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पारावुर के सबक

केरल के कोल्लम जिले के पारावुर स्थित पुत्तिंगल देवी मंदिर में भयावह आग से सौ से अधिक लोग मारे गये हैं और सैकड़ों घायल लोगों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है. अधिकारियों के अनुसार रविवार को तड़के सुबह आतिशबाजी के दौरान बारूदी सामान के ढेर पर चिनगारियों के गिरने से यह हादसा हुआ […]

केरल के कोल्लम जिले के पारावुर स्थित पुत्तिंगल देवी मंदिर में भयावह आग से सौ से अधिक लोग मारे गये हैं और सैकड़ों घायल लोगों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है. अधिकारियों के अनुसार रविवार को तड़के सुबह आतिशबाजी के दौरान बारूदी सामान के ढेर पर चिनगारियों के गिरने से यह हादसा हुआ है. केंद्र और राज्य सरकार के साथ सेना भी राहत और बचाव कार्य में लगी है तथा गंभीर रूप से घायल लोगों को बेहतर चिकित्सा के लिए राज्य से बाहर भेजा जा रहा है.

उच्चस्तरीय आपदा प्रबंधन टीम के साथ विशेषज्ञ चिकित्सक भी मौके पर पहुंच गये हैं. प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया है कि जिला प्रशासन ने मंदिर के सालाना जलसे में आतिशबाजी की मंजूरी नहीं दी थी, फिर भी मंदिर प्रबंधन और श्रद्धालुओं के अनेक समूहों ने इस आदेश की परवाह न करते हुए आतिशबाजी की प्रतिस्पर्द्धा की. इस दुखद घटना से एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि धार्मिक स्थानों पर लोगों की भीड़ और उनकी गतिविधियों के बारे में कानूनी और एहतियाती प्रावधानों के बावजूद इस तरह के हादसे बार-बार क्यों होते रहते हैं.

देश भर में धार्मिक स्थलों पर होनेवाले विशेष आयोजनों के लिए संबंधित प्रशासन दिशा-निर्देश जारी करता है, लेकिन उन स्थलों के प्रबंधकों तथा श्रद्धालुओं द्वारा उनकी अनदेखी की जाती है. प्रशासनिक अमला भी इस बाबत किसी तरह की जोर-जबरदस्ती से परहेज करता है क्योंकि ऐसे आयोजनों को लेकर लोगों की धार्मिक और सामुदायिक भावनाएं जुड़ी होती हैं. इसके अलावा राजनीतिक नेतृत्व के लापरवाह रुख के कारण भी प्रशासन को पीछे हटना पड़ता है. अक्सर देखा गया है कि धार्मिक स्थानों के प्रबंधन के लिए जिम्मेवार संस्थाओं को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होता है तथा हमारे नेता समाज में अपने समर्थन में कमी के डर से भी नियमों के उल्लंघन के प्रति गंभीर नहीं होते. इतना ही नहीं, इन आयोजनों के अवसर पर प्रशासन और आयोजक जरूरत के मुताबिक सुरक्षा, एंबुलेंस, प्राथमिक चिकित्सा आदि का इंतजाम नहीं करते. लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण हर जरूरी मामले में महज कागजी खानापूर्ति की जाती है. पुत्तिंगल मंदिर में आधी रात से ही आतिशबाजी हो रही थी और वहां हजारों की संख्या में लोग जमा थे.

लेकिन न तो प्रशासन की ओर से और न ही मंदिर प्रबंधन की ओर से इसे रोकने की कोई कोशिश की गयी. जिस गोदाम में चिनगारी से पहले आग लगी, वहां आतिशबाजी के सामान के अलावा प्लास्टिक आदि की वस्तुएं भी थीं. इसका मतलब यह हुआ कि बड़े स्तर पर आतिशबाजी का कार्यक्रम पहले से ही तय था. आग से बचाव या भगदड़ को रोकने का भी कोई इंतजाम नहीं था. अचरज की बात है कि यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ. दुर्घटना में कुछ पुलिसकर्मी भी मारे गये हैं. पटाखों की खरीद-बिक्री और उन्हें जमा करने के बारे में निर्धारित कानूनों की भी परवाह नहीं की गयी. इस तरह के आयोजनों में भीड़ को नियंत्रित करने के भी मानदंड हैं. केरल समेत देश के अन्य क्षेत्रों में इस तरह की अनेक दुर्घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, जिनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ है. इसके बावजूद प्रशासन की ओर से बरती गयी लापरवाही अक्षम्य है. खबरों में बताया जा रहा है कि अब जब प्रशासन ने मंदिर के व्यवस्थापकों और आतिशबाजी कार्यक्रम के आयोजकों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया है, तो प्रबंधन के लोग फरार हो गये हैं.

यह हरकत न सिर्फ उनके अपराध की ओर संकेत करती है, बल्कि ऐसे संकट के समय राहत और बचाव कार्य में हाथ बंटाने की जगह भाग जाना उनकी अनैतिक और मर्यादा शून्य व्यवहार का भी सूचक है. दुर्घटना के समय मंदिर परिसर में करीब पंद्रह हजार लोग उपस्थित थे, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी थे. इतनी भीड़ होने का अनुमान प्रबंधन और प्रशासन को पहले से ही था, फिर भी एहतियाती उपाय करने में गंभीर चूक की गयी. यदि आग बुझाने का इंतजाम होता और भीड़ को ठीक से व्यवस्थित किया जाता, तो आग लगने के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों को काल-कवलित होने से बचाया जा सकता था. हादसे के बाद तर्क-कुतर्क देकर सरकार, प्रशासन और मंदिर प्रबंधन अपने बचाव में लगे हैं, तो राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरू हो गया है.

इस दुर्घटना की त्वरित जांच कर दोषियों को सजा देने की जरूरत है, ताकि आगे से ऐसी लापरवाही न हो. लेकिन, इसके साथ जरूरत इस बात की भी है कि समाज, प्रशासन और धार्मिक संस्थाएं अपनी जिम्मेवारियों को समुचित ढंग से समझें और कायदे-कानूनों का ठीक से पालन करें. ऐसे आयोजनों में होनेवाली भारी भीड़ के मुताबिक सुरक्षा और चिकित्सकीय मदद का भी इंतजाम होना चाहिए, ताकि दुर्घटना की स्थिति में पीड़ितों को तुरंत मदद मिल सके. आशा है कि पारावुर का हादसा हमारे लिए एक बड़ा सबक होगा और इससे सीख लेते हुए हम भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोक सकेंगे.

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