, पीतल, चांदी, स्टील,

कुंभ : सोना, चांदी, पीतल, स्टील, वाहन

मीन : सोना, पीतल, पूजन सामग्री व बर्तन

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