नयी दिल्ली: चीन से निपटने के लिए अब भारत और अमेरिका हाथ मिलायेंगे. भारत और अमेरिका चीने के समुद्री क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए यह साझा प्रयास किया है. अमेरिकी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर ने इसकी जानकारी देते हुए कहा, दोनों देशों के बीच सहमति बनी है कि वो मिलिटरी लॉजिस्टिक्स साझा करेंगे.
अमेरिका के रक्षा सचिव ने कहा कि हम बहुत पहले से यह चाहते थे. हमने भारत से पहले भी कहा था कि हमारे साथ लॉजिस्टिक्स सहयोग के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करें ताकि हम साथ मिलकर इस दिशा में काम कर सकें . इस समझौते के बाद दोनों देशों की सेनायें एक दूसरे को मिलिटरी सप्लाई और एक दूसरे की जमीनी, हवाई समेत समुद्री क्षेत्रों का इस्तेमाल कर सकती है. इस समझौते को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बन सकी और अबतक इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं. एश्टन कार्टर ने ही भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये पेंटागन में एक स्पेशल सेल का गठन किया .
हालांकि दोनों देश इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं आपसी सहमति के बाद संभव है कि इसके मसौदे को तेजी से तैयार किया जाए और इस पर दोनों देश हस्ताक्षर करें. इस समझौते का दूसरा पक्ष यह भी है कि भारत इस बात पर चिंतित रहा है कि अगर लॉजिस्टिक्स अग्रीमेंट हुआ तो वह सीधे तौर पर अमेरिका के सैन्य संगठन के साथ बंध जायेगा जिससे उसकी सैन्य आजादी पर असर पड़ेगा. भारत की तरफ चीन की तिरछी नजर और हिंद महासागर में चीन के बढ़ते दबदबे को देखकर भारत इस समझौते पर सहमति दे सकता है. चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकी भी भारत के लिए चिंता का विषय है .
अमेरिकी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर की भारत यात्रा से दोनों देशों को काफी उम्मीदें है. भारत रक्षा सहयोग के साथ रक्षा तकनीक को भी यहां लाने पर जोर देगा. भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि अक्सर कम्पनियां भारत को तकनीक के हस्तानांतरण का वादा करती हैं लेकिन पेंटागन का कानून इसके आड़े आ जाता है. भारत की कोशिश होगी की इन बाधाओं को दूर करके वह तकनीक और रक्षा सहयोग को बढ़ाये. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर ने कई मुद्दों पर बात की और भारत के सहयोग का भरोसा दिया.