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वासंतिक नवरात्र नौवां दिन : सिद्धिदायिनी दुर्गा का ध्यान

सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ।। सिद्धों, गंधर्वो, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों. त्रिशक्ति के स्वरूप-9 त्रिशक्ति के रूप में मां जगदंबा अपने भक्तों की रक्षा करने में सदैव तत्पर रहती हैं, साथ ही साथ महाकाली बनकर शत्रुओं का संहार करने […]

सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ।।

सिद्धों, गंधर्वो, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों.

त्रिशक्ति के स्वरूप-9

त्रिशक्ति के रूप में मां जगदंबा अपने भक्तों की रक्षा करने में सदैव तत्पर रहती हैं, साथ ही साथ महाकाली बनकर शत्रुओं का संहार करने में समर्थ हैं, महालक्ष्मी बनकर भक्तों को संपन्नता देने में, महासरस्वती बनकर जो मनुष्यों को बुद्धि और चेतना देने में समर्थ हैं.

ऐसी दिव्यात्म स्वरूपा भगवती के पूर्ण स्वरूप को नवरात्र के अवसर पर जो व्यक्ति साधता है, उसे अपने हृदय में स्थापित करता है, वह निश्चय ही शिव का प्रिय बन जाता है.

ऐसा व्यक्ति त्रैलोक्य में विजय प्राप्त करने में भी समर्थ होता है, उसके जीवन में किसी प्रकार की चिंता या परेशानी या तकलीफ हो ही नहीं सकती. वह निर्भीक होकर विचरण करने में समर्थ होता है. मार्कण्डेयपुराण में कल्याणमयी दुर्गा देवी के लिए विद्या और अविद्या दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है. ब्रह्मा की स्तुति में महाविद्या तथा देवताओं की स्तुति में लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये संबोधन आये हैं. अ से लेकर क्ष तक पचास मातृकाएं आधारपीठ हैं. इनके भीतर स्थित शक्तियों का साक्षात्कार शक्ति-उपासना है. शक्ति से शक्तिमान का अभेद-दर्शन, जीव में शिवभाव का उदय अर्थात शिवत्व-बोध शक्ति उपासना की चरम उपलब्धि है.

बृहन्नीलतन्त्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्ण भेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित हैं. कृष्णा का नाम दक्षिणा है तो रक्तवर्णा का नाम सुंदरी –

विद्या हि द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा रक्ता-प्रभेदतः।

कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरी मता।।

उपासना के भेद से दोनों में द्वैत है, पर तत्वदृष्टि से अद्वैत है. वास्तव में काली और भुवनेश्वरी दोनों मूल प्रकृति के अव्यक्त और व्यक्त रूप हैं. काली से कमला तक की यात्रा दस सोपानों में अथवा दस स्तरों में पूर्ण होती है. दस विद्याओं का स्वरूप इसी रहस्य का परिणाम है. इनमें काली, तारा, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, मातंगी, धूमावती- ये रूप और विग्रह में कठोर तथा भुवनेश्वरी, षोड़शी, कमला और भैरवी अपेक्षाकृत माधुर्यमयी रूपों की अधिष्ठात्री विद्याएं हैं. करूणा और भक्तानुग्रहकांखा तो सबमें समान है. दुष्टों का दलन- हेतु एक ही महाशक्ति दुर्गा कभी रौद्र, तो कभी सौम्य रूपों में विराजित होकर नाना प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं. इच्छा से अधिक वितरण करने में समर्थ इन महाविद्याओं का स्वरूप अचिन्त और शब्दातीत है. पर भक्तों के लिए इनकी कृपा हमेशा मिलता है.

अतः मां से प्रार्थना करें-

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोअस्तु ते ।।

(समाप्त) प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा

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