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नशे ने पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिया था, अब मैं ठीक हूं

शराब की लत लगनी काफी आसान है, लेकिन इससे छुटकारा पाना उतना ही कठिन है. हालांकि नामुमकिन नहीं है. अगर इरादा पक्का हो, तो फिर आप जितना भी पीने वाले हों, लेकिन लत छूट ही जाती है. कुछ ऐसा ही पक्का इरादा पटना के पटेल नगर में रहनेवाले पीयूष पाठक (बदला हुआ नाम) ने किया. […]

शराब की लत लगनी काफी आसान है, लेकिन इससे छुटकारा पाना उतना ही कठिन है. हालांकि नामुमकिन नहीं है. अगर इरादा पक्का हो, तो फिर आप जितना भी पीने वाले हों, लेकिन लत छूट ही जाती है. कुछ ऐसा ही पक्का इरादा पटना के पटेल नगर में रहनेवाले पीयूष पाठक (बदला हुआ नाम) ने किया.

हर दिन 24 घंटे नशे में रहने वाले पीयूष ने अपने मजबूत इरादे से सेकेंड भर में शराब छोड़ दी. शराब छोड़ने के बाद परेशानी भी हुई. बेचैनी भी हुई, लेकिन अपने इरादे को ऐसा रखा पक्का कि दुबारा शराब को हाथ नहीं लगाया. नशे से खुद को अलग रखने के लिए हितैषी हैप्पीनेस होम में चार महीने इलाज करवाया. वह दोबारा अपनी पढ़ाई शुरू कर इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन लेना चाहता है.

पटना : मैंने सोचा नहीं था कि मेरा कैरियर नशे के कारण बरबाद हो जायेगा. पिछली जिंदगी के बारे में सोचता भी हूं, तो परेशान हो जाता हूं. मुझे कम उम्र में ही नशे की आदत लग गयी थी. मेरे पापा एसडीओ हैं और मम्मी स्कूल में टीचर हैं. मैं पटना में डीएवी खगौल का स्टूडेंट था.

2012 में मैंने डीएवी से 10वीं की परीक्षा दी. पटेल नगर में अपना फ्लैट था. मैं अकेले रह कर पढ़ाई करता था. दोस्तों की संगत में रह कर मुझे शराब पीने की आदत लग गयी. हर दिन दोस्त मेरे घर आ जाते थे. हम सब मिल कर शराब पीते थे. 10वीं के बाद 2014 में 12वीं भी पास कर गया. इसके बाद पापा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु भेज दिया.

बेंगलुरु में मैं बहुत ज्यादा ड्रिंक लेने लगा. एक सेमेस्टर भी पूरा नहीं कर पाया. वापस आ गया. फिर पापा ने डोनेशन पर इंजीनियरिंग कॉलेज, नागपुर में एडमिशन करवा दिया. नागपुर में मैं अौर भी नशा करने लगा.

रिजल्ट खराब हो गया. मैं डिप्रेशन में रहने लगा. पापा 10 हजार पॉकेट मनी देते थे. इसमें मैं हर माह 9 हजार रुपये नशे पर ही खर्च कर देता था. नागपुर में भी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया और वापस पटना आ गया. यहां आकर पापा-मम्मी को बताया. मैंने उनसे वादा भी किया कि अब कभी नशा नहीं करेंगे.

मैंने छोड़ दिया, लेकिन मुझे नशे की ऐसी आदत था कि मैं बेचैन होने लगा. इसके बाद पापा ने मुझे हितैषी हैप्पीनेस होम में भरती करवाया. हितैषी में मैं अक्तूबर, 2015 में भरती हुआ. अब मैं ठीक हूं.

पीयूष पाठक (बदला हुआ नाम)

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