डॉक्टर बनने का सपना संजोये लाखों छात्रों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राहत मिलेगी. कोर्ट ने सभी सरकारी एवं प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए कॉमन टेस्ट (एनइइटी) पर रोक के अपने 2013 के फैसले को वापस ले लिया है.
पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी होने तक जुलाई, 2013 से पहले की एनइइटी वाली व्यवस्था जारी रखी जा सकती है. तब कुछ कॉलेजों ने अपनी स्वायत्तता का हवाला देते हुए एनइइटी का विरोध किया था. लेकिन, केंद्र और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने कॉमन टेस्ट को यह कहते हुए लागू किया था, कि इससे छात्र दर्जनों प्रवेश परीक्षाओं की परेशानियों से बचेंगे और दाखिले में पारदर्शिता आयेगी.
मेडिकल कॉलेजों के लिए एक विश्वसनीय प्रवेश प्रक्रिया की जरूरत सिर्फ छात्रों को परेशानियों से बचाने भर के लिए नहीं, बल्कि मेडिकल प्रोफेशनल्स की बेहतर साख के लिए भी है. विभिन्न व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में मनमाने तरीके से दाखिला देने के मामले आये दिन सुर्खियां बनते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल एमबीबीएस, एमएस और एमडी जैसे पाठ्यक्रमों की 25 हजार से अधिक सीटें करीब 12 हजार करोड़ रुपये में बेच दी जाती हैं.
देश में 420 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से 220 से अधिक निजी क्षेत्र में हैं, जहां एमबीबीएस की 53 फीसदी सीटें हैं. मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में योग्यताओं को प्रमाणित करने, संस्थानों को मान्यता देने, चिकित्सा-कर्म में लगे लोगों के पंजीयन और गड़बड़ियों पर निगरानी का जिम्मा एमसीआइ के पास है. लेकिन, संसद की स्थायी समिति ने पिछले महीने ही कहा था कि अगर देश की चिकित्सा व्यवस्था को बदहाली से बचाना है, तो एमसीआइ के ढांचे में फौरी तौर पर बदलाव जरूरी है.
समिति ने जहां मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 को पुराना मान कर नया कानून लाने की बात कही थी, वहीं एमसीआइ के कामकाज को दो हिस्सों- मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और देश में चिकित्सा-कर्म की निगरानी- में बांटने का समाधान सुझाया था. उम्मीद है कि सरकार प्रवेश परीक्षा को पारदर्शी बनाने के साथ-साथ देश के चिकित्सक और चिकित्सा तंत्र को दुनिया की नजर में विश्वसनीय बनाने के बारे में भी सोचेगी.