जल ही जीवन है. यह जानते सभी हैं, पर माननेवाले विरले हैं. जल के अभाव में गांव के गांव खाली हो रहे हैं, भुखमरी की स्थिति बन गयी है और निजाम दुधिया रोशनी में ताली बजा कर मजे ले रहे हैं! कैसी विडंबना है कि आजादी के इतने वर्षों के पश्चात भी नितांत मूलभूत जरूरतों को हमारी सरकारें मुहैया कराने में असफल हैं.
जल का संरक्षण सबकी जिम्मेदारी है. जल का अपव्यय रोकने से मुंह मोड़ लेना अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के सदृश है. आलीशान होटलों के वातानुकूलित कमरों में नीति निर्धारण करनेवाले हमारे तमाम जनप्रतिनिधि खुद को माफ नहीं कर पायेंगे, जब आम जनता दो बूंद पेयजल के अभाव में काल-कवलित हो रही हो. याद रखें, जल है तो कल है. सिर्फ कागजी कार्यवाही न होकर समाज के सभी वर्गों के सार्थक व सम्मिलित प्रयास से ही इस त्रासदी से बच सकते हैं. जागो कहीं देर ना हो जाये!
मनीष सिंह, जमशेदपुर